कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि 'अनुभवहीन चापलूसों की मंडली' इस समय कांग्रेस पार्टी (Congress) को चला रही है. उनका कहना है कि इस 'झुंड' में वो 'पीए और सुरक्षाकर्मी' हैं, जो गांधी परिवार के करीबी हैं और पार्टी के सभी बड़े फैसले ले रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस ने इन दावों को खारिज किया है और कहा कि गुलाम नबी आजाद आज जिस 'मंडली' की बात कर रहे हैं, वो खुद एक समय इसका हिस्सा थे.
राहुल गांधी की 'चापलूस मंडली' में कौन शामिल हैं, जिनका जिक्र गुलाम नबी ने इस्तीफे में किया?
गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि यही चापलूस मंडली पार्टी चला रही है.
आजाद के अलावा कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले पार्टी के पूर्व प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी इसी तरह के आरोप लगाए हैं कि 'पीए और ओएसडी और कुछ चुनिंदा नेता' इस समय पार्टी को चला रहे हैं. शेरगिल का कहना था कि महीनों कोशिश करने के बाद भी उन्हें गांधी परिवार से मिलने का समय नहीं मिल पाया.
इन दोनों नेताओं से पहले भी कुछ ने ‘पर्दे के सामने' और कुछ ने ‘पर्दे के पीछे' इस तरह के आरोप लगाए हैं. तो क्या सच में कांग्रेस पार्टी किसी 'मंडली' या 'कोटरी' द्वारा चलाई जा रही है? अगर हां, तो इसके सदस्य कौन हैं? उन्हें इतनी पावर कैसे मिल गई? क्या कांग्रेस में अब 'संतरी सबसे बड़े मंत्री हैं'?
इस पूरे मामले को लेकर लल्लनटॉप के स्पेशल शो '
राहुल गांधी के करीबियों में से एक सचिन राव महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. अपने पहनावे से एकदम सामान्य व्यक्ति की तरह दिखाई देते हैं, लेकिन राहुल गांधी के फैसलों में उनकी बड़ी भूमिका होती है. माना जाता है कि कांग्रेस में जो लेफ्ट की तरफ झुकाव वाले विचार और लोग हैं, उनको बनाने का काम सचिन राव करते हैं.
राव ने मिशिगन बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की है. वो कॉरपोरेट स्ट्रैटजी एंड इंटरनेशनल बिजनेस में एमबीए ग्रैजुएट हैं. इस समय वो पर्सनल ट्रेनिंग और INC संदेश के इनचार्ज हैं. इससे पहले उन्होंने इंडियन यूथ कांग्रेस और NSUI के साथ काम किया है.
केबी बायजू पहले स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) में थे. जब राहुल गांधी को SPG की सुरक्षा मिली हुई थी, तो उस समय बायजू उस ग्रुप के सदस्य थे. इस समय वो राहुल गांधी के सुरक्षा मामलों को देखते हैं. इसके साथ-साथ पॉलिसी मेकिंग और बड़े फैसलों में भी उनकी भूमिका होती है. राहुल गांधी को कहां, किस रूट पर जाना होता है, उसका फैसला बायजू ही करते हैं. राहुल गांधी से पहले बायजू उस जगह की रेकी करके आते हैं, जिसके बाद राहुल गांधी वहां जाते हैं.
वो केरल से आते हैं, इसलिए राहुल का संसदीय क्षेत्र वायनाड भी वही देखते हैं. राहुल गांधी को अगर किसी का भी कच्चा-चिट्ठा जानना होता है, तो वे इसकी जिम्मेदारी बायजू को ही देते हैं. इतना ही नहीं, अगर किसी मंत्री तक कोई संदेश पहुंचाना होता है, तो वो भी बायजू ही करते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें, तो अगर राहुल गांधी से किसी को मिलना होता है, तो उन्हें बायजू से अच्छे संबंध बनाकर रखने पड़ते हैं.
3. कौशल विद्यार्थीराहुल गांधी की टीम में कौशल सबसे युवा हैं. उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है और राहुल गांधी के रोजना के अपॉइंटमेंट वगैरह देखते हैं. कौशल लोगों से बातचीत करने में काफी सहज हैं. जल्द जवाब देते हैं और पार्टी के संबंध में कोई स्पष्टीकरण चाहिए होता है, तो वो उसपर प्रतिक्रिया देते हैं. इस ‘कोटरी’ के अन्य सदस्यों के मुकाबले कौशल पार्टी को लेकर ‘गलतफहमी’ नहीं पैदा होने देते हैं और साफ बात करते हैं.
जानकार बताते हैं कि वो राहुल गांधी के करीबी होने का फायदा नहीं उठाते हैं.
4. अलंकार सवाईअलंकार नागपुर के रहने वाले हैं. ICICI बैंक के ऑफिसर रहे हैं और इन्वेस्टमेंट बैंकर के रूप में भी काम किया है. नेतानगरी में पत्रकार आदेश रावल ने उनसे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी बताई कि वो कितने पॉवरफुल हैं.
रावल के मुताबिक, एक बार महाराष्ट्र में सरकार गठन के दौरान सोनिया गांधी की ओर से अहमद पटेल ने अमित देशमुख (विलासराव देशमुख के बेटे) को फोन करके कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष ने ये तय किया है कि आपको बिजली मंत्री बनाया जाएगा. लेकिन जब विभाग बंटा तो आखिरी समय पर बिजली मंत्रालय नितिन राउत को मिला. इसे लेकर पटेल ने कहा था कि राहुल गांधी के ऑफिस से अलंकार के कहने पर ऐसा हुआ.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अलंकार को 'चीफ ऑफ स्टाफ' कहा जाता है. राहुल की टीम में अलंकार एक कद्दावर सदस्य हैं और मीडिया का कौन व्यक्ति राहुल गांधी से मिल पाएगा, वो अलंकार तय करते हैं.
5. कनिष्क सिंहकनिष्क को एक तरह से राहुल गांधी की टीम के अन्य सदस्यों का ‘बॉस’ माना जाता है. पत्रकारों के मुताबिक, वे इस पूरे सिस्टम को कंट्रोल करते हैं. वे राहुल के दोस्त भी हैं. उनके पिता शैलेंद्र सिंह राज्यपाल रह चुके हैं. पार्टी के सभी अहम मौकों पर कनिष्क मौजूद रहते हैं. उन्होंने साल 2003 में राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी और वो शुरु से ही राहुल गांधी के साथ रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक, कनिष्क राहुल गांधी की निजी यात्राओं पर भी साथ रहते हैं. इस समय वो कांग्रेस की विवादित संपत्तियों के मामलों को देख रहे हैं. पत्रकारों का कहना है कि जब उनका काम होता है तो वे कॉल करेंगे, लेकिन आपको कुछ जानना होगा तो वो कॉल नहीं उठाएंगे.
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