तो क्या आप हिंदू धार्मिक संपत्तियों के मैनेजमेंट में मुसलमानों को हिस्सेदारी देंगे? क्या हिंदू मंदिरों पर भी कलेक्टर फैसले सुना सकेगा? सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ क़ानून में हुए संशोधनों पर ये सवाल पूछे हैं और सरकार से सफ़ाई मांगी है. कोर्ट में नए क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. एक तीखी बहस देखने को मिली और संभवतः अंतरिम आदेश पारित होते-होते रह गया. इस बहस में किसने क्या कहा, सरकार की ओर से कोर्ट को क्या जवाब दिए गए, एक-एक चीज़ पर आज बात करेंगे.
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में हुई पूरी बहस यहां पढ़ें
वक्फ संशोधन विधेयक 4 अप्रैल को संसद में पारित हुआ. अगले दिन यानी 5 अप्रैल को बिल पर राष्ट्रपति ने साइन किए. 8 अप्रैल के दिन केंद्र सरकार ने कानून को नोटिफाई कर दिया. कई जगहों पर इसका विरोध भी जारी रहा. 100 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डाली गईं.
.webp?width=360)
सबसे पहले कुछ बेसिक बातें. वक्फ संशोधन विधेयक 4 अप्रैल को संसद में पारित हुआ. अगले दिन यानी 5 अप्रैल को बिल पर राष्ट्रपति ने साइन किए. 8 अप्रैल के दिन केंद्र सरकार ने कानून को नोटिफाई कर दिया. कई जगहों पर इसका विरोध भी जारी रहा. 100 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डाली गईं. कई लोगों ने अपनी पर्सनल कैपेसिटी में डालीं, तो कुछ संस्थाओं ने भी. लब्बोलुआब ये कि इस कानून के ख़िलाफ़ याचिका डालने वालों की फेहरिस्त लंबी है. याचिकाओं पर 16 अप्रैल यानी बुधवार के दिन सुनवाई हुई.
बेंच में शामिल थे- चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सीयू सिंह ने दलीलें रखीं.
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की. सुनवाई शुरू होते ही CJI ने कहा कि वो बेंच इतनी सारी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई नहीं कर सकती है. इसे देखते हुए 10 याचिकाओं को लिस्ट किया गया था. सुनवाई के दौरान हुई तगड़ी बहस. इस बहस के बारे में आपको बताएंगे आगे. पहले सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कही गई तीन जरूरी बातें जान लीजिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा-
#जिन संपत्तियों को कोर्ट ने वक्फ घोषित किया है, उन्हें गैर-वक्फ नहीं किया जाएगा, चाहे वह "वक्फ बाय यूजर" हों या नहीं.
#कलेक्टर विवादों पर कार्यवाही जारी रख सकते हैं, लेकिन नई धारा को लागू नहीं किया जाएगा.
#वक्फ बोर्ड और काउंसिल में सरकारी सदस्य नियुक्त हो सकते हैं, लेकिन बाकी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए.
अब बहस के कुछ जरूरी हाइलाइट्स पर नजर डालते हैं. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा-
#अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम शामिल हो सकते हैं, तो क्या सरकार हिंदू मंदिरों के बोर्ड में गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति देगी?
#क्या आप कह रहे हैं कि अब से मुस्लिमों को हिंदू एंडोमेंट बोर्ड में शामिल किया जाएगा? साफ-साफ जवाब दीजिए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वो शपथपत्र देकर बता सकते हैं कि गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या दो से ज्यादा नहीं होगी. इसपर कोर्ट ने कहा कि वक्फ काउंसिल के 22 सदस्यों में से सिर्फ 8 मुस्लिम होंगे. दो जज शायद गैर-मुस्लिम हों. सॉलिसिटर जनरल ने मजाक में कहा कि तो फिर यह बेंच भी इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती.
कोर्ट ने कड़ाई से जवाब दिया,
“जब हम यहां बैठते हैं, हमारा धर्म खत्म हो जाता है. हमारे लिए दोनों पक्ष बराबर हैं. आप जजों की तुलना इससे कैसे कर सकते हैं? फिर हिंदू एंडोमेंट बोर्ड में गैर-हिंदुओं को क्यों नहीं शामिल करते?”
इससे पहले याचिकाकर्ताओं की तरफ से धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का हवाला दिया गया. कहा गया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है. ये भी कहा गया कि "वक्फ बाय यूजर" को हटाने से पुरानी मस्जिदों, कब्रिस्तानों और बिना दस्तावेज वाले वक्फों की स्थिति खतरे में पड़ जाएगी. एक तर्क ये भी दिया गया कि कानून सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या भूमि विवाद पर दिए गए फैसले के खिलाफ है, जिसमें "वक्फ बाय यूजर" को मान्यता दी गई थी.
नए कानून की धारा 3 (r) को भी चुनौती दी गई. यह धारा कहती है कि वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम 5 साल तक इस्लाम का पालन करना होगा और संपत्ति का मालिक होना होगा. याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि यह धारा कई ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों को अमान्य घोषित कर देगी, और ये मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है.
