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सुप्रीम कोर्ट ने असम में लगाई बुलडोजर एक्शन पर रोक, सरकार को नोटिस भी दे दिया

Assam Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालत की मंजूरी के बिना कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी.

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48 याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि असम के अधिकारियों ने अदालत के फैसले की अनदेखी की है. (फोटो- PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को एक नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने राज्य सरकार से 48 नागरिकों द्वारा दायर अवमानना याचिका को लेकर जवाब मांगा है (Supreme Court issues notice to Assam). याचिका में राज्य सरकार पर स्ट्रक्चर्स को गिराने के टॉप कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों को अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश भी जारी किया है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की दो जजों की बेंच ने असम सरकार को नोटिस जारी किया है. इंडिया टुडे से जुड़े संजय शर्मा और सृष्टि ओझा की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने राज्य सरकार को 21 दिनों में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ताओं के वकील हुजेफा अहमदी ने असम सरकार की कार्रवाई को ‘शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन’ करार दिया. हालांकि, बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि असम सरकार द्वारा कोई भी डिमॉलिशन नहीं किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

"अभी तक कोई तोड़फोड़ नहीं की गई है. हम नोटिस जारी करेंगे."

टॉप कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालत की मंजूरी के बिना कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी.

बता दें कि 48 याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि असम के अधिकारियों ने अदालत के फैसले की अनदेखी की है. उनका आरोप था कि उनके घरों को ध्वस्त करने के लिए चिह्नित किया गया है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वो इन प्रॉपर्टीज में दशकों से रह रहे हैं, उनके पास इनकी पावर ऑफ अटॉर्नी भी है.

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का हवाला

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वो मूल भूमिधारकों के साथ पावर ऑफ अटॉर्नी समझौते के आधार पर दशकों से संपत्ति पर रह रहे हैं. याचिकाकर्ता ने ये भी तर्क दिया कि निवासियों को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना तोड़फोड़ की गई है. साथ ही उन्हें उनके घरों और आजीविका से वंचित कर दिया गया है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मिलने वाले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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