प्रशांत किशोर. शॉर्ट में पीके. पॉलिटिकल स्ट्रैटजी के ज़रिए अपना नाम जमाया और अब 'जन सुराज' नाम का अभियान चलाते हैं. पार्टी नहीं है. आगे बन जाएगी, इसकी संभावना है. अभी पदयात्रा करते हैं. ख़ुद चलते हैं, जगह-जगह जन-संवाद करते हैं. मगर इसके लिए उन्हें रोकड़ा कौन देता है? फ़ंडिंग कहां से आ रही है? ये सवाल कई लोग पूछते हैं. दी लल्लनटॉप ने भी पूछा. उन्होंने बताया, जिन लोगों को बनाने में उन्होंने कंधा लगाया, आज वही उन्हें सपोर्ट करते हैं.
प्रशांत किशोर ने बता ही दिया, 'जन सुराज' को पैसा कौन देता है?
दी लल्लनटॉप के ख़ास शो 'जमघट' में प्रशांत ने नीतीश कुमार, शराब बंदी और जातीय जनगणना पर कई बातें बताईं.
प्रशांत ने iPac नाम की कंपनी शुरू की थी, जो पॉलिटिकल स्ट्रैटजी बनाती है. मई 2021 में उन्होंने सार्वजनिक घोषणा की, कि वो iPac से अलग हो रहे हैं. बकौल प्रशांत, उनका कभी भी कंपनी में शेयर नहीं रहा. संस्था उनके मार्गदर्शन में, उनकी देखरेख में चली ज़रूर. लेकिन मई 2021 के बाद से वो आज तक iPac के किसी दफ़्तर में गए तक नहीं हैं. हालांकि, अब वो iPac के क्लाइंट है. जब उन्हें ज़रूरत होती है, तब वो अपने पॉलिटिकल कैम्पेन के लिए कंपनी का इस्तेमाल करते हैं. फिर 'जन सुराज' को पैसा कहां से आता है?
दी लल्लनटॉप के पॉलिटिकल इंटरव्यू शो जमघट में हमारे संपादक सौरभ द्विवेदी ने उनसे यही सवाल पूछा, तो वो बोले -
"जन सुराज को पैसे वो लोग देते हैं, जिनको बीते 10 सालों में हमने कंधा लगाया."
पूछा गया कि कुछ नाम ले लीजिए. उन्होंने कहा, जो भी नाम ले लीजिए. पूछा गया, ममता बनर्जी? जगनमोहन रेड्डी? तब वो बोले -
"व्यक्तिगत बात नहीं है कि ममता बनर्जी ने दिया या जगनमोहन रेड्डी ने दिया. सारे नामों को जोड़ लीजिए. सब कुछ न कुछ योगदान कर रहे होंगे. हर वो व्यक्ति, हर वो दल, जिनको भी मैंने बनाने में कंधा लगाया है पिछले चार पांच सालों में. वो लोग या उनके जो समर्थक हैं. वो सब मदद कर रहे हैं. तभी इतनी बड़ी इतना बड़ा अभियान चल पा रहा है."
नीतीश कुमार, शराब बंदी और जातीय जनगणना पर प्रशांत किशोर ने क्या कहा, इसके लिए देखिए हमारा शो जमघट. 19 जनवरी, 11 बजे.