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हरियाणा चुनाव: राम रहीम से BJP को कितना फायदा हुआ? वोटिंग से पहले मिली थी परोल

रेप-हत्या का दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख कई बार परोल पर जेल से बाहर आता रहा है. चुनाव से ऐन पहले उसके बाहर आने की अटकलें थीं. वो बाहर आया भी. आरोप लगा कि ऐसा बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया. लेकिन क्या ऐसा हुआ?

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पिछड़ी जातियों से आने वाले लोगों के बीच डेरा का ठीक-ठाक प्रभाव माना जाता है. डेरा का राजनीतिक प्रभाव इन्हीं जातियों के अनुयायियों के आधार से उपजा है. (फोटो- X)

हरियाणा में BJP लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 48 सीटें अपने नाम की हैं. वहीं कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत मिली है. बीजेपी की इस जीत ने एग्जिट पोल्स से लेकर कई राजनीतिक जानकारों और पत्रकारों को हैरान कर दिया है. अब चर्चा उन फैक्टर्स पर हो रही है जिन्हें इस चुनाव से बार-बार जोड़ा गया. इनमें से एक है गुरमीत राम रहीम.

रेप-हत्या का दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख कई बार परोल पर जेल से बाहर आता रहा है. चुनाव से ऐन पहले उसके बाहर आने की अटकलें थीं. वो बाहर आया भी. आरोप लगा कि ऐसा बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया. ये सही है कि बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, लेकिन इस बात में कितना दम है कि उसकी जीत में गुरमीत राम रहीम के प्रभाव की भी एक भूमिका है (Ram Rahim factor in Haryana election).

चुनाव परिणामों के बाद पता चला है कि राम रहीम से सिर्फ भाजपा को फायदा नहीं हुआ, बल्कि कांग्रेस को भी इसका लाभ मिला. इंडिया टुडे से जुड़े संवाददाता मंजीत सहगल की रिपोर्ट बताती है कि जिन 28 सीटों को डेरा समर्थकों का गढ़ माना जाता था, उनमें से 15 पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई है. वहीं भाजपा ने 10 सीटें अपने नाम की हैं. दो सीटें INLD के खाते में गईं. एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. यानी राम रहीम के प्रभाव वाले क्षेत्रों में बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा नहीं हुआ है.

ये तो रही सीटों के नंबर की बात, अब वोट प्रतिशत में भी जान लीजिए. इन 28 सीटों पर कांग्रेस को कुल 53.57 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा ने 35.71 प्रतिशत वोट हासिल किए. INLD को 7 प्रतिशत और निर्दलीय उम्मीदवारों को 3.57 प्रतिशत वोट पड़े. शायद यही एक कारण रहा कि हरियाणा कांग्रेस के ज्यादातर नेता चुनाव प्रचार के दौरान राम रहीम की परोल के बारे में ज्यादा मुखर नहीं थे. ये 28 सीटें हरियाणा के छह जिलों में फैली हैं. इनमें फतेहाबाद, कैथल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, करनाल और हिसार जैसे जिले आते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस ने फतेहाबाद, रतिया, तोहाना (यहां डेरा अनुयायियों की संख्या सबसे अधिक है), कलायत, कैथल, शाहाबाद, थानेसर, पिहोवा, कालांवाली, सिरसा, ऐलनाबाद, आदमपुर, उकलाना और नारनौंद में जीत हासिल की. वहीं भाजपा ने हांसी, बरवाला, हिसार, नलवा, असंध, घरौंदा, करनाल, इंद्री, नीलोखेड़ी, लाडवा और पुंडरी की सीटें अपने नाम कीं. INLD डबवाली और रानिया में जीती, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार सावित्री जिंदल हिसार सीट जीतने में कामयाब रहीं.

डेरा ने भाजपा को सपोर्ट किया!

इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि 3 अक्टूबर को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख ने सिरसा में डेरा पदाधिकारियों को भाजपा को वोट देने का निर्देश दिया था. कई मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि ये संदेश एक सत्संग के दौरान दिया गया था. ऐसा बताया गया कि डेरा के फॉलोअर्स को बूथ पर कम से कम पांच मतदाताओं को लाने का निर्देश दिया गया था.

हालांकि, अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि कि गुरमीत राम रहीम ने इस सत्संग का वर्चुअल आयोजन किया था या नहीं. यहां बता दें कि चुनाव आयोग (ECI) ने डेरा प्रमुख के ऑनलाइन प्रचार या सत्संग आयोजित करने पर प्रतिबंध लगाया था. डेरा सूत्रों का अनुमान है कि संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या लगभग 1.25 करोड़ है. इसकी 38 शाखाओं में से 21 शाखाएं हरियाणा में स्थित हैं.

डेरा का राजनीति में प्रभाव

यहां इस बात को भी जानना जरूरी है कि डेरा का भारतीय राजनीति, खासकर हरियाणा और आस-पास के राज्यों के चुनावों में कितना प्रभाव है. वैसे तो डेरा सच्चा सौदा एक धार्मिक संप्रदाय है, पर इसका राजनीतिक प्रभाव काफी माना जाता है. डेरा गुरमीत राम रहीम के नेतृत्व में एक राजनीतिक शाखा भी संचालित करता है. इसने पहले भी शिरोमणि अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस का समर्थन किया है.

रिपोर्ट की माने तो साल 2007 के पंजाब विधानसभा चुनावों में डेरा ने कांग्रेस का समर्थन किया था. 2014 में इसने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को समर्थन दिया. 2015 में डेरा ने दिल्ली और बिहार चुनावों में भाजपा का खुलकर समर्थन किया था.

बता दें कि पिछड़ी जातियों से आने वाले लोगों के बीच डेरा का ठीक-ठाक प्रभाव माना जाता है. डेरा का राजनीतिक प्रभाव इन्हीं जातियों के अनुयायियों के आधार से उपजा है. इसमें बड़ी संख्या में दलित शामिल हैं, जैसे कि मजहबी सिख (धर्मांतरित सिख). राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हरियाणा में अगड़ी जाति के वोट आमतौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच बंट जाते हैं. वहीं पिछड़ी जाति से आने वाले डेरा अनुयायी अपने नेता के निर्देशानुसार वोट करने जाते हैं.

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