सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सिर्फ आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन (Conversion) करना "संविधान के साथ धोखाधड़ी" है. एक महिला की याचिका पर कोर्ट ने कहा कि धर्म में बिना आस्था के ऐसा करना आरक्षण के सामाजिक मूल्यों को खत्म करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 26 नवंबर को मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें एक ईसाई महिला को अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट देने से इनकार किया था. महिला ने एक नौकरी में आरक्षण के लेने के लिए हिंदू होने का दावा किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन करने पर बहुत सख्त बात कह दी
कोर्ट ने कहा कि अगर धर्म परिवर्तन का मकसद सिर्फ आरक्षण का लाभ लेना है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इससे सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय को आरक्षण देने का उद्देश्य खत्म हो जाएगा.
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने फैसले में कहा कि सबूतों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ईसाई धर्म को मानती हैं और वो नियमित रूप से चर्च भी जाती हैं. महिला का नाम सी. सेल्वारानी है. कोर्ट ने कहा कि अगर धर्म परिवर्तन का मकसद सिर्फ आरक्षण का लाभ लेना है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इससे सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय को आरक्षण देने का उद्देश्य खत्म हो जाएगा.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सेल्वारानी ने दावा किया था कि वे हिंदू धर्म की वल्लुवन जाति से ताल्लुक रखती हैं. इसके आधार पर उन्होंने क्लर्क की नौकरी के लिए अनुसूचित जाति कैटगरी के तहत आरक्षण का दावा किया था. लेकिन राज्य सरकार ने जांच-पड़ताल करने के बाद इस दावे को खारिज कर दिया था.
इसे चुनौती देते हुए सेल्वारानी मद्रास हाई कोर्ट पहुंच गईं. जनवरी 2023 में हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. फिर इस फैसले के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट बताती है कि सेल्वारानी के पिता वल्लुवन जाति से थे, जो अनुसूचित जाति में शामिल है. उनकी मां ईसाई हैं. पिता ने भी ईसाई धर्म अपना लिया था, जिसकी पुष्टि डॉक्यूमेंट्स से हुई. सेल्वारानी को जन्म के कुछ समय बाद ही ईसाई धर्म की दीक्षा दी गई थी.
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार की पड़ताल से साफ पता चलता है कि सेल्वारानी के माता-पिता की शादी इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट से हुई है. इसके अलावा, सेल्वारानी की ईसाई धर्म की दीक्षा से साफ है कि वो जन्म से ईसाई हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी भी दस्तावेज से पता नहीं चलता है कि उन्होंने दोबारा हिंदू धर्म को अपनाया.
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए आगे कहा,
"मौजूदा केस में याचिकाकर्ता जन्म से ईसाई हैं. और वो किसी जाति से नहीं हो सकतीं. क्योंकि ईसाई धर्म अपनाने वाला व्यक्ति अपनी जातिगत पहचान खो देता है. दोबारा धर्मांतरण को लेकर सिर्फ दावे के अलावा कुछ सबूत होने चाहिए. इसका कोई सबूत नहीं है कि वो या उनका परिवार दोबारा हिंदू धर्म में परिवर्तित हुआ. अनुसूचित जाति में लाभ लेने के लिए उन्हें दोबारा धर्मांतरण और अपनी मूल जाति में जाने का ठोस सबूत देना होगा."
कोर्ट ने ये भी कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां सभी नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है. लेकिन इस आधार पर, धर्म को लेकर दोनों दावों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. और याचिकाकर्ता ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद एक हिंदू के रूप में अपनी पहचान बनाकर नहीं रख सकती हैं.
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