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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर FIR दर्ज करने का आदेश, इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा है मामला

Electoral Bond मामले में Bengaluru court के आदेश के बाद Karnataka CM Siddaramaiah हमलावर हैं. उन्होंने Nirmala Sitharaman, HD Kumaraswamy के साथ-साथ PM Modi का भी इस्तीफ़ा मांग लिया है.

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इलेक्टोरल बॉन्ड पर कोर्ट का फ़ैसला. (फ़ोटो - इंडिया टुडे)

बेंगलुरु की एक कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए जबरन वसूली के आरोपों को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करने का आदेश दिया है. इस आदेश के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सीतारमण के इस्तीफ़े की मांग की है. साथ ही, पीएम मोदी और कुमारस्वामी के भी इस्तीफ़े की मांग की है. वहीं, मामले में पुलिस ने निर्मला सीतारमण और अन्य के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कर ली है.

इंडिया टुडे से जुड़े सगाय राज की ख़बर के मुताबिक़, जनाधिकार संघर्ष संगठन के आदर्श अय्यर ने निर्मला सीतारमण और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए जबरन वसूली की गई. इसी पर अब, 28 सितंबर को कोर्ट का केस दर्ज करने का आदेश आया है. इस्तीफ़े की मांग करते हुए सिद्धारमैया ने कहा है कि मामले में रिपोर्ट तीन महीने के भीतर पेश की जानी चाहिए. कन्नड भाषा में किए गए X पोस्ट में उन्होंने आगे लिखा,

क्या BJP वाले उनसे इस्तीफ़ा देने के लिए कहेंगे?  कब विरोध और मार्च करेंगे? अब धारा 17ए (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) के मुताबिक़, जांच पूरी होनी चाहिए और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिए. मेरे मामले में निचली कोर्ट ने आदेश पारित किया. इस पर राज्यपाल ने धारा 17ए के तहत जांच के लिए कहा है और कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जांच पूरी कर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश की जाए.

बता दें, धारा 17A लोक सेवकों को बेवजह की जांच (frivolous basis) से अतिरिक्त सुरक्षा देती है. ये प्रावधान पुलिस अधिकारी के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी लोक सेवक द्वारा किए गए किसी भी कथित अपराध की जांच के लिए सक्षम प्राधिकारी से पहले मंजूरी लेना मेंडेटरी करती है. ये प्रावधान अधिनियम में अमेंडमेंट के ज़रिए 26 जुलाई, 2018 को जोड़ा गया था. सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ MUDA मामले में कथित अनियमितताओं के संबंध में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच की जाएगी.

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इससे पहले, फ़रवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताया था और इसे रद्द कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि ये नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. बता दें, केंद्र सरकार ने 2018 में इस स्कीम की शुरुआत की थी. उस समय सरकार ने कहा था कि इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद दान की जगह लेना था , ताकि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को बेहतर बनाया जा सके.

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