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सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी फिर भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर 'पिटाई' कर दी, अब जज और पुलिस अवमानना के दोषी, कोर्ट ने क्या सुनाया?

Supreme Court ने कहा कि पुलिस ने हिरासत की मांग 'सरासर अवहेलना' में की थी और ये 'अवमानना' के बराबर था.

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कोर्ट ने अवमानना ​​करने वालों को 02 सितंबर, 2024 को मौजूद रहने को कहा है. (फ़ोटो - सुप्रीम कोर्ट)

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक जज पर सूरत के एक बिल्डर को पुलिस की हिरासत में भेजने के मामले में 'पक्षपाती' और 'मानमाने' तरीक़े से काम करने का आरोप लगाया है. साथ ही, कोर्ट ने एडिशनल चीफ़ न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) दीपा एस ठाकर और वेसु पुलिस स्टेशन के सस्पेंडेड इंस्पेक्टर आर.वाई. रावल को बिल्डर को हिरासत में पूछताछ के लिए भेजने के लिए अवमानना ​​का दोषी ठहराया है (Supreme Court held ACJM and suspended inspector of Vesu police station). जबकि आला अदालत ने उसे गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत दे दी थी.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने धोखाधड़ी के एक मामले में बिल्डर तुषार शाह को अग्रिम जमानत (कानूनी प्रावधान, जो आरोपी को गिरफ़्तार होने से पहले जमानत के लिए एप्लिकेशन करने की मंजूरी देता है) दी थी. पीठ ने कहा कि पुलिस ने उसकी हिरासत की मांग 'सरासर अवहेलना' में की थी और ये 'अवमानना' के बराबर था.

कोर्ट ने क्या-क्या सुनाया?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिमांड एप्लिकेशन में जांच अधिकारी रावल ने जो शाह द्वारा जांच में सहयोग न करने के बारे में बताया था, वो 'गढ़ा हुआ' और 'कोर्ट की आंखों में धूल झोंकने' की कोशिश थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रावल ने 12 दिसंबर, 2023 को मामले की सिर्फ़ कुछ घंटों तक जांच की और तुरंत ACJM से पुलिस हिरासत मांगी. शाह की हिरासत मांगने वाला एप्लेकेशन 'ये तो नहीं बताता कि उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया था.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असहयोग के आधार पर आरोपी की हिरासत मांगते समय इंस्पेक्टर के 'कार्रवाई में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं थी.'

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कुछ और अहम कमेंट किए. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक़, कोर्ट ने कहा,

अगर जांच अधिकारियों (अब अवमाननाकर्ता) को पुलिस हिरासत मांगने की ज़रूरत थी ही, तो उन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए था. अदालतों से ये अपेक्षा नहीं की जाती कि वो जांच एजेंसियों के दूत की तरह काम करें. रिमांड आवेदनों को नियमित रूप से मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.

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पूरा मामला क्या है?

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़, तुषार शाह के ख़िलाफ़ 27 जुलाई, 2023 को वेसू पुलिस ने 1.65 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था. फिर 8 दिसंबर 2023 को इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अग्रिम ज़मानत मिल गई थी. लेकिन जब शाह 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के अग्रिम ज़मानत आदेश के साथ वेसू पुलिस स्टेशन गए, तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. बाद में, उसी दिन 25,000 रुपये के ज़मानत बांड पर उन्हें रिहा भी कर दिया गया. उन्हें अपना बयान दर्ज करने के लिए 12 दिसंबर को पुलिस के सामने पेश होने के लिए कहा गया.

लेकिन 12 दिसंबर को जब शाह पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो उन्हें धोखाधड़ी के मामले में फिर से गिरफ़्तार कर लिया गया. इसके बाद उन्हें अगले दिन एडिशनल चीफ़ न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) के सामने पेश किया गया. इस पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें चार दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया. शाह का आरोप है कि पुलिस हिरासत में रहने के दौरान उन्हें धमकाया और पीटा भी गया. इसके बाद शाह को सूरत सेंट्रल जेल भेज दिया गया. यहां से उन्हें कुछ दिनों के बाद ज़मानत पर फिर रिहा किया गया. 

शाह ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की थी. 5 अक्टूबर, 2023 को हाई कोर्ट ने उन्हें अग्रिम ज़मानत देने से मना. कर दिया था. और फिर, उन्होंने 7 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की ​​याचिका दायर की. जनवरी में भी इस मामले की सुनवाई हुई थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित सूरत मजिस्ट्रेट और गुजरात पुलिस को फटकार लगाई थी. राज्य ने तब कोर्ट को बताया था कि संबंधित अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है. इसी मामले में अब फ़ैसला आया है. कोर्ट ने अवमानना ​​करने वालों को उनकी सजा तय करने के लिए 02 सितंबर, 2024 को मौजूद रहने को कहा है.

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