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तुम्ही कोणत्या बाजूने आहात! शरद पवार से हर कोई ये क्यों कह रहा है?

क्या शरद पवार विपक्षी गठबंधन का सिर दर्द बढ़ाने वाले हैं या एक बार फिर बीजेपी को 'गूगली' देंगे?

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शरद पवार ने बीजेपी के साथ जाने से इनकार किया है. (तस्वीरें- पीटीआई)

शरद पवार की अध्यक्षता वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में 'फूट' के बाद डेढ़ महीने का समय बीत चुका है. लेकिन इस बड़े राजनीतिक घटनाक्रम को अब तक कई लोग समझ नहीं पाए हैं. अब भी काफी कुछ साफ होना बाकी है. क्योंकि महाराष्ट्र में NCP की सहयोगी शिवसेना भी अब शरद पवार से सबकुछ साफ बताने को कह रही है. उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाला NCP गुट महाराष्ट्र सरकार में शामिल है. बीते एक महीने में शरद पवार कई बार अपने भतीजे अजित से मिल चुके हैं. इस दौरान उन्होंने विपक्षी नेताओं की आपत्ति के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच भी साझा किया. हालांकि 82 साल के शरद पवार ने BJP के साथ जाने की किसी भी संभावना को हमेशा खारिज किया है. इसके बावजूद शरद पवार के 'स्टैंड' को लेकर महा विकास अघाडी (MVA) गठबंधन में कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई है. खुद शिवसेना (उद्धव ठाकरे ग्रुप) ने शरद पवार से स्थिति साफ करने को कह दिया है.

ये कन्फ्यूजन तब और बढ़ गया, जब दो दिन पहले शरद पवार ने पुणे में अजित पवार के साथ एक 'सीक्रेट' मीटिंग की. ये बैठक एक उद्योगपति अतुल चोर्डिया के बंगले पर हुई थी. बताया गया कि दोनों के बीच एक घंटे तक बातचीत हुई थी. लेकिन जब 13 अगस्त को सोलापुर में पत्रकारों ने इस सीक्रेट मीटिंग के बारे में पूछा तो पवार ने कहा कि अजित उनके भतीजे हैं और भतीजे से मिलने में क्या दिक्कत है? पवार ने कहा कि अगर परिवार का कोई बड़ा व्यक्ति किसी घर के दूसरे सदस्य से मिलना चाहता है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

अजित पवार और शरद पवार (फाइल फोटो- पीटीआई)

शरद पवार दिक्कत नहीं होने की बात भले कर रहे हों, लेकिन शिवसेना (UBT) ने अपने मुखपत्र 'सामना' में खुलकर इस दिक्कत को जाहिर कर दिया है. 14 अगस्त के अपने संपादकीय में सामना ने लिखा है कि ऐसी मीटिंग से शरद पवार की छवि खराब हो रही है और यह सही नहीं है. पार्टी ने साफ लिखा है कि अजित पवार बार-बार शरद पवार से मिल रहे हैं और मजेदार ये है कि शरद पवार भी मिलने से इनकार नहीं कर रहे हैं. कुछ मीटिंग खुले में हो रही है तो कुछ सीक्रेट तरीके से. शिवसेना के मुताबिक, क्या ये बीजेपी की रणनीति है कि वो बार-बार अजित को शरद पवार से मुलाकात के लिए भेज रही, इसलिए लोगों के मन में भ्रम पैदा हो रहा है.

ये स्थिति कैसे पैदा हुई है, इसके पीछे एक क्रोनोलॉजी है. एक-एक कर बताते हैं.

