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जब शेख हसीना को बचाने के लिए भारतीय सेना 3 जगहों से बांग्लादेश में घुसने ही वाली थी

हाल में पेंग्विन इंडिया की तरफ से प्रकाशित हुई किताब, India’s Near East: A New History में डॉक्टर Avinash Paliwal साल 2009 में हुआ एक घटनाक्रम बताते हैं.

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बांग्लादेश में माहौल एक बार फिर चिंताजनक बन गए हैं. (फ़ोटो/इंडिया टुडे)

प्रणब मुखर्जी उन दिनों वित्त मंत्री हुआ करते थे. एक रोज़ आधी रात प्रणब दा के घर की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठाया. दूसरी तरफ, बांग्लादेश की PM शेख हसीना की कंपकपाती आवाज थी. हसीना मदद मांग रही थीं. संकट की स्थिति में राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर शेख हसीना का पहला कॉल PM ऑफिस जाना चाहिए था. लेकिन चूंकि प्रणब मुखर्जी बंगाल से आते थे और उनकी हसीना से पुरानी जान पहचान थी, इसलिए हसीना ने सीधे उन्हें कॉल किया. प्रणब समझ गए कुछ बहुत बुरा हुआ है या होने वाला है. 

ये बात है साल 2009 की. अब 2024 आ चुका है. बांग्लादेश में माहौल एक बार फिर चिंताजनक बन गए हैं. पहले आरक्षण के मसले पर शुरू हुए प्रदर्शन ने विद्रोह की शक्ल ली. प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के घर पर कब्ज़ा कर लिया. और अंत में उन्हें देश छोड़ना पड़ा. मुसीबत की इस घड़ी में शेख हसीना एक बार फिर भारत की शरण में हैं. फिलहाल आपको लेकर चलते हैं इतिहास की तरफ. 

हाल में पेंग्विन इंडिया की तरफ से प्रकाशित हुई किताब, India’s Near East: A New History में डॉक्टर Avinash Paliwal साल 2009 में हुआ एक घटनाक्रम बताते हैं. जब भारत की फौज ने बांग्लादेश में घुसने की तैयारी कर ली थी.

- क्या हुआ था 2009 में?
- सेना की जरूरत क्यों पड़ी? 
- कैसे 2009 में भारत ने शेख हसीना की मदद की?
- पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI का इस पूरे प्रकरण में क्या रोल था? 

#तख्तापलट 

26 फरवरी, 2009 की तारीख. शाम के पांच बजे थे. मेजर कमलदीप सिंह संधु दिन का काम निपटा ही रहे थे कि एक इमरजेंसी कोड एक्टिवेट हुआ. ऑर्डर था कि पैराट्रूपर की एक बटालियन बराबर स्ट्राइक फ़ोर्स को तुरंत तैयार किया जाए. ऐसा ही एक इमरजेंसी कोड पिछली रात भी मिला था. लेकिन आख़िरी समय में उसे वापिस ले लिया गया था. इस बार हालांकि ऑर्डर आने के कुछ ही घंटों के भीतर पांच Ilyushin Il-76 और Antonov An-32 कार्गो विमान लैंड हुए. और ढाई घंटे के भीतर मेजर संधु ने खुद को कलाईकुंडा में पाया. कलाईकुंडा पश्चिम बंगाल में स्थित एयर फ़ोर्स स्टेशन है. जिसे खास तौर पर बंगाल की खाड़ी, अंडमान द्वीप समूह और आसपास के इलाकों में इस्तेमाल किया जाता है. कलाईकुंडा में उस रोज़ लगभग एक हजार भारतीय पैराट्रूपर्स लाए गए थे. सैन्य तैयारी शुरू हो चुकी थी. और ऐसा ही कुछ माहौल जोरहाट और अगरतला में भी था. 

ये सब क्यों हो रहा था? 

सारी तैयारी बांग्लादेश में एक ऑपरेशन को लेकर हो रही थी. बांग्लादेश की पैरामिलिट्री फ़ोर्स, बांग्लादेश राइफल्स, या BDR ने विद्रोह कर दिया था. BDR बांग्लादेश में बॉर्डर की रखवाली किया करती थी. ठीक उसी तरह जिस तरह भारत में BSF. इस विद्रोह की शुरुआत हुई थी एक समारोह से. शेख हसीना नई-नई PM चुनी गई थीं. फरवरी के महीने में उन्होंने BDR वीक नाम के साप्ताहिक समारोह का उद्घाटन किया. अगले ही रोज़ समारोह में हंगामा शुरू हो गया. 

दरअसल BDR के कुछ जवानों की शिकायत थी कि उच्च अधिकारी उनके साथ बुरा सुलूक करते हैं. बढ़ते-बढ़ते मामला इतना आगे पहुंच गया कि जवानों ने डायरेक्टर जनरल और बाकी उच्च अधिकारियों को होस्टेज बना लिया. ये खबर फैलते ही सेना हरकत में आई और BDR हेडक्वार्टर, पिलखाना, को चारों तरफ से घेर लिया गया. मामला यहीं नहीं रुका. देखते-देखते पूरे बांग्लादेश से हिंसा और आगजनी की खबरें आने लगीं. कई उच्च अधिकारियों की हत्या कर दी गई. यहां तक कि BDR के DG और उनकी पत्नी को भी मार डाला गया. मामला बढ़ता देख शेख हसीना ने भारत से मदद की गुहार लगाई.

