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ANI का 'टैक्स चोरी' विवाद क्या है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है

टैक्स चोरी की जानकारी देने वाले ने बताया कि उसे नियम के तहत इनाम की पूरी राशि नहीं मिली.

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ANI की ओर से कहा गया है कि मौजूदा मामले में न्यूज एजेंसी पार्टी के तौर पर शामिल नहीं है (सांकेतिक फोटो: ANI/आजतक)

सुप्रीम कोर्ट ने समाचार एजेंसी ANI से जुड़े टैक्स चोरी के मामले की सूचना देने वाले व्यक्ति को मिली इनाम राशि पर फिर से विचार करने को कहा है. कोर्ट ने ये निर्देश केंद्र सरकार को दिया है. इस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की थी कि टैक्स चोरी की सूचना देने के एवज में वो जितनी इनामी राशि का हकदार था, उसे उतनी राशि नहीं दी गई. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने कई साल पहले ANI मीडिया प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े टैक्स चोरी मामले की जानकारी दी थी. 

ANI की ओर से जारी किया गया बयान

इस मामले पर ANI की ओर से कहा गया है कि मौजूदा मामले में न्यूज एजेंसी पार्टी के तौर पर शामिल नहीं है. न्यूज एजेंसी ने लाइव लॉ की रिपोर्ट पर जवाब दिया है कि साल 2010 में कंपनी को अपर्याप्त सर्विस टैक्स के भुगतान से जुड़ा आधिकारिक डिमांड मिला था. कंपनी ने तभी इसका बिना किसी विरोध के कानून के तहत पालन किया था. ANI की ओर से ट्वीट किया गया,

“ANI मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ('ANI') पांच दशकों से अधिक समय से एक मल्टीमीडिया न्यूज एजेंसी है. 2010 में, ANI को अपर्याप्त सर्विस टैक्स के भुगतान का आधिकारिक डिमांड रिसीव हुआ था. इस पर ANI की ओर से बिना किसी विरोध के स्वेच्छा से और विधिवत पालन किया गया था. इसे संबंधित अधिकारियों की ओर से स्वीकार कर मामला बंद कर दिया गया था. ANI सभी लागू कानूनों का पूरा पालन कर रहा है और आज की तारीख में कंपनी के खिलाफ कोई बकाया टैक्स डिमांड नहीं है.”

ANI की ओर से आगे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है, जो कंपनी से संबंधित नहीं है. इस मामले में ANI पार्टी के तौर पर शामिल नहीं है. 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश किस मसले से जुड़ा है?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश केतन कांतिलाल मोदी बनाम भारत संघ मामले पर आया है. सुप्रीम कोर्ट में अपील के दौरान केतन कांति लाल ने दलील दी थी कि उन्होंने अधिकारियों को 2.59 करोड़ के सर्विस टैक्स चोरी की जानकारी दी थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, ये मामला M/s एशियन न्यूज इंटरनेशनल (ANI) प्राइवेट लिमिटेड का था. अपील करने वाले ने दावा किया कि ये जानकारी देने पर, डिफॉल्टर आगे आया और स्वेच्छा से 2.59 करोड़ रुपये के सर्विस टैक्स का भुगतान किया. जैसा कि ANI की ओर से जारी किए गए स्टेटमेंट में भी साफ किया गया है. 

इसकी जानकारी देने वाले को यानी इस मामले के अपीलकर्ता को इसके लिए साढ़े पांच लाख रुपये का इनाम मंजूर किया गया. जबकि अपीलकर्ता का दावा है कि नियम के मुताबिक उन्हें 51 लाख 80 हजार रुपये का इनाम मिलना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट से की गई अपील में "सूचना देने वालों और सरकारी कर्मचारियों को नीति-प्रक्रिया और दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए पुरस्कार" के खंड 4.1 का हवाला दिया गया. 
कहा गया कि इस पॉलिसी में बताए गए नियम के तहत टैक्स चोरी की जानकारी देने वाले को इनाम में दी जाने वाली राशि प्राप्त की गई राशि के साथ जुर्माने की राशि मिलाकर उसका 20 फीसदी तक होना चाहिए.

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने इनाम मंजूर करने वाली वित्त मंत्रालय की कमिटी को फिर से विचार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कमिटी ये तय करे कि सूचना देने वाला पहले दी गई इनामी राशि से अधिक का हकदार है या नहीं.

रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने इनाम के लिए बनाई गई पॉलिसी के खंड 4.1 के तहत रिकवर राशि के 20 फीसदी की बजाय इनाम में सिर्फ 5.50 लाख रुपये दिए जाने पर चिंता जताई. इस मामले में इनाम निर्धारित करने वाली समिति को 6 महीने के अंदर फैसला लेने के लिए कहा गया है.

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