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भारत में सांप की नई प्रजाति मिली, बॉलीवुड एक्टर Leonardo DiCaprio पर नाम रख दिया

नाम है, एंगुइकुलस डिकैप्रियोई (anguiculus dicaprioi). एंगुइकुलस, लैटिन शब्द है. इसका अर्थ होता है ‘छोटा सांप’. डि-कैप्रियो का बन गया डिकैप्रियोई.

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सांपों के सबसे बड़े परिवार का सबसे नया सदस्य. (फ़ोटो - एजेंसी/सोशल)

वैज्ञानिकों की एक टीम ने पश्चिमी हिमालय में सांप की एक नई प्रजाति खोजी है और इसका नाम उन्होंने हॉलीवुड स्टार लियोनार्डो डि-कैप्रियो के नाम पर रख दिया है (New Snake Named After Leonardo DiCaprio). नाम दिया है, ‘एंगुइकुलस डिकैप्रियोई’ (anguiculus dicaprioi). एंगुइकुलस, लैटिन शब्द है. इसका अर्थ होता है ‘छोटा सांप’. डि-कैप्रियो का बन गया ‘डिकैप्रियोई’.

यह सांप ‘कोलुब्रिडे’ (Colubridae) परिवार का सदस्य है. इस ग्रह पर सांपों का सबसे बड़ा परिवार, जिसमें कुल 304 वंश और 1,938 प्रजातियां हैं. दुनिया में जितने सांप हैं, उसका लगभग दो-तिहाई हिस्सा इसी परिवार से है.

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भारत, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2020 में सांपों की कम ज्ञात प्रजातियों की खोज शुरू की. इसी सिलसिले में वो हिमाचल प्रदेश में स्थित पश्चिमी हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे. वहीं उन्हें मिट्टी की सड़क पर भूरे रंग के कुछ सांप मिले. 

उनकी खोज और नई प्रजाति का अध्ययन ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल में छपा है. मिज़ोरम विश्वविद्यालय में प्राणीशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर और शोधकर्ताओं की टीम के सदस्य एचटी लालरेमसंगा ने मीडिया को बताया,

हिमाचल प्रदेश के चंबा और कुल्लू जैसे क्षेत्रों में पाए जाने के अलावा, यह नई प्रजाति उत्तराखंड के नैनीताल और नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में भी पाई गई हैं.

टीम में इनके अलावा ज़ीशान ए मिर्ज़ा, वीरेंद्र के भारद्वाज, सौनक पाल, गर्नोट वोगेल, पैट्रिक डी कैम्पबेल और हर्षिल पटेल शामिल हैं.

डि-कैप्रियो के नाम पर क्यों?

लियोनार्डो डि-कैप्रियो एक अमेरिकी अभिनेता, फ़िल्म निर्माता और पर्यावरणविद् हैं. दुनिया के जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण जैसे मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने में उनका नाम अमूमन लिया जाता है. कहा जा रहा है कि इसीलिए इस नए सांप का नाम अभिनेता के नाम पर रखा गया है.

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एक और सांप मिला है, ‘एंगुइकुलस रैपी’. यह सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश में पाया जाता है. ज़्यादातर मई के अंत से अगस्त तक सक्रिय रहते हैं और साल के अन्य समय में नहीं पाए जाते हैं. 

दोनों प्रजातियों के जीव विज्ञान के बारे में अभी ज़्यादा जानकारी नहीं है. इसमें भी ‘एंगुइकुलस रैपी’ दुर्लभ है. पिछले कुछ दशकों में नहीं ही मिला है.

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