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'शराबबंदी अफसरों के लिए पैसा कमाने का जरिया', पटना HC ने बिहार सरकार को जमकर सुनाया

पटना हाई कोर्ट ने एक पुलिस इंस्पेक्टर के निलंबन आदेश को रद्द करते हुए कहा कि शराबबंदी से शराब की ‘तस्करी’ को बढ़ावा मिल रहा है.

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पटना हाई कोर्ट. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

पटना हाई कोर्ट ने शराबबंदी कानून को लेकर बिहार सरकार के खिलाफ गंभीर टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि शराब पर प्रतिबंध ने सरकारी अधिकारियों को नोट छापने का एक जरिया दे दिया है. कोर्ट ने एक पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ जारी किए गए निलंबन आदेश को रद्द करते हुए कहा कि शराबबंदी से शराब की ‘तस्करी’ को बढ़ावा मिल रहा है.

“ठीक से लागू नहीं हो पा रहा शराबबंदी कानून”

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट का ये आदेश मुकेश कुमार पासवान की याचिका पर आया. मुकेश बिहार पुलिस में इंस्पेक्टर थे. पटना बाईपास पुलिस स्टेशन में स्टेशन हाउस ऑफिसर के पद पर थे. एक्साइज अधिकारियों ने उनके स्टेशन के पास छापेमारी कर विदेशी शराब जब्त किए थे. इसके बाद मनोज को निलंबित कर दिया गया.

मुकेश ने निलंबन को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया. विभागीय जांच हुई. इसके बाद राज्य सरकार ने 24 नवंबर 2020 को जारी किए गए आदेश के तहत उन्हें डिमोशन की सजा दी गई.

पटना हाई कोर्ट ने मुकेश पासवान के सस्पेंशन ऑर्डर को निरस्त किया. और कहा कि ये सरकार का आदेश ‘नेचुरल जस्टिस’ के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि ‘बिहार प्रोहिबिशन एंड एक्साइज एक्ट, 2016’ को लोगों के जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने की मंशा से लागू किया था, लेकिन यह कानून कई वजहों से गलत दिशा में चला गया है.

हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस, एक्साइज विभाग, राज्य वाणिज्यिक कर और परिवहन विभागों के अधिकारी इस शराबबंदी का ‘स्वागत’ करते हैं, क्योंकि उनके लिए यह कमाई का जरिया है. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा,

“पुलिस शराब तस्करी में शामिल बड़े लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है. बड़े सिंडिकेट पर शिकंजा नहीं कसा जाता है. ज्यादातर मामले गरीबों और नकली शराब के शिकार लोगों के खिलाफ ही होते हैं. कानून गरीबों के लिए एक मुसीबत बना गया है.”

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राज्य सरकार ने टिप्पणी करने से किया इंकार

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शराबबंदी विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना अनुचित होगा. हालांकि, उन्होंने स्वीकारा कि बेंच ने कुछ जरूरी सवाल उठाए हैं. अधिकारी ने कहा,

“13 करोड़ की आबादी वाले राज्य में केवल 1.4 लाख पुलिसकर्मी हैं, ऐसे में वहां शराबबंदी कानून को लागू करा पाना मुश्किल है. शराबबंदी कानून में तीन संशोधन हो चुके हैं क्योंकि इसमें कुछ अंतर्निहित गलतियां थीं.”

यह फैसला जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने 29 अक्टूबर को सुनाया था. फैसले को पटना हाई कोर्ट की वेबसाइट पर 13 नवंबर को अपलोड किया गया.

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