2 जुलाई को NCP में बगावत हुई थी. अजित पवार समेत एनसीपी के 8 नेता बीजेपी के साथ सरकार में शामिल हो गए. कई दिनों तक शरद पवार और अजित गुट की तरफ से बयानबाजी चली. यहां तक कि पार्टी पर दावे किए जाने लगे. लेकिन इस बगावत के ठीक दो हफ्ते बाद 16 जुलाई को अजित पवार और उनके साथी मंत्री शरद पवार से मिलने पहुंचे थे. इस मुलाकात को मीडिया में 'अचानक' बताया गया था. ये भी खबर आई थी कि सभी मंत्रियों ने शरद पवार के पैर छुए थे. इस मीटिंग के बाद पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल ने मीडिया से सिर्फ इतना कहा था कि सभी नेताओं ने शरद पवार से पार्टी को एकजुट रखने की अपील की थी.

इससे पहले 14 जुलाई को भी अजित ने शरद पवार से मुलाकात की थी. उसी दिन शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार सर्जरी के बाद घर वापस आई थीं. मुलाकात के बाद अजित ने कहा था कि वे अपनी चाची से मिलने गए थे, क्योंकि वो अस्पताल में थीं. वहां शरद पवार के साथ सुप्रिया सुले भी मौजूद थीं. अजित पवार ने तब कहा था कि उन्हें चाचा ने शिक्षा विभाग से जुड़ा एक लेटर भी दिया, जो 2021-22 का है. अजित ने ये भी कहा था कि शरद पवार उनके लिए प्रेरणास्रोत हैं, उनके चैंबर में अब भी शरद पवार की तस्वीर है.

16 जुलाई की मीटिंग के ठीक एक दिन बाद, यानी 17 जुलाई को फिर से अजित के साथ NCP के सभी मंत्री शरद पवार से मिलने पहुंच गए. इस मीटिंग के बाद भी प्रफुल्ल पटेल ने ही मीडिया को बयान दिया. उन्होंने बताया था कि एक दिन पहले जो विधायक (अजित गुट) शरद पवार से नहीं मिल पाए थे, आज वे लोग भी आए. उन्होंने कहा कि सभी नेता पवार साहब से आशीर्वाद लेने गए थे.

18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक होनी थी. शरद पवार भी बैठक में दूसरे दिन पहुंचे थे. लेकिन बैठक में शामिल होने से पहले पवार ने ये भी कह दिया था कि विपक्षी एकता संभव है लेकिन ये एक आसान काम नहीं है. अंग्रेजी अखबार 'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत करते हुए पवार ने कहा था कि इसमें कई दिक्कतें आने वाली हैं, जिससे हम इनकार नहीं कर सकते. उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में TMC और कांग्रेस मुख्य विरोधी पार्टियां हैं. इसी तरह केरल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस विरोधी हैं. पवार ने साफ कहा था कि अगर इन मुद्दों को नहीं सुलझाया गया तो हमें चुनाव के बाद गठबंधन पर भी ध्यान देने की जरूरत पड़ेगी. हमें दूसरे राजनीतिक विकल्प के लिए भी तैयार होना चाहिए.

फिर आया अगस्त का पहला दिन. शरद पवार पुणे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर दिखे. ये कार्यक्रम लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह का था. शरद पवार चीफ गेस्ट थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) के कई नेताओं ने कार्यक्रम में जाने से शरद पवार को रोकने भी कोशिश की थी. कुछ नेताओं ने कहा था कि मोदी-पवार की इस मुलाकात से विपक्षी गठबंधन को लेकर गलत संदेश जाएगा. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन से कुछ नेताओं ने अपील की थी कि वे पवार को समझाएं. इसके बावजूद शरद पवार ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया था.

पुणे में कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी के साथ शरद पवार (फोटो- पीटीआई)

कुछ दिन पहले शरद पवार ने चुनाव आयोग को एक चिट्ठी में बताया था कि उनकी पार्टी में कोई फूट नहीं है. दरअसल, अजित गुट ने पार्टी और चुनाव चिह्न पर दावे के लिए आयोग में याचिका दायर की थी. इसी पर शरद पवार गुट से भी जवाब मांगा गया था. जवाब में सीनियर पवार ने कहा था कि अजित गुट की मांग बेबुनियाद है, उनकी याचिका से साबित नहीं होता कि पार्टी बंटी हुई है. पवार ने याचिका को खारिज करने की भी मांग की थी.

