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रोहिंग्या शरणार्थियों ने की शिकायत, बच्चों को नहीं मिल रहा दिल्ली के स्कूलों में एडमिशन

दिल्ली का Khajuri Khas, रोहिंग्या शरणार्थियों की बस्तियों में से एक है. यहां के रहने वाले अहमद ने बताया कि बस्ती के 30 बच्चे 4 स्कूलों में नामांकित हैं. जबकि 18 बच्चे स्कूल नहीं जाते.

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इस संबंध में मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा गया है. (सांकेतिक तस्वीर: PTI)

रोहिंग्या शरणार्थियों (Rohingya Refugees) के बच्चों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में एडमिशन नहीं मिल पा रहा है. इसका कारण बताया जा रहा है कि उनके पास आधार कार्ड और बैंक खाते जैसे दस्तावेज नहीं हैं. हालांकि, उनके पास संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) की ओर से जारी किया गया शरणार्थी कार्ड है.

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ीं सोफिया मैथ्यू ने इसे रिपोर्ट किया है. इस रिपोर्ट में उमर फारूक नाम के 9 साल के बच्चे के पिता से बात की गई है. उन्होंने बताया है कि उनका बच्चा अब तक स्कूल नहीं जा पाया, जबकि वो साल 2019 से ही उसके एडमिशन के लिए प्रयास कर रहे हैं. ऐसे ही कई बच्चे हैं जो इसी समस्या से गुजर रहे हैं.

हालांकि, शिक्षा निदेशालय से जुड़े आधिकारिक सूत्रों ने कहा है कि ऐसे बच्चों को दाखिला दिया जा रहा है. उन्होंने शिक्षा निदेशालय द्वारा 28 जुलाई, 2017 को जारी किए गए एक सर्क्युलर का हवाला दिया है. और कहा है कि दिल्ली के सरकारी स्कूल केंद्र की नीति के अनुसार, शरणार्थियों या शरण चाहने वालों के बच्चों को एडमिशन दे रहे हैं. उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया दस्तावेज निवास का प्रमाण स्थापित करने के लिए पर्याप्त है. और इसके लिए आधार कार्ड की जरूरत नहीं है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, कम से कम 5 देशों से आए लगभग 1 हजार बच्चों को पहले ही एडमिशन दिया गया है.

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दिल्ली का खजूरी खास रोहिंग्या शरणार्थियों की बस्तियों में से एक है. यहां के रहने वाले अहमद ने बताया कि बस्ती के 30 बच्चे 4 स्कूलों में नामांकित हैं. जबकि 18 बच्चे स्कूल नहीं जाते.

पेशे से पेंटर असमत उल्लाह ने बताया कि वो इलाके के सभी 4 सरकारी स्कूलों का चक्कर काट रहे हैं. ताकि उनकी 6 और 7 साल की दो बेटियों को दाखिला मिल सके. 

इससे पहले दिल्ली के अधिवक्ता और बाल अधिकार कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने मुख्यमंत्री आतिशी को इस संबंध में पत्र लिखा था. उन्होंने ‘म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को दिल्ली सरकार के स्कूलों में दाखिला देने से अनुचित इनकार’ की बात कही. उन्होंने कहा कि इन छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. उन्होंने लिखा कि बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने से इनकार करना, बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के साथ-साथ अनुच्छेद 21-A का उल्लंघन है.

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