राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा है कि संघ तिरंगे के सम्मान से जुड़ा है. वे 6 सितंबर को नागपुर के श्री अग्रसेन छात्रावास के बच्चों से बात कर रहे थे. इसी में एक छात्र ने उनसे नागपुर में बने संघ के मुख्यालय में तिरंगा नहीं फहराने को लेकर सवाल पूछ लिया.
"RSS ने क्यों नहीं फहराया तिरंगा"- मोहन भागवत से सीधा सवाल, क्या जवाब मिला?
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण और अखंड भारत के सवालों पर भी जवाब दिया.
इंडिया टुडे से जुड़े योगेश पांडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सवाल पर मोहन भागवत ने एक कहानी सुनाई. उन्होंने बताया,
"ये तय हुआ कि आज़ाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा होगा. कांग्रेस का झंडा भी तिरंगे के रंग का होगा. उस समय कांग्रेस ही एक बड़ी संस्था थी. 1933 में जलगांव के पास कांग्रेस का बड़ा अधिवेशन हुआ. पहली बार 80 फीट के ऊंचे खंभे पर जवाहरलाल नेहरू तिरंगा फहरा रहे थे. लेकिन वो बीच में ही लटक गया. ये देखकर एक जवान दौड़कर आया और खंभे पर 40 फीट चढ़कर झंडे को ठीक किया. इसके बाद झंडा फहराया गया."
भागवत ने आगे बताया,
'हमसे ये सवाल ही नहीं पूछा जाना चाहिए'"जब जवान नीचे उतरा तो सबने उसकी जय-जयकार की. नेहरू ने भी उसकी पीठ थपथपाई. उन्होंने जवान से कहा कि कल अधिवेशन में आओ, सार्वजनिक रूप से तुम्हारा सम्मान करेंगे. लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि वो जवान संघ की शाखा में जाता है. इस पर जवान को नहीं बुलाया गया."
संघ प्रमुख ने तिरंगे के सम्मान में जान देने की बात कही. उन्होंने बताया,
"RSS के संस्थापक हेडगेवार को भी इस बारे में पता चला. उन्होंने उस जवान को बुलाकर पीतल का लोटा देकर सम्मान किया. उस जवान का नाम किशन सिंह राजपूत था. 7 साल पहले उनका निधन हो गया. RSS तिरंगे के सम्मान में जान देने के लिए भी तैयार है."
मोहन भागवत ने कहा कि हमसे ये सवाल पूछा ही नहीं जाना चाहिए. वे बोले,
आरक्षण और अखंड भारत पर क्या बोले भागवत?"हम लोग हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को जहां कहीं भी होते हैं, वहीं तिरंगा फहराते हैं. ये सवाल हमसे पूछा ही नहीं जाना चाहिए. पहली बार झंडा फहराने में दिक्कत आई थी. तब से ही स्वयंसेवक संघ तिरंगे के सम्मान से जुड़ा हुआ है."
यहां RSS के प्रमुख ने अखंड भारत और आरक्षण पर भी बयान दिया. अखंड भारत के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये कब तक बनेगा ये तो मैं नहीं बता सकता. लेकिन अगर आप कोशिश करेंगे तो आपके बूढ़े होने से पहले ज़रूर हो जाएगा. उन्होंने आगे कहा,
"अब हालात बदल गए हैं. जो लोग भारत से अलग हुए थे, उन्हें लगने लगा है कि गलती हुई थी. हमको फिर से भारत में होना चाहिए. वे मानते हैं कि भारत होने का मतलब नक्शे की रेखाओं को पीछे करना. लेकिन ऐसा नहीं है, सिर्फ उससे नहीं होगा. भारत होने का मतलब है इस देश के भाव को अपनाना. उन्हें भारत का स्वभाव मंजूर नहीं था, इसलिए भारत अलग-अलग हुआ. जब वो स्वभाव वापस आ जाएगा तो सारा भारत एक हो जाएगा."
वहीं आरक्षण के सवाल पर मोहन भागवत बोले कि हमने अपने ही समाज के साथियों को सामाजिक व्यवस्था में पीछे रखा. हमने उनकी चिंता नहीं की. ऐसा 2000 साल तक चलता रहा.
उन्होंने आगे कहा कि जब तक उनको बराबरी पर नहीं लाया जाता, तब तक के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. आरक्षण भी उनमें से एक है. जब तक इस तरह का भेदभाव है, आरक्षण रहना चाहिए. संघ संविधान के तहत मिले आरक्षण का पूरा समर्थन करता है.
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