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भारत पहुंचे अमेरिकी सांसदों ने क्या किया जो चीन भड़क उठा?

अमेरिकी सांसदों के धर्मशाला दौरे पर चीन ने आपत्ति जताई है. इस दौरे में 7 अमेरिकी सांसद धर्मगुरु दलाई लामा से मिलने आए थे. सांसदों में अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स की पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी भी शामिल थीं.

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अमेरिकी सांसदों के धर्मशाला दौरे का विरोध चीन ने किया (तस्वीर : PTI)

18 जून को सात अमेरिकी सांसदों की एक टीम हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला पहुंची. जहां उन्होंने तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा (Dalai Lama) से मुलाक़ात की. लेकिन पड़ोसी देश चीन ने इस दौरे का विरोध किया है क्योंकि चीन दलाई लामा को एक अलगावादी नेता मानता है. भारत में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने बयान जारी किया है.

धर्मशाला के दौरे में अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिव्स की पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी भी थीं. पेलोसी ने इससे पहले स्पीकर रहते हुए (अगस्त 2022 में) ताइवान का दौरा किया था. उस दौरान भी चीन ने ताइवान को घेरकर कई दिनों तक मिलिटरी ड्रिल की थी. इस बार के दौरे के बाद भारत में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने एक्स पर लिखा,

दलाई लामा कोई धार्मिक शख़्सियत नहीं हैं, बल्कि वो धर्म का नक़ाब ओढ़कर चीन-विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में संलिप्त निर्वासित राजनेता हैं. हमारी अपील है कि अमेरिका ने शिज़ांग के मुद्दे पर चीन से जो वादे किए थे, उसका सम्मान करे. और, दुनिया को ग़लत सिग्नल भेजना बंद करे.

शिज़ांग, तिब्बत का आधिकारिक नाम है. चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने ये भी लिखा कि शिज़ांग चीन का घरेलू मसला है. उसमें बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अमेरिका को ‘शिज़ांग की आज़ादी’ का सपोर्ट नहीं करना चाहिए. चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाता रहेगा. प्रवक्ता ने एक्स पर नैन्सी पेलोसी को भी टैग किया है.

ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिकी संसद ‘रिज़ॉल्व तिब्बत बिल’ को मंज़ूरी दे चुकी है. बिल राष्ट्रपति जो बाइडन की टेबल पर रखा है. और, चीन बिल पर साइन नहीं करने की अपील कर रहा है.

रिज़ॉल्व तिब्बत बिल क्या है?

इसका आधिकारिक नाम है - 'प्रोमोटिंग ए रिजॉल्यूशन टू द तिब्बत-चाइना डिस्प्युट एक्ट'. 1949 में चीन में माओ ज़ेदोंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट क्रांति सफल हुई. माओ ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना की. 1950 में चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लिया. उससे पहले तिब्बत आज़ाद देश हुआ करता था. दलाई लामा तिब्बत के राजनीतिक और धार्मिक मुखिया होते थे. दलाई लामा कोई नाम नहीं है. बल्कि ये एक पदवी है. इसका अर्थ होता है - ज्ञान का समंदर.

चीन के हमले के समय 14वें दलाई लामा तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष थे. उस वक़्त उनकी उम्र महज 15 साल थी. चीन ने उनको रास्ते से हटाने की साज़िश रची. 1959 में दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा. उनके साथ हज़ारों तिब्बतवासी भी आए. उनको भारत में शरण मिली. उन्होंने धर्मशाला को निर्वासन वाली राजधानी बनाया. वहीं से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलने लगी. दलाई लामा के निकलने के बाद चीन को मौका मिल गया. वो तिब्बत की स्थानीय भाषा और संस्कृति को दबाने लगा.

कई बरसों तक तिब्बत का मुद्दा चर्चा से बाहर रहा. फिर सितंबर 1987 में दलाई लामा को अमेरिकी संसद को संबोधित करने का मौका मिला. वहां उन्होंने तिब्बत में शांति के लिए पांच सूत्रीय मांगें रखी थीं.