Avinash Paliwal अपनी किताब में लिखते हैं, 

“हसीना को आर्मी पर भरोसा नहीं था. इसलिए उन्होंने भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को कॉल मिलाकर मदद मांगी. विदेश सचिव शिवशंकर मेनन तुरंत एक्टिव हुए. और उसी समय अमेरिका, ब्रिटेन और जापान को हसीना के पक्ष में लामबंद करने की कोशिशें होने लगीं.”

किताब के अनुसार भारत ने आर्मी भेजने का इरादा कर लिया था. शेख हसीना को बाहर निकालने का पूरा प्लान भी तैयार हो चुका था. ये प्लान क्या था, वो जानने से पहले हमें इस खेल के एक और खिलाड़ी के बारे में जानना होगा. 

#बांग्लादेश में ISI 

1 अप्रैल 2004. चिटगांव के पोर्ट पर हथियारों से भरे 10 ट्रक पकड़े गए. ये सब हथियार भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्रवादियों के लिए लाए जा रहे थे. और इस पूरे ऑपरेशन की देखरेख करने वाले शख्स का नाम था- परेश बरुआ. बरुआ उग्रवादी संगठन United Liberation Front of Assam (independent) यानी ULFA-I का मुखिया था. जिसे ढाका के एक सेफ हाउस में शरण मिली हुई थी. हथियारों की इस डील में हालांकि एक और शख्स का नाम आया था- Salahuddin Quader Chowdhury. 

ये कौन थे?

Bangladesh Nationalist Party से जुड़े बांग्लादेश के सांसद. जो तत्कालीन PM बेगम खालिदा जिया के खासमखास माने जाते थे. और 1971 से ही इनका पलड़ा पाकिस्तान और ISI की तरफ झुका हुआ था. 2004 में हथियारों का असाइनमेंट जिन ट्रकों में पकड़ा गया था. उनके मालिक Salahuddin Quader Chowdhury ही थे. ढाका में भारत के राजदूत रह चुके पिनाक रंजन चक्रवर्ती के अनुसार भारत में उग्रवाद फैलाने में चौधरी और खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान का बड़ा रोल था. 

जिन्हें नहीं पता उनके लिए बता दें. खालिदा जिया बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया उर रहमान की पत्नी हैं. इनकी पार्टी का नाम है Bangladesh Nationalist Party. जबकि शेख हसीना की पार्टी का नाम आवामी लीग है. दोनों का रिश्ता सांप और नेवले का रहा है. भारत के हिसाब से देखें तो खालिदा जिया को भारत विरोधी माना जाता है. खालिदा जिया 1991 से 2006 के बीच दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी है. साल 2001 में खालिदा जिया सत्ता में आई थीं, उस समय बांग्लादेश में भारत विरोधी सेंटीमेंट काफी बढ़ गए थे.

India’s Near East: A New History के अनुसार 2001 में भारत सरकार के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर ब्रजेश मिश्रा खालिदा जिया को मुबारकबाद देने ढाका गए थे. उन्होंने खालिदा के बेटे तारीक रहमान से मुलाकात की. और उनके सामने दो बिंदु रखे. 

- बांग्लादेश की जमीन से नार्थ ईस्ट में उग्रवाद को बढ़ावा मिल रहा है. इसे रोका जाए और,
- बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं की सुरक्षा की जाए. 

इन दोनों पॉइंट्स पर हालांकि कोई ध्यान नहीं दिया गया. 

खालिदा जिया के सत्ता में आने के तुरंत बाद जेसोर और भोला जिले में हिन्दुओं के घरों पर हमला किया गया. ये हमला जमात-ए-इस्लामी पार्टी के मेम्बर्स ने किया था. जो खालिदा सरकार में शामिल थी. ये पार्टी भी पाकिस्तान की समर्थक मानी जाती है.

खालिदा जिया के शासन में ही नार्थ ईस्ट में उग्रवाद को खूब बढ़ावा मिला. भारत ने तब अमेरिका की मदद से बांग्लादेश में एक्टिव 148 उग्रवादी कैम्पो की लिस्ट भी बांग्लादेश सरकार को सौंपी थी. लेकिन उनकी तरफ से जवाब आया, “हमने चेक कर लिया है. कोई कैंप नहीं है” 

अब सवाल ये कि BNP, जमात और ISI का 2009 के विद्रोह से क्या रिलेशन था? 

अपनी किताब में Avinash Paliwal, पिनाक चक्रवर्ती के हवाले से बताते हैं,

“खालिदा के शासन में जमात को खुली छूट मिल गई थी. इसलिए जमात के कई लोग बांग्लादेश राइफल्स में बड़े ओहदों पर तैनात हो गए.” 

