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आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया है

भागवत का बयान ऐसे समय आया है, जब महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए मराठा समुदाय का आंदोलन एक बार फिर तेज हो गया है.

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मोहन भागवत महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे. (फाइल फोटो: PTI)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार, 6 सितंबर को कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक समाज में भेदभाव मौजूद है. उन्होंने कहा कि संघ 'संविधान में दिए गए आरक्षण का पूरी तरह से समर्थन करता है'. आरक्षण पर मोहन भागवत का बयान ऐसे समय आया है, जब महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए मराठा समुदाय का आंदोलन एक बार फिर तेज हो गया है.

भागवत बोले- ‘आरक्षण पर संघ का समर्थन’

भागवत महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इस दौरान उनसे आरक्षण पर सवाल किया गया था. मोहन भागवत ने जवाब दिया,

"हमने अपने ही समाज के बंधुओं को सामाजिक व्यवस्था के तहत पीछे रखा. उनका जीना पशु समान हो गया तो हमने चिंता नहीं की."

मोहन भागवत ने कहा कि बराबरी लाने के लिए खास उपाय करने पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि जब तक भेदभाव है, तब तक आरक्षण रहना चाहिए. 

भागवत ने कहा,

"घर में अगर सब लोग हैं और दूध कम आता है, तो सबको दूध नहीं मिलता, लेकिन जो बीमार है, उसको मिलता है. तब हम ऐसा नहीं कहते कि उसको क्यों दे रहे हैं. परिवार में सब समान हैं, लेकिन जो बीमार है उसकी विशेष चिंता करनी ही पड़ती है. संविधान सम्मत जितना आरक्षण है, उसको हम संघ के लोग तो पूरा समर्थन देते ही हैं."

आरक्षण पर मोहन भागवत का बयान ऐसे समय आया है, जब महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए मराठा समुदाय का आंदोलन एक बार फिर तेज हो गया है.

'अखंड भारत' पर RSS प्रमुख का बयान

एक छात्र के सवाल का जवाब देते हुए RSS प्रमुख ने 'अखंड भारत' की भी बात की. छात्र ने सवाल किया था, 'हम भारत को अखंड भारत के रूप में कब तक देख लेंगे?' इसका जवाब देते हुए भागवत ने कहा,

“कब तक? मैं नहीं बता सकता. उसके लिए ग्रह ज्योतिष देखना पड़ेगा. मैं तो जानवरों का डॉक्टर हूं. लेकिन अगर आप उसको करने जाएंगे तो आपके बूढ़े होने से पहले आपको दिखेगा...परिस्थितियां अब ऐसी करवट ले रही हैं. जो भारत से अलग हुए उनको लगता है कि वो गलती हो गई. हमको फिर से भारत होना चाहिए. लेकिन वो मानते हैं कि भारत होना मतलब नक्शे की रेखाओं को पोछ डालना. ऐसा नहीं है. सिर्फ उससे नहीं होगा.”

भागवत ने कहा कि भारत होना मतलब भारत के स्वभाव को स्वीकार करना. भारत का स्वभाव मंजूर नहीं था, इसलिए भारत का विखंडन हुआ. उन्होंने कहा कि वो स्वभाव जब आ जाएगा तो सारा भारत एक हो जाएगा.

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