  1. पूरे तिब्बत को पीस ज़ोन बनाया जाए. 
  2. चीन पॉपुलेशन ट्रांसफ़र पॉलिसी को खत्म करे. इससे तिब्बती लोगों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ता है.
  3. तिब्बत के लोगों के बुनियादी मानवाधिकार और लोकतांत्रिक आज़ादी का सम्मान किया जाए.
  4. तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जाए. तिब्बत में परमाणु हथियारों का प्रोडक्शन बंद हो और न्युक्लियर वेस्ट को डंप ना किया जाए.
  5. तिब्बत के भविष्य और, तिब्बत और चीन के लोगों के बीच का रिश्ता तय करने के लिए बातचीत का प्रोसेस शुरू हो.

चीन ने प्लान को ख़ारिज कर दिया. कहा कि दलाई लामा के भविष्य के अलावा किसी और विषय पर बात नहीं होगी. फिर आया 1995 का साल. मई महीने में चीन ने 11वें पंचेन लामा को किडनैप कर लिया. पंचेन लामा ही अगला दलाई लामा चुनते हैं. किडनैपिंग के बाद चीन ने अपना अलग पंचेन लामा घोषित किया. तिब्बत की निर्वासित सरकार ने इसको नकार दिया.

इसके बावजूद 2002 में चीन और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत का दूसरा चरण शुरू हुआ. पहला चरण 1979 से 1994 तक चला था. 15 राउंड की मीटिंग के बाद भी कोई ठोस फ़ैसला नहीं निकला था.

दूसरा चरण 2010 तक चला. इस बीच आठ दौर की बातचीत हुई. 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स के दौरान तिब्बत में चीन सरकार के ख़िलाफ़ बड़ा विद्रोह भी हुआ. चीन ने उसको आसानी से दबा दिया. हालांकि, दलाई लामा के साथ संबंध बिगड़ गए. 2010 में उसने बातचीत का प्रोसेस रोक दिया. उसके बाद से दोनों पक्ष आमने-सामने नहीं बैठे हैं.

14वें दलाई लामा ने 2011 में राजनीति से संन्यास ले लिया. और, सारी राजनीतिक शक्तियां चुनी हुई सरकार को सौंप दीं. अब वे सिर्फ़ आध्यात्मिक सीख देते हैं. हालांकि, वो अभी भी तिब्बत की पहचान का हिस्सा बने हुए हैं.

अभी आपने चीन-तिब्बत विवाद समझा. अब रिज़ॉल्व तिब्बत बिल पर वापस लौटते हैं. चीन का दावा है कि तिब्बत हमेशा से उसका हिस्सा रहा है. वहां की भाषा, संस्कृति और धार्मिक मान्यता चीन से ही जुड़ी है.

‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ लागू होने के बाद क्या होगा?
  • तिब्बत से जुड़े चीन के भ्रामक दावों का खंडन करने के लिए अमेरिका फ़ंड देगा.
  • चीन पर दलाई लामा से बातचीत के साथ के लिए दबाव बनाया जाएगा.
  • अमेरिका अपनी नीति को स्पष्ट करेगा कि तिब्बत की क़ानूनी स्थिति तय नहीं है. और, तिब्बत के भविष्य पर फ़ैसला इंटरनैशनल लॉ के हिसाब से होगा.

इस बिल को रिपब्लिकन पार्टी के सांसद माइकल मैकॉल ने स्पॉन्सर किया था. वो अमेरिका के निचले सदन की फ़़ॉरेन अफ़ेयर्स कमिटी के अध्यक्ष भी हैं. वो भी पेलोसी के साथ धर्मशाला पहुंचे हैं. 19 जून को अमेरिकी सांसदों ने बिल की एक कॉपी दलाई लामा को सौंपी.

कितना अहम है ये बिल?

जानकारों का कहना है कि इस बिल में कुछ भी ठोस नहीं है. अमेरिका चीनी प्रोपेगैंडा को काउंटर करने और बातचीत के लिए दबाव बनाने के अलावा कुछ और नहीं कर रहा है. इसलिए, इसका कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिलेगा.

राष्ट्रपति जो बाइडन के दस्तख़त के बाद बिल क़ानून बन जाएगा. चीन ने बिल का विरोध किया है. कहा है कि बाइडन को इस बिल पर साइन नहीं करना चाहिए. हालांकि, वाइट हाउस ने कहा है कि बाइडन वही करेंगे, जो अमेरिका के लोगों के हित में होगा. देखना दिलचस्प होगा कि बाइडन के दस्तख़त के बाद चीन कैसे रिएक्ट करता है.

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