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'सिविल केसों को आपराधिक बना रही यूपी पुलिस', SC ने बुरा सुनाया, DGP को तलब किया

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के DGP को निर्देश दिया है कि वे हलफनामा (affidavit) दाखिल करें. इस हलफनामे में बताया जाए कि शरीफ अहमद बनाम उत्तर प्रदेश स्टेट मामले में कोर्ट के पिछले आदेश में दिए गए निर्देशों पर क्या कदम उठाए गए हैं.

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CJI संजीव खन्ना और यूपी के DGP प्रशांत कुमार. (India Today/ANI)

सुप्रीम कोर्ट ने 7 अप्रैल को उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई है. सर्वोच्च अदालत ने सिविल विवादों को तेजी से आपराधिक मामलों में बदलने को लेकर यूपी पुलिस को जमकर सुनाया है. कोर्ट ने इसे 'कानून के शासन (Rule of Law) का पूरी तरह उल्लंघन' करार दिया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबकि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के DGP को निर्देश दिया है कि वे एक हलफनामा (affidavit) दाखिल करें. इस हलफनामे में बताया जाए कि शरीफ अहमद बनाम उत्तर प्रदेश स्टेट मामले में कोर्ट के पिछले आदेश में दिए गए निर्देशों पर क्या कदम उठाए गए हैं.

जिस शरीफ अहमद केस का जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने किया उसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि जांच अधिकारी के लिए यह अनिवार्य है कि चार्जशीट में स्पष्ट और पूरा ब्योरा हो, ताकि कोर्ट के लिए भ्रम या अस्पष्टता की स्थिति ना बने.

क्यों नाराज़ हुआ सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट में जिस मामले की सुनवाई चल रही थी उसमें याचिकाकर्ता ने अपने ऊपर दर्ज FIR को रद्द करने की गुजारिश की थी. इस मामले की सुनवाई कर रही थी मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ. बेंच ने पाया कि याचिकाकर्ता पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138  के तहत चेक बाउंस का मामला भी चल रहा था. लेकिन उस पर आरोप लगे थे विश्वासघात (Criminal Breach of Trust), आपराधिक धमकी (Criminal Intimidation) और आपराधिक साज़िश (Criminal Conspiracy) के.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की. पीठ ने इस मामले में रेखांकित किया कि अगर कोई विवाद मूलतः सिविल प्रकृति का है (जैसे कर्ज़ या पैसों की वापसी), तो उसको आपराधिक रंग देना कानून का दुरुपयोग होगा. इसी संदर्भ में कोर्ट ने यूपी पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर टिप्पणी की और Rule of Law के उल्लंघन की बात कही.

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि यह आपराधिक मामला (criminal case) मूल रूप से सिविल लेन-देन से संबंधित है. उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस पर सख्त टिप्पणी की और इस प्रवृत्ति पर नाराजगी जताई कि सिविल मामलों को गलत तरीके से आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है.

CJI ने कहा,

"यह गलत है! यूपी में क्या हो रहा है? रोज़ सिविल मामलों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है. यह कानून के शासन का पूरी तरह से उल्लंघन है!"

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि संपत्ति या पैसे की वापसी को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता.

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि वह संभवतः जांच अधिकारी (Investigating Officer) के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही (contempt proceedings) शुरू कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने Sharif Ahmed बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं किया.

Sharif Ahmed मामले में न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि जांच अधिकारी (IO) को चार्जशीट के सभी कॉलम में स्पष्ट और पूर्ण जानकारी भरनी अनिवार्य है. ताकि कोर्ट यह स्पष्ट रूप से समझ सके कि कौन-सा अपराध हुआ है, किस आरोपी ने वह अपराध किया है और उस आरोप को साबित करने के लिए कौन-कौन से साक्ष्य उपलब्ध हैं.

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने सुनवाई के दौरान Sharif Ahmed केस को रेखांकित करते हुए ज़ोर देकर कहा कि जांच अधिकारी (Investigating Officer) को यह स्पष्ट रूप से बताना होगा कि इस मामले में आपराधिक मुकदमा कैसे बनता है. CJI ने कहा,

“हमने साफ़ कर दिया है कि उसे (IO को) केस डायरी में पूरा विवरण देना होगा, जो उसने नहीं दिया. अगर केस डायरी दाखिल की जाती है, तो उसे गवाह के तौर पर बॉक्स में खड़ा होना पड़ेगा और कहना होगा कि यही मामला है.”

"...ये हास्यास्पद है कि सिर्फ पैसे न लौटाने को आपराधिक अपराध बना दिया जाए...मैं IO को गवाह कटघरे में बुलाऊंगा...उन्हें खुद खड़े होकर यह बताना होगा कि किस आधार पर अपराध बनता है. हम ऐसा निर्देश देंगे ताकि वह सबक सीखे. ऐसे चार्जशीट नहीं भरी जाती."

अदालत ने कहा कि जब मामले की फिर से सुनवाई हो तो उत्तर प्रदेश के DGP शपथ-पत्र (affidavit) दाखिल करें. कोर्ट ने कहा कि DGP यह स्पष्ट करें कि क्या उन्होंने Sharif Ahmad के फैसले में दिए गए निर्देशों का पालन किया है या नहीं, और इस पर अपना रुख कोर्ट को बताएं.

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