सुनवाई के दौरान बेंच के जज भी याचिकाकर्ताओं से कुछ-कुछ सवाल पूछते रहे. कपिल सिब्बल ने जब वक्फ बाय यूजर की बात की तो CJI ने कहा कि जब वो दिल्ली हाई कोर्ट में थे, तब ये कहा जाता था कि दिल्ली हाई कोर्ट भी वक्फ की ज़मीन पर बना है. सिब्बल ने कहा कि पहले के कानून में वक्फ संपत्तियों पर विवाद तय करने में कोई समय सीमा लागू नहीं होती थी, अब लागू है. इस पर सीजेआई ने कहा कि समय सीमा का लागू होना असंवैधानिक नहीं है. सिब्बल ने कहा कि इससे कब्जा करने वालों के मंसूबे बढ़ जाएंगे. वो किसी विवाद को लंबे समय तक फंसाए रहेंगे और एक तय समय के बाद फिर उस विवाद पर सुनवाई ही नहीं होगी. सिब्बल ने ये भी कहा कि कलेक्टर के फैसले को ट्रिब्यूनल में चुनौती नहीं दी जा सकती. इसपर तुषार मेहता बोले कि नए कानून में चुनौती देने का प्रवाधान है.
सुनवाई के दौरान याचिकाओं को हाई कोर्ट्स में भेजने की भी बात हुई. CJI ने सुझाव दिया कि याचिकाओं को हाई कोर्ट्स की राय लेने के लिए भेजा जा सकता है. सिंघवी ने कहा कि कुछ धाराएं तुरंत लागू हो गई हैं, इसलिए उन पर रोक चाहिए.
आखिर-आखिर में कोर्ट ने कहा कि वक्फ बाय यूजर का प्रावधान हटाने के गंभीर परिणाम होंगे. बेंच ने केंद्र सरकार से सफाई मांगते हुए कहा कि वो एक अंतरिम आदेश पारित करने से खुद को रोक रही है, और इस मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी.
सुनवाई के दौरान वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा पर भी चर्चा हुई. CJI ने कहा कि ये हिंसा बहुत परेशान करने वाली है. सॉलिसिटर जनरल ने हां में हां मिलाई. बोले कि ऐसी प्रवृत्ति बन गई है कि आप हिंसा के जरिए सिस्टम पर दबाव डाल सकते हैं. कपिल सिब्बल ने असहमति जताई. कहा कि उन्हें नहीं समझ आता कि कौन किसके ऊपर दबाव डाल रहा है. याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों पर चिंता जताई. कहा कि हिंसा को रोका जाना चाहिए.
यह भी पढ़ें:'क्या मुस्लिम को हिंदू ट्रस्ट का हिस्सा बनाएंगे', वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में तगड़ी बहस
अगले CJI होंगे जस्टिस बीआर गवईCJI संजीव खन्ना ने 16 अप्रैल को केंद्रीय कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस बी. आर. गवई को अपना उत्तराधिकारी नामित किया. सरकार की मंजूरी के बाद जस्टिस गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे. जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था. CJI संजीव खन्ना 13 मई 2025 को रिटायर होंगे. इसके बाद जस्टिस गवई ये जिम्मेदारी संभालेंगे. वे 23 नवंबर, 2025 तक इस पद पर रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है. जस्टिस गवई अभी 64 वर्ष के हैं.
महाराष्ट्र के अमरावती से आने वाले जस्टिस गवई ने 16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू की और 1987 तक बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व जज और एडवोकेट जनरल राजा एस. भोंसले के साथ काम किया. 1990 के बाद उन्होंने मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के मामलों में वकालत की. वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्टैंडिंग काउंसल भी रहे. जस्टिस गवई अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में एडिशनल पब्लिक पॉजीक्यूटर रहे. उन्हें 14 नवंबर, 2003 को बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त जज बनाया गया और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी जज बने.
सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस गवई कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं. जनवरी 2023 में उन्होंने केंद्र सरकार के 2016 के 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराने वाले बहुमत के फैसले में हिस्सा लिया.
1 अगस्त, 2024 को अनुसूचित जातियों (एससी) के सब कैटेगराइज़ेशन की अनुमति देने वाले फैसले में अपनी सहमति देते हुए जस्टिस गवई ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों (एसटी) के लिए भी "क्रीमी लेयर" सिद्धांत लागू करने की वकालत की ताकि "असली समानता" हासिल की जा सके. उन्होंने कहा, "राज्य को अनुसूचित जातियों और जनजातियों में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनानी चाहिए ताकि उन्हें अफर्मेटिव एक्शन वाले दायरे से बाहर किया जा सके. जस्टिस गवई बोले कि केवल तब ही असली बराबरी हासिल की जा सकती है.
उनकी अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया था. साथ ही, इस पीठ ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को भी रद्द कर दिया. नवंबर 2024 में, जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने अपराधियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की प्रक्रिया की आलोचना की और फैसला दिया कि नागरिकों की संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के तोड़ना कानून के राज के खिलाफ है.
वीडियो: MP: डॉ आंबेडकर से जुड़े गाने बजाने पर वाल, गोलियां चल गईं