पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण पर बयान आया है. उन्होंने राणा के भारत लाए जाने पर खुशी जाहिर की, लेकिन यह भी कहा कि केंद्र की मोदी सरकार इस सफलता का ‘श्रेय लेने की जल्दी’ में है. बयान में उन्होंने कहा कि असलियत ‘बिल्कुल अलग’ है और लोगों को इसकी सच्चाई जानने की जरूरत है.
'तहव्वुर राणा UPA सरकार की वजह से भारत लाया गया', पी चिदंबरम ने पूरी कहानी लिख दी
चिदंबरम ने कहा कि तहव्वुर राणा प्रत्यर्पण एक दशक से भी ज्यादा समय तक चली कठिन और सटीक कूटनीति, कानूनी प्रक्रिया और इंटेलिजेंस के काम का नतीजा है, जिसकी शुरुआत यूपीए सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर की थी.

पी चिदंबरम ने कहा है कि यह प्रत्यर्पण एक दशक से भी ज्यादा समय तक चली कठिन और सटीक कूटनीति, कानूनी प्रक्रिया और इंटेलिजेंस के काम का नतीजा है, जिसकी शुरुआत यूपीए सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर की थी. चिदंबरम ने इसके बाद तहव्वुर राणा केस की पूरी टाइम लाइन गिनवाई.
तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण पर चिदंबरम के दावेकांग्रेस के वरिष्ठ नेता के मुताबिक यह पूरी प्रक्रिया 11 नवंबर 2009 को शुरू हुई जब NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने नई दिल्ली में डेविड कोलमैन हेडली (अमेरिकी नागरिक), तहव्वुर राणा (कनाडाई नागरिक) और अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया, जो 26/11 की साजिश में शामिल थे. उसी महीने, कनाडा के विदेश मंत्री ने भारत की एजेंसियों के साथ सहयोग की पुष्टि की. चिदंबरम का कहना है कि यह यूपीए की ‘प्रभावी विदेश नीति का असर’ था.
FBI ने राणा को 2009 में शिकागो में गिरफ्तार किया था. वह कोपेनहेगन में लश्कर-ए-तैयबा की एक नाकाम साजिश का रचयिता था. हालांकि, जून 2011 में एक अमेरिकी अदालत ने राणा को सीधे 26/11 हमलों में शामिल होने के आरोप से बरी कर दिया. लेकिन उसे अन्य आतंकवाद से जुड़े मामलों में दोषी करार देते हुए 14 साल की सजा हो गई.
चिदंबरम ने कहा कि UPA सरकार ने 26/11 हमले में बरी होने पर सार्वजनिक रूप से अपनी आपत्ति जाहिर की और कूटनीतिक दबाव बनाए रखा.
इसके बाद NIA की तीन सदस्यीय टीम ने 2011 में अमेरिका जाकर हेडली से पूछताछ की. यह पूछताछ भारत और अमेरिका के आपसी कानूनी सहयोग (MLAT) के तहत हुई. अमेरिकी सरकार ने भारत को जरूरी सबूत दिए, जो दिसंबर 2011 में NIA की चार्जशीट का हिस्सा बने. इसमें नौ आरोपी शामिल थे, जिनमें राणा का भी नाम था.
चिदंबरम के मुताबिक इसके बाद तहव्वुर राणा पर शिकंजा कसना शुरू हुआ. दिल्ली की विशेष NIA अदालत ने गैर-जमानती वारंट जारी किया और इंटरपोल रेड नोटिस भी लिया गया. चिदंबरम ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में सार्वजनिक तौर पर कोई दिखावा नहीं किया गया बल्कि शांत और गंभीर कूटनीति का सहारा लिया गया.
इंटरपोल के नोटिस के बाद 2012 में, तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और विदेश सचिव रंजन माथाई ने अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और डिप्टी मंत्री वेंडी शेरमैन के साथ हेडली और राणा के प्रत्यर्पण का मामला उठाया. चिदंबरम ने आगे लिखा,
“जनवरी 2013 तक हेडली को 35 साल की सजा सुनाई जा चुकी थी और राणा भी अमेरिका की जेल में सजायाफ्ता था. भारत ने हेडली के प्रत्यर्पण की मांग दोहराई, भले ही UPA सरकार ने उसकी सजा को लेकर अपनी निराशा जाहिर की. उस समय अमेरिका में भारत की राजदूत निरुपमा राव ने इस मामले को लगातार आगे बढ़ाया.”
पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि यह एक ‘आदर्श’ उदाहरण था कि अंतरराष्ट्रीय न्याय से जुड़ी संवेदनशील बातों को कूटनीति से कैसे सुलझाया जाता है. उन्होंने कहा, “2014 में सरकार बदलने के बाद भी, पहले से चल रही सरकार की कोशिशों ने इस मामले को ज़िंदा रखा. 2015 में हेडली 26/11 मामले में सरकारी गवाह बनने को तैयार हुआ. 2016 में मुंबई की एक अदालत ने उसे माफ कर दिया, बशर्ते वह पूरा सहयोग करे, जिससे अबू जुंदाल (जबीउद्दीन अंसारी) के खिलाफ केस मजबूत हुआ.”
चिदंबरम ने बताया कि दिसंबर 2018 में भारत की एक टीम अमेरिका गई ताकि कानूनी अड़चनें दूर की जा सकें. जनवरी 2019 में बताया गया कि राणा को अपनी पूरी सजा अमेरिका में काटनी होगी. उसकी रिहाई की तारीख 2023 तय हुई थी.
जून 2020 में जब राणा को स्वास्थ्य कारणों से रिहा किया गया तो भारत सरकार ने उसकी दोबारा गिरफ्तारी की मांग की. इसके बाद अमेरिका की बाइडेन सरकार ने उसके प्रत्यर्पण का समर्थन किया. भारत का पक्ष तब और भी मजबूत हुआ जब मई 2023 में एक अमेरिकी अदालत ने भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा के प्रत्यर्पण को सही ठहराया. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखा, “राणा के लिए यह बड़ा झटका था. उसने प्रत्यपर्ण के खिलाफ कई अपीलें दायर कीं. इनमें हेबियस कॉर्पस और डबल जिओपर्डी (एक ही अपराध में दोबारा सजा) के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. सभी याचिकाएं खारिज हो गईं.”
राणा की आखिरी याचिका को 21 जनवरी 2025 को, डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के अगले दिन, खारिज कर दिया गया. अब यह तय हो गया था कि राणा भारत आने से बच नहीं सकता.
इसके बाद चिदंबरम तोप का मुंह प्रधानमंत्री मोदी की तरफ घुमाते हैं. उन्होंने तंज भरे लहजे में कहा, “फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खड़े होकर इस सफलता का श्रेय लेने की कोशिश की, जबकि यह पूरी तरह से UPA सरकार के सालों के प्रयास का परिणाम था.”
17 फरवरी तक भारतीय अधिकारियों ने यह पुष्टि कर दी थी कि राणा की भूमिका 2005 से ही 26/11 की साजिश में थी, जब वह लश्कर-ए-तैयबा और ISI के लोगों के साथ संपर्क में था. आखिरकार, 8 अप्रैल 2025 को अमेरिकी अधिकारियों ने राणा को भारतीय एजेंसियों को सौंप दिया और 10 अप्रैल को वह नई दिल्ली पहुंचा.
चिदंबरम कहते हैं कि इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मोदी सरकार ने तहव्वुर राणा के प्रत्यपर्ण की प्रक्रिया की शुरुआत नहीं की थी, न ही इस सरकार ने कोई नई सफलता हासिल की. यह पूरी तरह से UPA सरकार की परिपक्व, निरंतर और रणनीतिक कूटनीति का नतीजा है.
पीएम मोदी की मेहनत की नतीजाएक तरफ चिदंमबरम राणा के प्रत्यर्पण को UPA की कोशिशों का नतीजा बता रहे हैं दूसरी तरफ बीजेपी इसे पीएम मोदी की मेहनता का फल बता रही है. बीजेपी IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय आज दिन भर राणा के प्रत्यर्पण पर कांग्रेस और UPA सरकार और दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते रहे. उन्होंने सोशल मीडिया साइट X पर लिखा-
यह ठोस कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अटूट प्रतिबद्धता के बिना संभव नहीं हो पाता. 26/11 के बाद किसी भी स्वाभिमानी सरकार को ताकत और गुस्से के साथ जवाब देना चाहिए था. लेकिन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के कारण तुष्टीकरण का रास्ता चुना और पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहराया.
बीजेपी की तरफ से चिदंबरम के बयान पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन बीजेपी के नेता इस मामले में अपनी सरकार की पीठ जरूर थपथपा रहे हैं.
वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: 26/11 आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की पूरी कहानी