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दो-दो यौन उत्पीड़न मामलों में बच जाएंगे CV बोस! संविधान राज्यपाल को ऐसी क्या छूट देता है और क्यों?

राज्यपाल को उनके कार्यकाल में किए गए किसी भी काम के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता. ना ही पूछताछ की जा सकती है. कार्यकाल के दौरान ना तो गिरफ्तार किया जा सकता है. ना ही हिरासत में लिया जा सकता है.

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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल CV आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न के आरोप (फाइल फोटो- आजतक)

पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस के खिलाफ दोबारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं. इस बार एक ओडिसी क्लासिकल डांसर ने उन पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया है (West Bengal Governor CV Bose). इससे पहले राजभवन की पूर्व कर्मचारी ने राज्यपाल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. संवैधानिक छूट के चलते पुलिस सीवी बोस को आरोपी के रूप में नामित नहीं कर सकती. ना ही मामले की जांच कर सकती है.

संविधान में ऐसा क्या लिखा है जो सीवी बोस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. राज्यपाल को इस तरह की छूट देने का क्या मकसद है. छूट के तहत क्या वो किसी भी तरह के अपराध से बच सकते हैं. इन सभी सवालों के जवाब जान लेते हैं. 

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संविधान का आर्टिकल 361 कहता है,

राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यालय की पॉवर और ड्यूटी के इस्तेमाल और प्रदर्शन के लिए या उन पॉवर और ड्यूटीज का पालन करते हुए किसी भी काम के लिए अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे.

प्रावधान में दो सब क्लॉज भी हैं-

1. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जाएगी.

2. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास की कोई प्रक्रिया उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत की तरफ से जारी नहीं की जाएगी.

इसका मतलब है कि उनकी आधिकारिक भूमिका में किए गए किसी भी काम के लिए उन्हें अदालत में नहीं बुलाया जा सकता. ना ही पूछताछ की जा सकती है. कार्यकाल के दौरान उन्हें ना तो गिरफ्तार किया जा सकता है. ना ही हिरासत में लिया जा सकता है.

क्यों बनाए गए ये नियम?

मुकदमों, गिरफ्तारी और आपराधिक कार्यवाही से छूट देने का मकसद राष्ट्रपति और राज्यपालों को कानूनी चुनौतियों के बारे में चिंता किए बिना निर्णायक रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति देना है. अनुच्छेद 361 का मकसद ये सुनिश्चित करना भी है कि राष्ट्रपति या गर्वनर अनुचित हस्तक्षेप या उत्पीड़न के डर के बिना अपना काम कर सके. इससे स्थिरता और कुशल शासन को बढ़ावा मिलता है.

कोई लिमिट है या नहीं?

-पुलिस, राज्यपाल के पद से हटने या उनके इस्तीफा देने के बाद कार्रवाई कर सकती है. ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां कार्यकाल पूरा होने तक आपराधिक कार्रवाई को रोक दिया गया हो. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले में BJP नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती के खिलाफ आपराधिक साजिश के नए आरोपों की अनुमति दी थी. तब यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को लेकर सुनवाई नहीं हुई क्योंकि वो उस वक्त राजस्थान के राज्यपाल थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उनके राज्यपाल ना रहने पर ही उनके खिलाफ आरोप तय कर कदम उठाए जाएंगे.

-ये जानना जरूरी है भले ही आधिकारिक कामों के लिए छूट मिली हो लेकिन पर्सनल कैपेसिटी में किए गए गैर-आधिकारिक कामों के लिए दो महीने पहले लिखित नोटिस के साथ सिविल प्रोसिडिंग शुरू की जा सकती है. इसमें कार्यभार संभालने से पहले या बाद वाले मामले भी शामिल हैं. ये तरीका कानूनी उपायों का सहारा लेने से पहले बातचीत के माध्यम से समाधान की अनुमति देना है. 

-संवैधानिक छूट उनके आधिकारिक कर्तव्यों के दायरे से बाहर किए गए कामों या राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका से असंबंधित निजी मामलों के लिए नहीं है.

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- राष्ट्रपति द्वारा गंभीर कदाचार के लिए महाभियोग (Impeachment) जैसी प्रक्रिया भी मौजूद हैं. महाभियोग संविधान का उल्लंघन करने पर राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया है. ये प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों में से किसी एक में शुरू हो सकती है. आरोप एक नोटिस के तौर पर पेश होते हैं जिस पर सदन के कुल सदस्यों के कम से कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए. नोटिस को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और 14 दिनों के बाद विचार के लिए रखा जाता है. राष्ट्रपति एक अधिकृत वकील के माध्यम से अपना बचाव कर सकते हैं. हालांकि अगर दूसरा सदन भी बहुमत से आरोपों को मंजूरी दे देता है तो राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया जाता है.

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