लोकनायक जयप्रकाश नारायण. जेपी. पहले अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़े, फिर कई सालों बाद अपनी सरकार की तानाशाही के विरुद्ध ‘संपूर्ण क्रांति’ के नारे तले जनांदोलन का नेतृत्व किया. जेपी 11 अक्टूबर, 1902 को जन्मे थे और 8 अक्टूबर, 1979 को उनकी देह बीत गई. वो अपने पीछे एक बड़ी विरासत छोड़ गए, और विरासत की तरह ही इस विरासत के भी कई दावेदार हैं. समाजवादी में जितने खित्ते हैं, सो हैं, भाजपा और उनके सहयोगी दलों की भी दावेदारी है.
जेपी को अपना बनाने पर सब तुले हैं, लेकिन वो हैं किसके?
जेपी 11 अक्टूबर, 1902 को जन्मे थे और 8 अक्टूबर, 1979 को उनकी देह बीत गई. वो अपने पीछे एक बड़ी विरासत छोड़ गए, और विरासत की तरह ही इस विरासत के भी कई दावेदार हैं. समाजवादी में जितने खित्ते हैं, सो हैं. भाजपा और उनके सहयोगी दलों की भी दावेदारी है.
शुक्रवार, 11 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश में जयप्रकाश जयंती को लेकर सियासी गर्मी बढ़ गई. दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (JPNIC) में श्रद्धांजलि देने की ज़िद पर अड़े हुए थे. लेकिन यूपी सरकार ने उनके आवास के बाहर बैरिकेडिंग लगा दी. इसके बाद अखिलेश यादव अपने घर से बाहर निकले. उनके कार्यकर्ता वहीं जेपी की प्रतिमा लेकर वहां पहुंच गए, और अखिलेश यादव ने बीच सड़क पर ही जेपी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया.
इसके साथ अखिलेश ने जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील कर दी कि वो नरेंद्र मोदी सरकार से समर्थन खींच लें. यह कहते हुए कि एक समाजवादी नेता को जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से रोका गया. सरे-कैमरा कहा,
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन से उभरे नीतीश कुमार को इस अवसर पर ऐसी सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए, जो समाजवादियों को अपने आदर्श को श्रद्धांजलि देने से रोक रही है.
इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई. भाजपा की उत्तर प्रदेश यूनिट के प्रवक्ता आलोक अवस्थी ने ज़ोर देकर कहा कि पार्टी सभी महापुरुषों का सम्मान और आदर करती है और जयप्रकाश नारायण को 'सादगी के प्रतीक' के रूप में सम्मानित किया. इसी में अखिलेश पर निशाना भी साधा:
अखिलेश यादव जी, क्या आप में जयप्रकाश नारायण जैसा एक भी गुण है? आपका जीवन आलीशान है. आपके शासनकाल में राज्य में अराजकता, गुंडागर्दी, कुशासन, दंगाई और भ्रष्ट लोग हावी थे.
JPNIC का उद्घाटन अखिलेश यादव ने ही किया था. 2016 में – जब वे मुख्यमंत्री थे. हालांकि, 2017 चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने के बाद निर्माण रोक दिया गया था. अखिलेश यादव का दावा है कि सरकार ने जानबूझकर निर्माण लटका रखा है; असल में सेंटर को बेचने की योजना है.
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JPNIC का रखरखाव लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) के ज़िम्मे है. अथॉरिटी ने ही पूर्व-मुख्यमंत्री को सेंटर का दौरा करने की अनुमति नहीं दी थी. कारण दिया कि निर्माण चल रहा है, इसलिए सुरक्षा चिंताएं हैं और भारी बारिश के बाद कीड़ों की आशंका है. LDA के अलावा लखनऊ पुलिस ने भी अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
जयप्रकाश नारायण ख़ुद गांधी और कार्ल मार्क्स के आइडिया से मुतास्सिर थे. उसी तरह इमरजेंसी और इंंदिरा सरकार के ख़िलाफ़ उनके आंदोलन - जेपी आंदोलन - से जुड़े कई छात्र नेताओं पर जेपी के विचारों का असर था. आगे चल कर यह लोग नेता बन गए. भारतीय राजनीति के इतिहास में अपनी धारा दर्ज कराने वाले नेता. इस लिस्ट में मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, सुशील मोदी आते हैं.
उस दौरान जो दल इंदिरा सरकार के ख़िलाफ़ एक बैनर तले जुटे थे, आने वाले दशकों में बिखर गए. कुछ एक-दूसरे के समधी बन गए, कुछ पार्टनर्स, कुछ कट्टर प्रतिद्वंद्वी.
वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती ने लिखा है कि समाजवादी तो स्वाभाविक रूप से जेपी की वरिष्ठता की ओर आकर्षित हुए थे. फिर 1967 के चुनावों में मिली मामूली बढ़त के बाद मुख्यधारा में लौटने के लिए उत्सुक RSS (जनसंघ) भी जेपी की जनता पार्टी में ख़ुद को विलीन करने के लिए तैयार थी.
जेपी की जनता पार्टी कोई गठबंधन नहीं था, बल्कि इंदिरा का विरोध करने के लिए एक पार्टी थी. उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया या अनदेखी की, कि समाजवादी, कांग्रेस(ओ) और जनसंघ पार्टी और गठबंधन की ‘दोहरी सदस्यता’ के सवाल से कैसे निपटेंगे.
राजनीतिक ऑब्ज़र्वर्स की नज़र से देखने से पता चलता है कि उनके राजनीतिक अनुयायियों की दो धाराएं हैं. एक धारा लालू प्रसाद जैसे राजनेताओं की, जो उस वक़्त भी सबसे वोकल थे और आज भी समय-समय पर अपने राजनीति के लिए जेपी आंदोलन का हवाला दे देते हैं. वहीं, दूसरा वर्ग काफ़ी हद तक अनदेखा है. जबकि उन्होंने कई मौक़ों पर जेपी के साथ सीधे काम किया था.
जेपी पर दावा तो सब करते हैं, मगर उन्हें बचाए रखने के लिए किसने क्या किया? जहां जेपी पैदा हुए थे - बिहार का सिताब दियारा गांव - उसकी हालत देखकर यह दावे फीके ही लगेंगे. द मिंट के लिए अनुजा लिखती हैं कि घाघरा नदी के उस पार टूटी सड़क पर कोई साइनबोर्ड नहीं है, जो बताए कि उधर जयप्रकाश नारायण का जन्मस्थान है.
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हालांकि, उनके सही जन्मस्थान को लेकर बहस जारी है. एक तो सिताबदियारा का लाला टोला है, जहां कभी जेपी का बाढ़-ग्रस्त घर हुआ करता था. मगर उनका स्मारक यूपी के जयप्रकाश नगर में है. 20 एकड़ ज़मीन पर फैला यह एक स्मारक है, जिसमें उनका पुनर्निर्मित घर, उनकी तस्वीरों और पत्रों वाला एक संग्रहालय, उनकी पत्नी प्रभावती देवी के नाम पर एक पुस्तकालय और एक आम का बग़ीचा है.
कई नेता जयप्रकाश नगर स्थित स्मारक पर जा चुके हैं, वहीं पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने 2012 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी रथ यात्रा शुरू करने के लिए लाला टोला गए थे. नीतीश कुमार ने लाला टोला का नियमित दौरा किया है, ख़ासकर जेपी की जयंती पर.
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