28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होने वाला है. नई संसद के साथ एक शब्द और चर्चा में है. सेंगोल. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 24 मई को बताया कि सेंगोल को लोकसभा में स्पीकर के पास रखा जाएगा. उन्होंने बताया कि सेंगोल शब्द तमिल भाषा के 'सेम्मई' से आया है. सेंगोल चोल साम्राज्य के समय (8वीं सदी) से चला आ रहा है. इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. अमित शाह ने बताया कि सेंगोल जिसे प्राप्त होता है उससे न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन की अपेक्षा रखी जाती है.
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अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि इस सेंगोल को खोजने की तलाश प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी गई एक चिट्ठी से हुई. ये चिट्ठी जानी मानी क्लासिकल डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने लिखी थी. रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि इस चिट्ठी में पद्मा सुब्रमण्यम ने तमिल पत्रिका 'तुगलक' में छपे एक आर्टिकल का हवाला दिया गया. इसमें 1947 के उस समारोह की जानकारी थी, जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपा गया था. ये आर्टिकल मई 2021 में छपा था. पद्मा सुब्रमण्यम ने उसी साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सेंगोल से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करने की अपील की थी.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद ही सरकार ने सेंगोल की खोजबीन शुरू की. इसके लिए संस्कृति मंत्रालय ने एक टीम बनाई. इसमें इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA) के एक्सपर्ट भी मदद कर रहे थे.
सेंगोल सौंपने का कार्यक्रम जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' से ठीक पहले हुआ था. यानी 14 अगस्त 1947 की देर रात. सेंगोल तब से नेहरू के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) वाले उस आवास (आनंद भवन) पर रखा हुआ था, जो अब म्यूजियम बन चुका है. सत्ता हस्तांतरण की इस घटना को तस्वीरों के साथ भारतीय और विदेशी मीडिया ने छापा भी था.
IGNCA के सचिव प्रो सच्चिदानंद जोशी ने द हिंदू को बताया,
"देश विभाजन और हिंसा से त्रस्त था इसलिए कार्यक्रम को बहुत जल्दबाजी में आयोजित किया गया. चूंकि यह कानूनी या औपचारिक मामला नहीं था इसलिए इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रखा गया. इसका नतीजा ये हुआ कि पवित्र सेंगोल और यह समारोह भारत की यादों से गायब हो गया."
रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में तमिल मीडिया में इसके बारे खबरें दोबारा छपने लगी थीं कि किस तरह जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के लिए तमिलनाडु के चोल राजाओं की तरह 'सेंगोल मॉडल' को अपनाया था.
आजादी के दौरान 15 हजार कीमतरिसर्चर्स ने नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया के रिकॉर्ड्स, आजादी के वक्त के न्यूजपेपर्स और किताबों को खंगालना शुरू किया. जो जानकारी मिली, उसके मुताबिक सेंगोल में आभूषण जड़े थे. तब इसकी कीमत 15 हजार रुपये थी. इसे चेन्नई के हीरा व्यापारी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी एंड सन्स ने बनाया था. सूत्रों ने द हिंदू को बताया कि वुम्मिदी बंगारू चेट्टी परिवार ने इसकी पुष्टि की थी कि उन्होंने सेंगोल को बनाया. परिवार में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की उम्र 95 साल है. वे ज्यादा जानकारी नहीं दे पाए. हालांकि उनके घर में कार्यक्रम के दौरान की तस्वीर लगी है.
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इससे जुड़ा एक किस्सा अमित शाह ने 24 को मई को सुनाया. उन्होंने बताया,
“आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा था कि ब्रिटिश से भारतीयों के हाथ में सत्ता हस्तांतरण के लिए किस विशिष्ठ कार्यक्रम का आयोजन कराया जाना चाहिए. पंडित जी (नेहरू) कन्फ्यूज थे. उन्होंने समय मांगा और कहा कि साथियों से चर्चा कर बताऊंगा. इसके लिए पंडित नेहरू ने सी राजगोपालाचारी से सलाह ली. राजगोपालाचारी ने ही सेंगोल परंपरा के बारे में उन्हें बताया. इसके बाद पंडित नेहरू ने तमिलनाडु के अधीनम से लाए गए सेंगोल को अंग्रजों के हाथों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया.”
शाह ने यह भी कहा कि सरकार का मानना है कि इस पवित्र सेंगोल को किसी म्यूजियम में रखना अनुचित है. सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त और पवित्र स्थान हो ही नहीं सकता. जिस दिन संसद भवन का उद्घघाटन होगा, उसी दिन सेंगोल को भी लोकसभा स्पीकर के आसन के पास स्थापित करेंगे.
वीडियो: नए संसद भवन में पीएम मोदी जिस सेंगोल को स्थापित करेंगे उसकी पूरी कहानी