The Lallantop

पेगासस केस में बड़ी सुनवाई, जांच पैनल ने कहा -"मोबाइलों में जो मिला है वो...."

सुनवाई के दौरान दौरान CJI एनवी रमना ने सरकार को कहा कि उन्होंने जांच समिति के साथ सहयोग नहीं किया.

post-main-image
पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई.

पेगासस जासूसी मामले (Pegasus Snooping Case) की जांच के लिए बनाए गए पैनल ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बड़ी जानकारी दी है. गुरुवार, 25 अगस्त को हुई अहम सुनवाई में पैनल ने कहा कि उसे जांच से जुड़े 29 मोबाइल फोनों में पेगासस स्पाइवेयर मिलने के पक्के सबूत नहीं मिले हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक पैनल ने बताया कि फोरेंसिक एनालिसिस में पांच मोबाइल फोन किसी मेलवेयर (Malware) से प्रभावित पाए गए हैं, लेकिन ये साफ नहीं है कि ये मेलवेयर पेगासस ही था.

Supreme Court में Pegasus Case पर क्या हुआ?

पैनल ने अपनी जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में Supreme Court को सौंप दी. इस दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमना ने सरकार को लेकर टिप्पणी कर दी. उन्होंने कहा कि सरकार ने जांच समिति के साथ सहयोग नहीं किया. हालांकि उन्होंने ये जानकारी डिसक्लोज नहीं करने के अपने स्टैंड को दोहराया कि सरकार ने देश के नागरिकों की जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया या नहीं.

इस मामले की जांच करने वाले पैनल के अध्यक्ष हैं Supreme Court के रिटायर्ड जज आरवी रवींद्रन. शीर्ष अदालत ने ये जांच करने के लिए पैनल का गठन किया था कि क्या देश के पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर उनके मोबाइल सिस्टम में डाला गया था. जुलाई महीने में पैनल ने अपनी फाइनल रिपोर्ट सबमिट कर दी थी, जिसे आज सीलबंद लिफाफे में Supreme Court को सौंप दिया गया. बताया गया है कि जस्टिस रवींद्रन ने रिपोर्ट में नागरिकों की सुरक्षा, आगे की कार्यवाही, जिम्मेदारी, निजी सुरक्षा में सुधार के लिए कानूनी संशोधन, शिकायत निवारण के लिए सिस्टम बनाने जैसे मुद्दों पर अहम सुझाव दिए हैं.

अब मामले की अगली सुनवाई चार हफ्तों के बाद होगी. कोर्ट रजिस्ट्री इसके लिए तारीख तय करेगी. 

क्या है Pegasus Case?

कंप्यूटर या मोबाइल के सॉफ्टवेयर सिस्टम को करप्ट करने के लिए जो सॉफ्टवेयर बनाया जाता है, उसे मेलवेयर कहते हैं. इसके जरिये हैकिंग कर कंप्यूटर या मोबाइल सिस्टम को डैमेज किया जा सकता है या उनमें मौजूदा सारी जानकारी हासिल की जा सकती है. दुनियाभर में ये मेलवेयर छोटे-बड़े संस्थानों, व्यक्तिगत या सरकारी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, वेबसाइट आदि को हैक करने या उनकी जानकारी हासिल करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

पेगासस ऐसा ही एक मेलवेयर है, जिसे कई जानकार दुनिया का सबसे खतरनाक जासूसी मेलवेयर बताते हैं. पेगासस इजरायल की एक साइबर इंटेलिजेंस कंपनी NSO बनाती है. दुनियाभर में इस कंपनी पर आम से लेकर खास लोगों तक के मोबाइल की जासूसी करने का आरोप लगता रहा है.

भारत में इस कंपनी और इसके मेलवेयर का नाम 18 जुलाई 2021 को चर्चा में आया. दुनिया के 17 अखबारों और न्यूज़ पोर्टल्स पर पेगासस को लेकर एक प्रोजेक्ट के तहत खबरें छापी गईं. बताया गया कि इजरायल में सर्विलांस का काम करने वाली निजी कंपनी के डेटाबेस में दुनिया के हजारों लोगों के मोबाइल नंबर मिले हैं. पता चला कि पेगासस का डेटाबेस लीक हुआ और सबसे पहले फ्रांस की नॉन-प्रॉफिट मीडिया कंपनी फॉरबिडन स्टोरीज़ और मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल को मिला. इन दोनों ने ये डेटा दुनिया के 17 मीडिया हाउस के साथ शेयर किया. भारत में ये डेटा 'द वायर' को मिला. इस पूरे अभियान को पेगासस प्रोजेक्ट का नाम दिया गया.

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक पेगासस डेटाबेस में 300 भारतीयों के मोबाइल नंबर थे. कहा गया कि इनमें 40 पत्रकारों, 3 बड़े विपक्षी नेताओं, मौजूदा केंद्र सरकार के दो मंत्रियों, एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति और कई सिक्योरिटी एजेंसियों के अधिकारियों और कुछ कारोबारियों के नंबर शामिल थे. सूची में सबसे बड़ा नाम राहुल गांधी का आया. उनके दो मोबाइल नंबर पेगासस के संभावित टारगेट रहे. रिपोर्ट के मुताबिक उनके 5 दोस्तों और करीबियों के नंबर भी लिस्ट में हैं.

इसके बाद पेगासस का मामला Supreme Court पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर बार छूट नहीं पा सकती है. ऐसा कहते हुए Supreme Court ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया था.

दुनियादारी: पेगासस को तकनीक का 'एटम बम' क्यों कहा जा रहा है?