इस साल के झेंडे के दिन (15 अगस्त, 2018) एक फोटो सोशल मीडिया पर आया. फिर वायरल हो गया. इसमें एक पार्क में कुछ लोग झेंडे को सलामी दे रहे हैं. झेंडे को एक और आदमी सलामी दे रहा है. लेकिन वो कुछ दूर खड़ा है. शायद इसलिए क्योंकि उसके कपड़े मैले हैं. कंधे पर लटका झोला इस आदमी ने नहीं उतारा है. सबसे ज़्यादा ध्यान जाता है इस बात पर कि इस आदमी ने अपनी चप्पल उतार दी है.

इस तस्वीर को देखने के कई तरीके हैं. इस बात पर खुश हो जाइए कि देखो इस आदमी के मन में झेंडे के लिए कितना सम्मान है. या इस बात का सोग मनाइए कि झेंडे तक को सलामी देने के मामले में क्लास कितनी हावी है. वो किस तरह की हिचक रही होगी इस आदमी में कि वो झेंडे के करीब नहीं गया. इस हिचक पर खूब जुगाली की जा सकती है. चाहें तो आप भी कर सकते हैं. खैर, बात पर लौटते हैं. सोशल मीडिया पर लोगों ने भावुक होकर लिखना शुरू कर दिया,
''भीख मांगने वाले इस इंसान ने चप्पलें उतार कर झंडे को सलामी देकर उन सबको करारा जवाब दिया है जिन्हें इस देश में डर लगता है या उन्हें देश से शिकायत है कि इस देश ने उन्हें क्या दिया... स्वतंत्रता दिवस की इससे बेहतर तस्वीर नहीं हो सकती...''फेसबुक पर लोगों ने इस आदमी को पागल (ओके, मानसिक रूप से विक्षिप्त), रीयल हीरो ऑफ इंडिया और हैशटैग सुदामा जैसे विशेषण दिए. कुछ ने ये भी लिख दिया कि तस्वीर हमारे गांव की है. और कुछ क्रिएटिव लोगों ने दावा ही ठोंक दिया भैया हम ही थे जिसने तस्वीर खींची.

अनिल घाडगे असली तस्वीर खींचक हैं. (फोटोः साम टीवी के यूट्यूब वीडियो से)
लेकिन झेंडे वाली इस तस्वीर का गांधी जी वाला सच क्या है?
सच हमें मालूम चला महाराष्ट्र के एक समाचार चैनल 'साम टीवी न्यूज़' से. साम टीवी न्यूज़ को वो आदमी भी मिल गया जो सैल्यूट कर रहा है और वो भी जिसने तस्वीर खींची. पूरा किस्सा यूं है कि 15 अगस्त, 2018 को महाराष्ट्र के सातारा ज़िले में अनिल घाडगे नाम के एक शख्स को कराड़ में कुछ काम था. लेकिन वो थे कोरेगांव में. तो वो पहुंचे कोरेगांव रेलवे स्टेशन. वहां तब 'झेंडावंदन' हो रहा था. स्टेशन के अधिकारी, कर्मचारी और रिक्शेवाले स्टेशन के पार्क में जुटे थे. झंडा फहराया गया. फिर सबने सलामी दी. एक आदमी कुछ दूर से ये सब देख रहा था. मानसिक रोगी लग रहा था. उसने भी चप्पल उतारकर सलामी दी. साम टीवी को अनिल ने बताया कि ये दृश्य देखकर वो बम-बम हो गए. उन्होंने तुरंत जेब से फोन निकाला और तस्वीर ले ली.
बाद में उन्होंने तस्वीर फेसबुक पर डाल दी. फिर जो हुआ वो हम सब जानते हैं.

संतोष माने और अनिल घाडगे साथ में. (फोटोः साम टीवी के यूट्यूब वीडियो से)
बात यहीं खत्म नहीं हुई. तस्वीर के हीरो का नाम है संतोष लक्ष्मण माने. संतोष सातारा के ही कराड़ के हैं. बुरुड गली में रहते हैं और मानसिक रोगी हैं. अनिल की तस्वीर के वायरल होने के बाद रत्नागिरी ज़िले की एक सामाजिक संस्था संतोष के इलाज के लिए आगे आई है.
एक साधारण सी तस्वीर कितना कुछ बदल सकती है उसका शानदार उदाहरण है ये कहानी. हम आपके लिए साम टीवी का वीडियो दे रहे हैं. मराठी समझ सकते हैं तो देखिए. नहीं समझ सकते तो किसी मराठी दोस्त को पकड़िए. उसके साथ बैठिए और कहिए कि सब समझाए. वीडियो का वो हिस्सा आपको सच में छू जाएगा जहां आप अनिल और संतोष को स्टेशन पर एक बेंच पर बैठे देखते हैं. और अनिल कहते हैं,
''ये तस्वीर दुनिया को बताती है कि मानसिक विकार होने के बावजूद संतोष की समझ में देश के लिए कितना आदर है. और ये बात भी, कि इस समझ के बावजूद संतोष किस परिस्थिति में हैं''ये रहा साम टीवी का वीडियोः
ये भी पढ़ेंः भारतवर्ष का झंडा पुराणः क्या तिरंगे झंडे के अलावा भी अपना कोई झंडा फहरा सकते हैं राज्य?
बाढ़ में तिरंगे को सलाम करते इस बच्चे के साथ जो हुआ, उस पर विश्वास नहीं होता
करुणानिधि की वजह से इस देश में मुख्यमंत्रियों को तिरंगा फहराने का अधिकार मिला
इस आदमी ने हमें वो चीज़ दी जिसपर हम सबसे ज़्यादा गुमान झाड़ते हैं
जब शाहिद अफरीदी से तिरंगा पकड़े हुए एक भारतीय लड़की मिली...
अंग्रेजों से लड़ने के लिए हलवाइयों का हथियार थी ये तिरंगा बर्फी
वीडियोः क्या एम्स के इतिहास में पहली बार किसी को ऐसे श्रद्धांजलि दी गई है ?