पटना में एक प्राइवेट अस्पताल है, पारस हॉस्पिटल. इलाज में असुविधा और पैसे 'लूटने' की शिकायतें स्थानीय लोगों की ज़ुबान पर रहती हैं. सरकार तक भी बात पहुंचाई गई, सो सरकार ने एक्शन लिया. छह महीनों के लिए हॉस्पिटल इम्पैनलमेंट रद्द कर दिया गया है. भारत सरकार की योजनाओं के लाभार्थी अब वहां नहीं जाएंगे. जो भर्ती हैं, निश्चित समय तक उनका इलाज जारी रखा जाएगा. फिर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.
प्राइवेट अस्पताल मचा रहा था लूट, सरकार ने ऐसा एक्शन लिया हमेशा याद रहेगा!
पटना के पारस अस्पताल के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही थीं. बात सरकार तक पहुंची तो कार्रवाई हुई.

राज्य की स्वास्थ्य एजेंसी अस्पताल को चिह्नित कर इम्पैनल करती हैं. केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (CGHS) और राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना (SGHS) के नेटवर्क के साथ जोड़ती है. इसके बाद सरकारी स्कीमों के तहत रजिस्टर्ड लाभार्थी उस अस्पताल से मेडिकल सेवाएं ले सकते हैं.
किसी भी अस्पताल को पैनल में आने के लिए बुनियादी ढांचे, सुविधाओं और मेडिकल केयर की गुणवत्ता के मानकों से गुज़रना होता है. इसके बाद अस्पताल सरकारी स्कीमें लागू कर देता है.
ये तो सरकारी स्कीमों को शामिल करना हुआ. दूसरा पैनल होता है, इंश्योरेंस कंपनियों का. कुछ अस्पताल बीमा कंपनी के अस्पतालों की सूची में होते हैं, कुछ नहीं. मतलब कि बीमा कंपनी का अस्पताल के बीच कोई क़रार नहीं है. यहां कैशलेस इलाज नहीं हो सकते हैं, बीमा की सब सेवाएं नहीं ली जा सकतीं.
पैनल से बाहर किया गया अस्पताल हटने के बाद कम से कम दो साल तक पैनल में शामिल नहीं हो सकता, न आवेदन दे सकता है.
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CGHS के ऐडिशनल डायरेक्टर के पत्र के मुताबिक़, पारस अस्पताल के ख़िलाफ़ कई गंभीर और लापरवाही की शिकायतें मिली हैं.
शिकायत अनुभाग (अस्पताल सेल) की सिफ़ारिश के अनुसार, पारस अस्पताल को CGHS पटना के तहत सूचीबद्ध HCO के पैनल से छह महीने की अवधि के लिए या अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्णय लिया है.
इस आदेश के जारी होने से पहले ही इलाज के लिए जो लाभार्थी अस्पताल में भर्ती हैं, वो सात दिनों के भीतर डिस्चार्ज हो जाएं. तब तक CJHS दरों पर उनका इलाज किया जाता रहेगा.
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