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रतन टाटा के लिए इतनी भावुकता क्यों? कैंसर वाले उनके काम बता देंगे

उन्होंने न सिर्फ बिजनेस सेक्टर में कई कीर्तिमान स्थापित किए, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बहुत उल्लेखनीय काम किए हैं. खासकर कैंसर अनुसंधान के क्षेत्र में उनका योगदान विशेष रूप से प्रशंसनीय है.

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रतन टाटा (फाइल फोटो- पीटीआई)
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मिलन शर्मा

एक कंपनी जो सुई से लेकर जहाज़ तक बनाती है, उसने अपना संरक्षक खो दिया. 9 अक्टूबर की रात देश के सम्मानित उद्योगपति और TATA Sons के चेयरमैन रहे रतन टाटा का देहांत हो गया. लेकिन उन्होंने देश के लिए जो योगदान दिया है वो सदियों तक याद रखा जाएगा. उन्होंने न सिर्फ बिजनेस सेक्टर में कई कीर्तिमान स्थापित किए, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बहुत उल्लेखनीय काम किए हैं. खासकर कैंसर अनुसंधान के क्षेत्र में उनका योगदान विशेष रूप से प्रशंसनीय है. देशभर में कैंसर के कई अस्पताल से लेकर महाराष्ट्र के टाटा मेमोरियल अस्पताल तक को उन्होंने देश और दुनिया का सबसे बेहतरीन कैंसर अस्पताल बनाने में महत्वपूर्व भूमिका निभाई.

आजतक के मिलन शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, टाटा समूह ने 1941 में मुंबई में टाटा मेमोरियल अस्पताल की स्थापना की. इसके साथ ही भारत में कैंसर के इलाज में एक क्रांति की नींव रखी गई जो उस समय भारत में अनसुनी थी. 1962 में अस्पताल का प्रबंधन स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दिया गया.

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रतन टाटा जानते थे कि कैंसर का इलाज अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना जरूरी है, क्योंकि ट्रीटमेंट का खर्च अधिक होने की वजह से कई लोग इसमें असमर्थ थे. ऐसे में टाटा मेमोरियल अस्पताल ने लोगों तक मुफ्त या कम खर्च में उन्नत इलाज मुहैया कराया. 2012 में, ट्रस्ट ने देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में कैंसर की उपयुक्त सुविधाओं की कमी को दूर करने के लिए कोलकाता में टाटा मेडिकल सेंटर लॉन्च किया. मौजूदा समय में टाटा ट्रस्ट सात राज्यों - आंध्र प्रदेश, असम, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और गुजरात में 20 अस्पतालों के अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहा है.

2017 में टाटा ट्रस्ट के माध्यम से महत्वाकांक्षी कैंसर देखभाल कार्यक्रम शुरू हुआ. इसका मकसद कैंसर की मरीजों को सस्ता और उच्च गुणवत्ता वाला ट्रीटमेंट उपलब्ध कराना था. इस परियोजना के तहत अन्य राज्यों में भी कैंसर अस्पताल शुरू करना शामिल था. इस काम के लिए उन्होंने राज्य सरकारों आर्थिक सहायता मुहैया कराई ताकि छोटे शहरों और कस्बों में कैंसर अस्पताल और उपचार संंबंधी सुविधाएं स्थापित की जा सकें.

भारत में 70% से अधिक कैंसर के मामलों का पता (डायग्नोसिस) आखिरी स्टेज में चलता है. रतन टाटा इस तथ्य से भली-भांति परिचित थे. उन्होंने अपनी टीम के जरिये कैंसर के जल्द डायग्नोसिस के लिए कैंसर देखभाल केंद्र, डेकेयर सुविधाएं और स्क्रीनिंग बूथ का एक विशाल नेटवर्क बनवाया. रतन टाटा को अंदाजा था कि वित्तीय बाधाएं अक्सर लोगों को इलाज कराने से रोकती हैं, इसलिए उन्होंने इन सेवाओं को सरकारी बीमा योजनाओं में शामिल करने पर जोर दिया. इससे भारत में कैंसर देखभाल का परिदृश्य बदलने में मदद मिली.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के प्रमुख डॉ. श्याम अग्रवाल ने रतन टाटा के स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए योगदान पर बताया, 

"अब कई टाटा मेमोरियल सेंटर वाराणसी, मुज़फ़्फ़रपुर बिहार, पंजाब और विशाखापत्तनम में खुल गए हैं. टाटा ट्रस्ट के पास कैंसर रोगियों के इलाज के लिए पूरे देश में सुविधा बनाने की एक महान विरासत है. 1992 में उनके द्वारा भारत में बोन मैरो ट्रांसप्लांट शुरू किया गया था. लगभग 1000 कैंसर रोगी प्रतिदिन यहां देखे जाते हैं और लगभग 2/3 रोगियों का इलाज टाटा ट्रस्ट और टाटा परिवार द्वारा मुफ्त में किया जाता है.”

मणिपाल अस्पताल, गुरुग्राम के सलाहकार और एचओडी मेडिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. मोहित सक्सेना ने रतन टाटा को याद करते हुए कहा, 

" कैंसर देखभाल में क्रांति लाने में उनका काम लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनकी दृष्टि, करुणा और प्रतिबद्धता का प्रमाण है. टाटा के नेतृत्व में कैंसर को लेकर प्रभावशाली जागरूकता अभियान शुरू किए गए.”

रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ने इसी साल की शुरुआत में कैंसर को दोबारा होने से रोकने के लिए एक टेबलेट बनाने का दावा किया था. संस्थान ने कहा कि इस टैबलेट की कीमत सिर्फ 100 रुपये होगी. शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने 10 वर्षों तक रिसर्च कर इस टैबलेट को विकसित किया गया है. एक बयान जारी कर टाटा इंस्टीट्यूट ने कहा था कि आगे और बड़े सैंपल साइज के साथ इस दवा का अध्ययन किया जाएगा.

वीडियो: Ratan Tata ने Tata Trust को क्यों चलाया था?