चूंकि इनका पलड़ा पाकिस्तान और ISI की तरफ झुका हुआ था, इसलिए ये शेख हसीना सरकार के खिलाफ थे. Salahuddin Quader Chowdhury पर भी उस समय इल्ज़ाम लगा था कि हसीना की सरकार गिराने के लिए उन्होंने, जमात और BNP ने विद्रोह को बढ़ावा दिया है. इसी कारण 2009 में जब विद्रोह शुरू हुआ तो शेख हसीना को अपनी ही फौज पर भरोसा नहीं था. उन्होंने सीधे भारत को इत्तिला किया. हसीना की जिंदगी को खतरा न हो, इसलिए सेना ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन भी तैयार कर लिया था. 

# इंडियन आर्मी का प्लान

आर्मी का प्लान तीन तरफ से बांग्लादेश में दाखिल होने का था. सबसे पहले ढाका के दो एयरपोर्ट्स को सुरक्षित किया जाता. पहला- हजरत शाह जलाल एयरपोर्ट और दूसरा तेजगांव एयरपोर्ट, जो बांग्लादेश एयरफोर्स का बेस भी था. पैराट्रूपर्स को खास इंस्ट्रक्शन थे कि उनकी प्रायॉरिटी शेख हसीना हैं, इसलिए सेना ने उनके आवास गणभवन तक पहुंचकर उन्हें सुरक्षित निकालने की तैयारी कर ली थी.

Avinash Paliwal की किताब के अनुसार, बाकायदा, फर्स्ट लाइन ऑफ़ अटैक को हथियार भी बांटे जा चुके थे. अगर बांग्लादेश की सेना रेसिस्ट करती, तब क्या होता?

किताब में मेजर संधु बताते हैं, “अगर लड़ाई की जरूरत होती तो रीएनफोर्समेन्ट के लिए हमारी पूरी कोर तैयार थी.”

यानी लगभग 20 से 40 हजार सैनिक बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए तैयार थे. 

किताब के अनुसार भारत की तरफ से बांग्लादेश के आर्मी चीफ मोइनुद्दीन अहमद को सन्देश दे दिया गया था कि किसी हाल में शेख हसीना पर आंच नहीं आनी चाहिए. बांग्लादेश में मामला आर्मी वर्सेस पैरामिलिट्री फ़ोर्स हो चुका था. लेकिन जनरल मोइनुद्दीन ने फ़ोर्स का इस्तेमाल नहीं किया. क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा हुआ था भारतीय जवान बांग्लादेश में दाखिल हो जाएंगे. अंत में हालांकि भारत के दखल की जरूरत नहीं पड़ी. ऐसा क्यों हुआ, चलिए ये भी समझते हैं 

#कुछ न करने का असर

Avinash Paliwal अपनी किताब में कुछ दिलचस्प बिंदुओं को हाईलाइट करते हैं. पहले वो तीन बिंदु जानते हैं जिसके चलते भारत इस फुर्ती से आर्मी एक्शन के लिए तैयार हुआ.

पहला बिंदु - नवम्बर 2008 में मुम्बई में आतंकी घटना हुई थी. जिसमें पाकिस्तान का हाथ था. संभव था कि बांग्लादेश में विद्रोह के पीछे भी ISI का हाथ होता.
दूसरा पॉइंट - श्रीलंका में गृह युद्ध समाप्ति की ओर था. ऐसे में भारत अपने पड़ोस में अशांति बढ़ने का खतरा नहीं उठाना चाहता था. 
तीसरा पॉइंट - मई 2009 में चुनाव होने वाले थे. ऐसे में बांग्लादेश में अगर मामला आगे बढ़ता, तो उससे राजनैतिक रूप से निपटना मुश्किल होता.

इन तीन कारणों के चलते ही भारत बांग्लादेश में हुई घटनाओं पर तुरंत रिएक्शन दे रहा था. सेना भी तैयार थी. हालांकि अंत में आर्मी एक्शन की जरूरत नहीं पड़ी. बिना आर्मी एक्शन के, सिर्फ डर दिखाने से ही, भारत ने बांग्लादेश आर्मी को एक स्ट्रांग सिग्नल पहुंचा दिया था.

भारत के सहयोग की बदौलत ही शेख हसीना विद्रोह से निपटने में सफल रहीं. आर्मी अफसरों की गालियों की बीच उन्होंने विद्रोहियों का सामना किया. पांचवें दिन आर्मी टैंक्स पिलखना में दाखिल हुए और 200 BDR जवानों को गिरफ्तार किया गया. जितने अफसरों ने शेख हसीना के साथ बदतमीज़ी की थी उन सभी को बर्खास्त कर दिया गया. जमात के प्रभाव को कम करने के लिए बाद में BDR को ही भंग करते हुए, Border Guard Bangladesh (BGB) की स्थापना हुई. जिसमें नए सिरे से अफसरों की भर्ती की गई.

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