उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जें को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर को अपना फैसला सुना दिया है. 7 जजों की बेंच ने यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को तय करने के लिए नए सिरे से एक कमेटी गठित की है. इस कमेटी में तीन जज होंगे, जो AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की दिशा तय करेंगे.
AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जानिए CJI चंद्रचूड़ ने क्या कहा?
AMU Minority Status: 7 जजों की बेंच ने यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को तय करने के लिए नए सिरे से एक कमेटी गठित की है. इस कमेटी में तीन जज होंगे जो AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की दिशा तय करेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच में चार जजों ने एकमत से फैसला दिया है. वहीं, तीन जजों ने डिसेंट नोट जाहिर किया है. CJI चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना,जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने एकमत से इस निर्णय पर फैसला देने से इंकार कर दिया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं.
AMU पर चलेगी बहससुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 4:3 के बहुमत के फैसले में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें बताया गया था कि किसी संस्था के मॉनॉरिटी स्टेटस को कैसे निर्धारित किया जाता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2006 में अपने फैसले में कहा था कि 1920 में शाही कानून से स्थापित AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. हालांकि, इस फैसले में दिए गए तर्कों के आधार पर AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से निर्धारित करने का काम तीन जजों की बेंच पर छोड़ दिया है. कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि तीन जजों वाली कमेटी को यह तय करना होगा कि किन लोगों ने इस यूनवर्सिटी को स्थापित किया और ऐसा करने का मंशा क्या थी.
सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में 'अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज' के रूप में की थी. साल 1920 में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला, जिसके बाद इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ कर दिया गया. साल 1955 में यूनिवर्सिटी में गैर-मुस्लिमों के लिए भी दरवाजे खोले गए थे.
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