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स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफे के खत में जो सवाल पूछा, अखिलेश के पास उसका जवाब है?

''एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है.''

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स्वामी प्रसाद मौर्य ने पत्र जारी कर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने 13 फरवरी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है. लंबे समय से अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे स्वामी प्रसाद ने एक लंबा चौड़ा पत्र लिखा है, इसमें इस्तीफे के कारण बताए हैं. उन्होंने लिखा कि वह पद पर रहे बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए तत्पर रहेंगे. वो आगे लिखते हैं,

‘’मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड पर प्रहार किया. क्योंकि मैं तो भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर लोगों को सपा से जोड़ने के अभियान में लगा रहा. यहां तक कि इसी अभियान के दौरान मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि-आदि की लगभग दो दर्जन धमकियां मिलीं.

मेरी हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख आदि भिन्न-भिन्न रकम की सुपारी दी गई. अनेकों बार जानलेवा हमले भी हुए. यह बात दीगर है कि प्रत्येक बार में बाल-बाल बचता चला गया. उलटे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेकों एफआईआर भी दर्ज कराई गईं. किंतु अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किए मैं अपने अभियान में निरंतर चलता रहा.''

धमकियां क्यों मिल रही थीं स्वामी प्रसाद को?

स्वामी प्रसाद मौर्य के बीते दिनों कुछ बयान ऐसे रहे, जिन्हें कुछ लोगों ने आपत्तिजनक माना. उनपर हिंदू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इल्ज़ाम लगाया गया. उनके कुछ चर्चित बयान थे -

करोड़ लोग रामचरितमानस को नहीं पढ़ते, सब बकवास है. यह तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है. सरकार को इसका संज्ञान लेते हुए रामचरित मानस से जो आपत्तिजनक अंश है, उसे बाहर करना चाहिए या इस पूरी पुस्तक को ही बैन कर देना चाहिए (जनवरी 2023).

आज तक चार हाथ वाला बच्चा नहीं पैदा हुआ तो फिर चार हाथ वाली लक्ष्मी कैसे पैदा हो सकती है? (नवंबर 2023).

ऐसे बयानों के चलते स्वामी प्रसाद आलोचकों के निशाने पर भी रहे और राजनैतिक दलों के भी. उनपर हमले भी हुए थे. 13 फरवरी को जारी अपने पत्र में उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि कैसे समाजवादी पार्टी उनके बयानों से किनारा कर लेती थी. वो लिखते हैं, 

‘’हैरानी तो तब हुई, जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की. मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है.

एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है. दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से दलितों, पिछड़ों का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे?''  

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इस्तीफा दिया, लेकिन पार्टी नहीं छोड़ी

स्वामी प्रसाद ने अपने पत्र में आगे लिखा, यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूं कि ऐसे भेदभावपूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से में त्यागपत्र दे रहा हूं. कृपया इसे स्वीकार करें. मैं पद के बिना भी पार्टी सशक्त बनाने के लिए में तत्पर रहूंगा. आपके द्वारा दिए गए सम्मान, स्नेह और प्यार के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

स्वामी प्रसाद का राजनीतिक इतिहास

स्वामी प्रसाद मौर्य ने 1996 में बीएसपी के टिकट पर रायबरेली की डलमऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधानसभा का चुनाव जीते. उनका करियर कुछ यूं रहा कि वो 4 बार कैबिनेट मंत्री बने. तीन बार वो यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बने. साल 2009 में पडरौना से उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह की मां को हराने के बाद उनकी गिनती मायावती के करीबी नेताओं में होने लगी. साल 2008 में स्वामी प्रसाद मौर्य को बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी. साल 2012 में हार के बाद उनसे मायावती ने जिम्मेदारी वापस ले ली. साल 2016 में स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी से बगावत कर बैठे.

बसपा से विदाई के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पार्टी बनाई, लेकिन बड़ा ख्वाब लेकर वो बीजेपी के साथ हो लिए. साल 2017 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्री पद हासिल किया. 2017 विधानसभा चुनाव में कमल के रथ पर सवार होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य साल 2022 में  अखिलेश के साथ हो लिए थे. अब वहां भी महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है. लेकिन फिलहाल पार्टी में ही हैं.

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