अब 13 अगस्त को पवार ने सोलापुर में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ मंच साझा किया. ये कार्यक्रम संगोला में था. महाराष्ट्र के दिग्गज नेता गनपतराव देशमुख की मूर्ति के अनावरण का मौका था.

ये सब महज घटनाक्रम हैं. लेकिन इन सबके बाद उनके रुख पर सवाल उठने लगे. हालांकि सोलापुर में शरद पवार ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि BJP के साथ कोई भी जुड़ाव एनसीपी की राजनीतिक नीति में फिट नहीं बैठता है. उन्होंने बताया कि NCP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर स्पष्ट करता हूं कि पार्टी बीजेपी के साथ नहीं जाएगी. पवार ने ये भी कहा कि कुछ "शुभचिंतक" उन्हें मनाने की कोशिश में हैं कि वो बीजेपी के साथ चले जाएं, लेकिन कोई गठबंधन नहीं होगा.

BJP के साथ जाने पर शरद पवार

ये कोई पहली बार नहीं है जब शरद पवार पर इस तरह के आरोप लग रहे हों. वो खुद ही बीजेपी के साथ कई बार हुई बातचीत के बारे में बोल चुके हैं. 8 जुलाई को इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में पवार ने कहा था कि उन्होंने बीजेपी के साथ जाने के लिए तीन बार चर्चा की थी. बोले, 

"हमने 2014, 2017 और 2019 में बीजेपी के साथ बातचीत की थी, लेकिन मैंने तय किया था कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि हम विचारधारा पर सहमत नहीं हैं. इसलिए हमने चर्चा करके कुछ गलत नहीं किया क्योंकि ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. महत्वपूर्ण बात ये है कि मैं कभी भी बीजेपी के साथ नहीं गया."

इससे पहले 29 जून, 2023 को शरद पवार ने बीजेपी को लेकर बड़ा बयान दिया था. कहा था कि 2019 में अजित पवार का BJP के साथ जाना उनकी एक ‘गूगली’ थी ताकि BJP की सत्ता की भूख को सबके सामने लाया जा सके. नवंबर 2019 में अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस (सीएम) के साथ डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली थी. लेकिन तीन दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार और 2019 के इस पूरे घटनाक्रम पर ‘36 डेज़ ए पॉलिटिकल क्रॉनिकल ऑफ एंबिशन, डिसेप्शन, ट्रस्ट एंड बिट्रेयल’ किताब लिखने वाले कमलेश सुतार ने कुछ समय पहले दी लल्लनटॉप को बताया था, 

"शरद पवार ने पीएम मोदी से मुलाकात कर साथ सरकार बनाने का न्योता दिया था. लेकिन पवार ने शर्त ये रखी थी कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नहीं बनने चाहिए. लेकिन मोदी और BJP को ये शर्त मंजूर नहीं थी. और बात आगे नहीं बढ़ सकी."

शरद पवार के रुख पर शिवसेना (UBT) सांसद संजय राउत ने भी भ्रम दूर करने की अपील की है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 अगस्त को उद्धव ठाकरे के घर महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले पहुंचे थे. संजय राउत ने बताया कि इस मीटिंग में वे भी मौजूद थे. सभी ने इस पर सहमति जताई कि शरद पवार को अपनी स्थिति साफ करना चाहिए. राउत ने कहा कि पवार को अपने गुट के स्टैंड के बारे में कन्फ्यूजन दूर करना चाहिए. उनकी मीटिंग (अजित के साथ) से लोगों के मन में सिर्फ भ्रम पैदा होगा, जो आने वाले चुनावों में MVA गठबंधन को महंगा पड़ेगा.

बहरहाल, शरद पवार क्या फैसले लेने वाले हैं ये तो उनके राजनीतिक सहयोगियों को भी नहीं मालूम है. और हम भी पर्यवेक्षक की भूमिका में राजनीति की इस कसरत को देख रहे हैं.