देशभर में साइबरी ठगी, डिजिटल अरेस्ट के मामले तो बढ़ ही रहे हैं, इसके अलावा ठगों के पास ठगने का एक तरीका और भी है. जिसका इस्तेमाल देश में सालों से किया जा रहा है. इस तरीके का नाम है- पोंजी स्कीम (Ponzi Scheme). वहीं पोंजी स्कीम जो इन दिनों सुर्खियों में है. लेकिन ये पोंजी स्कीम है क्या (What is Ponzi Scheme)? ये भी जान लेते हैं.
पोंजी 'स्कीम' या 'स्कैम'! जिस वजह से गुजरात के लोगों से ठगे गए करोड़ों रुपये, वो है क्या?
Ponzi Scheme इन दिनों सुर्खियों में है. ताजा मामला गुजरात के साबरकांठा का है जहां एक शख्स ने ज्यादा मुनाफे का लालच देकर लोगों से पांच साल में छह हजार करोड़ रुपये तक की ठगी की. लेकिन ये पोंजी स्कीम है क्या? ये भी जान लेते हैं.
ताजा मामला गुजरात के साबरकांठा का है (Gujarat Ponzi Scheme), जहां भूपेंद्र सिंह जाला नाम के एक शख्स ने ज्यादा मुनाफे का लालच देकर लोगों से पांच साल में छह हजार करोड़ रुपये तक की ठगी की. CID ने जब उसके ठिकानों पर छापेमारी की तो वह फरार हो गया. CID ने उसके दोनों बैंक खातों की जांच की. दोनों खातों से 175 करोड़ रुपये का लेनदेन पाया गया. भूपेंद्र सिंह जाला हर एजेंट को निवेश करने के बदले 5 से 25 परसेंट तक कमीशन भी देता था.
क्या है 'पोंजी स्कीम'?‘पोंजी स्कीम’ एक तरह का फ्रॉड है, जहां इंवेस्टर्स से वादा किया जाता है कि उन्हें बिना किसी जोखिम के या कम जोखिम के जबरदस्त रिटर्न दिया जाएगा. जबकि असल में ये एक तरह की धोखाधड़ी होती है. इसमें जो नए इंवेस्टर्स अपने पैसे इंवेस्ट करते हैं, उसे उठाकर पुराने यानी मौजूदा इंवेस्टर्स को दे दिया जाता है. इनमें से कुछ पैसे स्कीम चलाने वाले मालिक अपने पास रख लेते हैं.
इसे इस तरह समझिए. जैसे पिरामिड का स्ट्रक्चर होता है. टॉप पर होते हैं नए इंवेस्टर्स. उनके पैसों का उपयोग, उनके नीचे बैठे पुराने और मौजूदा इंवेस्टर्स को भुगतान करने में किया जाता है. जैसे ही पोंजी स्कीम में नए इंवेस्टर्स, इंवेस्ट करने के लिए आते हैं, वैसे ही पुराने इंवेस्टर्स पिरामिड में नीचे आ जाते हैं और उन्हें नए इंवेस्टर्स से पैसे मिलने लग जाते हैं. लेकिन जब नए इंवेस्टर्स मिलना बंद हो जाते हैं, तब ऐसी स्कीमों का पर्दाफाश हो जाता है.
कब से शुरू हुआ ये स्कैम?‘पोंजी स्कीम' शब्द को एक अमेरिकी शख्स चार्ल्स पोंजी के नाम पर रखा गया है, जिसने आज से लगभग 100 साल पहले धोखाधड़ी के एक ऐसे ही तरीके को ईजाद किया था. 1903 में चार्ल्स ने जुएं में अपने सारे पैसे गंवा दिए. चार्ल्स का दिमाग पहले से ही तेज था. इसलिए 1907 में कनाडा जाकर पोंजी ने एक बैंक में नौकरी कर ली. बैंक का नाम Banco Zarossi था. उसे अंग्रेजी, इटैलियन और फ्रेंच आती थी, इसलिए नौकरी आसानी से मिल गई. चार्ल्स पोंजी को इसी बैंक से इस धोखाधड़ी का आइडिया मिला. Banco Zarossi उन दिनों इनवेस्टर्स को 6 फीसदी ब्याज देता था, जबकि दूसरे बैंकों में सिर्फ 2-3 फीसदी ब्याज ही मिल रहा था. सवाल ये था कि आखिर ये बैंक ज्यादा ब्याज दे कैसे पा रहा था? जब पोल खुली तब पता चला कि ये बैंक सिर्फ नए इंवेस्टर्स से पैसे लिए जा रहा था, जिसे पुराने इंवेस्टर्स को रिटर्न की तरह दे रहा था. चार्ल्स पोंजी ने ये सब देखा तो उसे भी ऐसा ही फ्रॉड का आइडिया आ गया.
कुछ दिनों बाद चार्ल्स ने भी उसी तरीके से पैसे जुटाने शुरू कर दिए. चार्ल्स ने 45 दिन में 50 फीसदी और 90 दिन में 100 फीसदी रिटर्न का वादा किया. इसके लिए चार्ल्स ने ‘सिक्योरिटीज एक्सचेंज’ नाम की एक कंपनी भी शुरू कर दी. सिर्फ 3 महीने में पैसे दोगुने होने की खबर सुनकर बहुत सारे लोगों ने पोंज़ी की कंपनी में इंवेस्ट किया. देखते ही देखते महज 6 महीने में पोंज़ी की कंपनी में लगभग 2.5 मिलियन डॉलर तक जमा हो गए.
धीरे-धीरे लोगों को शक हुआ तो चार्ल्स पोंजी की कंपनी की पुलिस ने छानबीन शुरू की. छानबीन में पता चला कि ये सब फर्जीवाड़ा है. पोंजी की संपत्ति बेचकर जब रिकवरी की गई तो सिर्फ 30 फीसदी पैसा ही रिकवर हुआ. उसी के नाम पर इस तरह होने वाले फ्रॉड को ‘पोंजी स्कीम’ कहा जाने लगा.
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