"विनायक दामोदर सावरकर बुलबुल पर बैठकर जेल से बाहर आते थे और मातृभूमि की यात्रा करते थे."
"जेल में बुलबुल आती थी, सावरकर उस पर बैठकर उड़ जाते थे" - कर्नाटक के स्कूल की किताब में लिखा है
जब कर्नाटक के मंत्री बीसी नागेश से जब इस बारे में सवाल किया गया तो बोले- "ठीक लिखा है."
ये कर्नाटक की स्कूल टेक्स्टबुक में सावरकर (Karnataka Textbook on Savarkar) के जेल के अनुभवों पर लिखा हुआ है. इंडिया टुडे के मुताबिक अध्याय का एक हिस्सा बताता है कि अंडमान निकोबार की जेल में कैद सावरकर हर रोज बाहर निकलते थे और इसके लिए वो पक्षियों (Birds) की मदद लेते थे. रिपोर्ट के मुताबिक अध्याय के एक हिस्से में हैरतअंगेज दावे के साथ लिखा है,
"सावरकर जिस कमरे में कैद थे वहां कोई छोटा-सा छेद तक नहीं था. हालांकि कहीं से बुलबुल वहां आ जाती थी, जिस पर बैठकर सावरकर उड़कर बाहर चले जाते थे और रोज मातृभूमि को देखने आते थे."
रिपोर्ट के मुताबिक ये चैप्टर कन्नड़ भाषा में लिखा गया है और 8वीं के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. इसका नाम है 'कलावन्नू गेडावरू'. लेखक हैं केटी गाटी. इससे पहले किताब में 'ब्लड ग्रुप' नाम का अध्याय पढ़ाया जा रहा था, जिसे विजयमाला रंगनाथ ने लिखा था.
दी हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक ये अध्याय सावरकर के जीवन से जुड़ा एक यात्रा विवरण है. इसमें लेखक ने अंडमान की सेल्युलर जेल के बारे में बताया है. ब्रिटिश शासन के दौरान सावरकर को इस जेल में रखा गया था. अब चैप्टर का हिस्सा सामने आया है तो आरोप लग रहे हैं कि अध्याय में सावरकर को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है. दी हिंदू ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि पहले इसे लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई गई, लेकिन 'सावरकर के बुलबुल पर बैठकर जेल से बाहर जाने' वाला हिस्सा वायरल होते ही कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसायटी के पास शिकायतें आना शुरू हो गईं.
रिपोर्ट के मुताबिक आम लोगों से लेकर टीचरों ने भी इस पैराग्राफ पर आपत्ति दर्ज कराई है. एक टीचर ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर अखबार से कहा,
“अगर लेखक ने मेटाफॉरिकली (यानी लाक्षणिक दृष्टि से) सावरकर की तारीफ की है तो कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन लिखा इस तरह गया है जैसे ये सब सच हो. छात्रों को ये समझाना बहुत कठिन है. अगर उन्होंने इस बारे में सवाल पूछ लिए और सबूत मांगा तो हम ये कैसे करेंगे?”
उधर, कर्नाटक के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के मंत्री बीसी नागेश से जब इस बारे में सवाल किए गए तो वो बोले,
“सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें कितना ग्लोरिफाई किया गया है. ये उनके बलिदान के बराबर नहीं है.”
बीसी नागेश ने कहा है कि लेखक ने अध्याय में जो भी लिखा है, वो ठीक है.
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