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पान मसाला और तंबाकू को अलग-अलग बेचने में क्या चालाकी है, सुप्रीम कोर्ट में बताना पड़ गया

मामला इतना सीरियस हो गया कि सुप्रीम कोर्ट में बहस होने लगी.

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तमिलनाडु सरकार ने राज्य में गुटखा पर बैन लगाया था. (फोटो: इंडिया टुडे)

पान मसाला और तंबाकू (Pan Masala Tobacco) को अलग-अलग क्यों बेचा जाता है? इसको लेकर बड़ा राज खुल गया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सुनवाई के दौरान ये बात सामने आई कि कानून की पकड़ से बचने के लिए दोनों चीजों को अलग-अलग पैक कर बेचा जाता है और बाद में लोग दोनों को मिक्स कर लेते हैं. ऐसे में वो गुटखा बन जाता है. 

दरअसल, तमिलनाडु में गुटखा-पान मसाला की बिक्री पर पाबंदी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर बहस के दौरान दिलचस्प दलीलें सामने आईं.  इस मामले पर 13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिस दौरान जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए तमिलनाडु सरकार से पूछा,

‘कोई अमृत थोड़े ही बेचा जा रहा है. गुटखा बिक्री पर स्थाई पाबंदी क्यों नहीं लगाते?’

जिसका जवाब देते हुए तमिलनाडु सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा,

‘इस पर पूरी तरह से पाबंदी नहीं लगा सकते क्योंकि कंपनियां पान-मसाला और तंबाकू अलग-अलग पाउच में बेचती हैं. लोग अलग-अलग पाउच खरीदते हैं और मिलाकर गुटखा बना लेते हैं. अब आप ही बताइए कि तंबाकू और पान मसाले की खरीद-फरोख्त पर कैसे पाबंदी लगाई जाए?’

क्यों हुई बहस?

दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने 2013 में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत एक अस्थायी प्रावधान का उपयोग करते हुए तंबाकू और गुटखा उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया. हर साल सरकार इसे साल भर के लिए एक्सटेंड करती है. हालांकि, साल 2018 में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के इस अधिसूचना को रद्द कर दिया था. जिसके बाद मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
 

क्या अब गुटखे और तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना संभव है या नहीं, इसको लेकर गुटखा निर्माताओं की ओर से CS वैद्यनाथन ने कहा,

‘सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही इनकी खरीद बिक्री पर अस्थायी पाबंदी लगाई जा सकती है. पूर्ण पाबंदी मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क के तहत नहीं हो सकती. ये अधिसूचना उसके बाहर है.’

अभिषेक मनु सिंघवी ने क्या कहा?

वहीं, गुटखा निर्माताओं के एक और पक्षकार वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि 2006 के उस एक्ट पर आधारित अधिसूचना तो वर्षों पहले ही बेअसर हो चुकी है. अब उसके आधार पर हर साल पाबंदी की अधिसूचना जारी करना स्वीकार्य नहीं है. 

उनकी इस बात को लेकर कपिल सिब्बल ने जवाब दिया,

‘हर साल यही दलील देना भी तो उचित नहीं है क्योंकि ये उत्पाद साल बीतने के बाद भी जनता की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक हैं. क्या साल बीतने के बाद उत्पादों के सेवन से कैंसर का खतरा भी खत्म हो जाता या टल जाता है? ये कैसी दलील दी जा रही है?’

सिब्बल ने आगे कहा, 

‘सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में राज्य में तंबाकू उत्पाद पर बैन का आदेश जारी कर चुका है. हम नहीं चाहते कि हाईकोर्ट उस आदेश की राह में रोड़े अटकाए.’

हालांकि, पीठ ने इतने वाद-विवाद और संवाद के बाद भी कोई आदेश पारित नहीं किया. इस मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी. 

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