सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी करने या उन आंकड़ों को लेकर सरकार की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. जाति सर्वे की वैधता के खिलाफ दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि वो राज्य सरकार या किसी भी सरकार के नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. इस सुनवाई से पहले बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर को जाति सर्वे का आंकड़ा जारी कर दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर बिहार सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है. इस मामले पर अगली सुनवाई जनवरी 2024 में होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहकर बिहार जातिगत सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया?
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा था कि डेटा गैर-कानूनी तरीके से इकट्ठा किये गए और इसका कोई वैध उद्देश्य भी नहीं है.
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इंडिया टुडे से जुड़े संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस वी एन भट्टी की बेंच ने मामले पर सुनवाई की. याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के रुख का इतंजार किए बिना जाति गणना के आंकड़े जारी कर दिए गए. साथ ही कहा गया कि ये डेटा गैर-कानूनी तरीके से इकट्ठा किये गए और डेटा जुटाने का कोई वैध उद्देश्य भी नहीं है.
इस पर कोर्ट ने रोक लगाने से साफ इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"हम अभी किसी चीज पर रोक नहीं लगा रहे हैं. हम राज्य सरकार या किसी भी सरकार के नीतिगत फैसलों पर रोक नहीं लगा सकते. ये गलत होगा...हम दूसरे मुद्दे की जांच करने जा रहे हैं कि इस गणना को कराने के लिए राज्य सरकार के पास शक्ति है या नहीं."
जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि मामले में पटना हाई कोर्ट का आदेश बहुत विस्तृत है कि पॉलिसी के लिए डेटा क्यों जरूरी है. आकंड़े अब सार्वजनिक हो चुके है. कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने की याचिकाकर्ता की मांग पर भी आदेश देने से इनकार कर दिया.
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याचिकाकर्ताओं की ओर से ये भी कहा गया कि बिहार सरकार ने कोर्ट की सुनवाई के बीच आंकड़ा जारी कर दिया. इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने बिहार सरकार से पूछा कि आपने डेटा क्यों प्रकाशित किया?
बिहार सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील श्याम दीवान ने कहा कि कोर्ट को अभी यह तय करना था कि वह इस मामले में नोटिस जारी करेगी या नहीं. उन्होंने दलील दी कि इसका मतलब ये है कि कोर्ट की तरफ से डेटा पब्लिश करने पर कोई रोक नहीं थी.
इससे पहले जाति सर्वे के मामले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट में कहा गया था कि राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं है. लेकिन राज्य सरकार ने कोर्ट में कलेक्शन ऑफ स्टेटिस्टिक्स एक्ट का हवाला दिया और कहा कि राज्य सरकार को जाति सहित हर तरह की गणना और सर्वे का अधिकार है. बिहार सरकार ने 'सर्वे' शब्द के इस्तेमाल पर जोर दिया. एक अगस्त, 2023 को हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि जाति सर्वे कराना वैध और पूरी तरह कानूनी है.
फिर पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इस मामले में विस्तृत सुनवाई के बिना कोई आदेश जारी नहीं करेगा. इस बीच 2 अक्टूबर को बिहार सरकार ने जाति सर्वे का आंकड़ा जारी कर दिया. पता चला है कि बिहार अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) की कुल आबादी 63 फीसदी से ज्यादा है. वहीं राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी 19.65 फीसदी है. अगड़ी जाति में आने वाले लोगों की आबादी 15.52 फीसदी है.
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