कश्मीर घाटी में हिंदुओं और पंडितों को निशाना बनाने का खतरनाक सिलसिला फिर से शुरु हो गया है. पिछले महज एक महीने में आतंकवादियों ने सिलसिलेवार ढंग से कम से कम नौ लोगों की हत्या की है. इनमें सरकारी पदों पर बैठे मुस्लिम, प्रवासी मजदूर और कश्मीरी पंडित शामिल हैं.
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कितना सुरक्षित हुआ कश्मीर, क्या कहते हैं सरकार के आंकड़े?
मोदी सरकार का दावा है कि अनुच्छेद 370 हटाना उसकी 'सबसे बड़ी उपलब्धि' है और इसके कारण पहली बार 'आतंकवाद पर नियंत्रण' हुआ है.
इसे लेकर राजनीतिक पटल पर खूब आरोप-पत्यारोप चल रहे हैं. एक धड़े का दावा है कि मोदी सरकार ने पिछले कुछ सालों में एक तरीके से कश्मीर को ‘बंदी’ बना लिया है और वहां के नागरिकों के मूलभूत अधिकार छीने जा रहे हैं. एक लंबे समय तक उन्हें इंटरनेट से भी वंचित किया गया. बिना विचार-विमर्श के अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर दिया गया. और इन ‘ज्यादतियों’ को लेकर जब जनता विरोध करना चाहती है तो उसे भी दबाया जाता है. नतीजन अब आतंकवादी सक्रिय हो गए हैं और सरकार की गलत नीतियों का फायदा उठाकर आम जनमानस में अपनी पैठ बना रहे हैं.
वहीं सरकार की दलील है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद से कश्मीर और सुरक्षित हुआ है, निवेश बढ़ रहा है, लोगों को केंद्रीय योजनाओं का लाभ मिल रहा है और आतंकियों तथा मिलिटेंट्स पर करारा प्रहार हुआ है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीआरपीएफ की स्थापना दिवस के मौके पर 20 मार्च 2022 को कहा था अनुच्छेद 370 हटाना मोदी सरकार की 'सबसे बड़ी उपलब्धि' है और इसके कारण पहली बार 'आतंकवाद पर नियंत्रण' हुआ है. उन्होंने कहा था,
‘अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सुरक्षा बलों ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया है. साथ ही, जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र पहुंच गया है, तेजी से आर्थिक विकास हो रहा है और भ्रष्टाचार से भी प्रभावी ढंग से निपटा जा रहा है.’
लेकिन किसकी बातों में सच्चाई है, इसके लिए सरकारी आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं.
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद की स्थिति!केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीती दो फरवरी को राज्यसभा में एक लिखित जवाब पेश किया था. इसके मुताबिक 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से लेकर 26 जनवरी 2022 तक जम्मू कश्मीर में कुल 541 आतंकी घटनाएं हुईं. इन हमलों में कुल 439 आतंकी मारे गए. साथ ही 98 आम नागरिकों की भी मौत हुई और सुरक्षा बलों के 109 जवान शहीद हुए. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ये भी बताया था कि इन घटनाओं के चलते कम से कम 5 करोड़ 30 लाख रुपये की निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है.
इसके साथ ही इससे पहले की भी स्थिति देख लेते हैं.
गृह मंत्रालय द्वारा 23 मार्च 2021 को लोकसभा में पेश किए गए एक लिखित जवाब के मुताबिक जम्मू कश्मीर में साल 2014 में 222, साल 2015 में 208, साल 2016 में 322, साल 2017 में 342, साल 2018 में 614, साल 2019 में 594, साल 2020 में 244 और साल 2021 में 229 आतंकी घटनाएं हुई थीं.
इस तरह साल 2019 की तुलना में 2020 और 2021 में आतंकी घटनाएं जरूर कम हुई हैं, लेकिन ये अभी भी 2014 और 2015 की तुलना में ज्यादा है. इस दौरान 2014 से लेकर 2021 तक आतंकी घटनाओं के चलते जम्मू-कश्मीर में 516 जवान शहीद हो गए और 2017 से 2021 के बीच सुरक्षाबलों के 796 जवान घायल हुए.
इस तरह इन वर्षों में आतंकी घटनाओं के चलते जम्मू-कश्मीर में 255 आम नागरिक मारे गए और 2017 से 2021 के बीच 534 आम नागरिक घायल हो गए.
मोदी सरकार का दावा है कि उन्होंने आतंकवाद के प्रति अपनी जीरो टॉलरेंस नीति के तहत कानूनी ढांचे को मजबूत किया है, खुफिया तंत्र को सरल और कारगर बनाया है. साथ ही सीमा और तटवर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाई गई है. लेकिन हाल की घटनाओं ने सरकार के इन दावों पर सवाल खड़े किए हैं. इसके मद्देनजर जम्मू-कश्मीर प्रशासन के साथ हुई बैठक में गृह मंत्रालय ने सुरक्षा बढ़ाने और आतंकियों से सख्ती से निपटने की बात कही है. देखते हैं इन निर्देशों का क्या असर आने वाले दिनों में देखने को मिलता है.
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