अगर आपने स्कूल में सामाजिक अध्ययन की किताब पढ़ी है या फिर थोड़ा सा भी सामान्य ज्ञान दुरुस्त है तो जानते होंगे. भारतीय संघ में शक्तियों को तीन हिस्सों में बांटा गया है - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका.
विधायिका जिन पर कानून बनाने की जिम्मा होता है, कार्यपालिका, जिन पर उन कानूनों को लागू करने का जिम्मा होता है. और तीसरा अंग. न्यायपालिका, जो न्याय करती है, जिस पर देश के तमाम कानूनों को संरक्षण देने का जिम्मा होता है. ऐसे में भारत के मुख्य न्यायाधीश पर उतनी ही गंभीर ज़िम्मेदारियों का बोझ होता है, जितना कि देश के प्रधानमंत्री पर. मगर दोनों में एक फर्क होता है. अगर बहुमत है तो प्रधानमंत्री के पास 5 साल का पूरा कार्यकाल होता है, मगर चीफ जस्टिस कम समय के लिए बनते हैं. सुप्रीम कोर्ट में जब तक किसी जस्टिस के चीफ जस्टिस बनने की बारी आती है, उनके रिटायरमेंट का समय भी आ जाता है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू.यू ललित को ही देख लीजिए, उनका कार्यकाल फकत 49 दिन का रहा.
अपने पहले बयान में चीफ जस्टिस ने किसे संदेश दिया?
जब चीफ जस्टिस ये कहते हैं तो पूरा देश उनकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखता है.

लंबे वक्त बाद देश को लंबे कार्यकाल वाले चीफ जस्टिस मिले हैं. आज यानी 9 नवंबर 2022 की तारीख को धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ ले ली. वो अगले 2 साल तक यानी 10 नवंबर 2024 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहेंगे. यूं तो CJI अपने आप में एक बहुत बड़ा परिचय है. मगर डी.वाई चंद्रचूड़ का एक परिचय ये भी है कि वो देश के पूर्व चीफ जस्टिस वाई.वी.चंद्रचूड़ के बेटे हैं. जिनके नाम देश में सबसे लंबे वक्त तक चीफ जस्टिस रहने का रिकॉर्ड है. वो साल 1978 से 1985 के बीच मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे हैं. तो पिता के बाद अब बेटे पर भी बड़ी जिम्मेदारी है.
सामान्य नागरिक की सेवा करना हमारी प्राथमिकता है. जब चीफ जस्टिस ये कहते हैं तो पूरा देश उनकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखता है. CJI चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से LLB की पढ़ाई की है. हार्वर्ड से ही LLM और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट भी किया. वकालत से शुरूआत की. 29 मार्च 2000 को, उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने. अब देश के चीफ जस्टिस की जिम्मेदारी. करियर बड़ा हो या छोटा, कोई जस्टिस हमेशा अपने फैसलों और टिप्पणियों के लिए याद किया जाता है. जब हम जहन में जस्टिस चंद्रचूड़ के नाम को उतारते हैं. तो हमें कई महत्वपूर्ण केस याद आते हैं. जिन पर उन्होंने फैसले दिए या बेंच का हिस्सा रहे.
आधार कार्ड और प्राइवेसी पर दिया गया उनका फैसला नजीर है. उन्होंने अपने फैसले में कहा था, कोई भी वेलफेयर स्कीम, किसी इंसान की प्राइवेसी को बाधित नहीं कर सकती. राइट टू प्राइवेसी के मसले पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने पूर्व चीफ जस्टिस और अपने पिता वी वाई चंद्रचूड़ का फैसला पलट दिया था. उन्होंने 1976 के ADM जबलपुर केस में अपने फैसले में कहा था निजता का अधिकार संविधान का अभिन्न हिस्सा है. उन्होंने अपने पिता और पूर्व सीजेआई के फैसले को 'गंभीर रूप से गलत' बताया था.
जस्टिस चंद्रचूड़ राइट टू डिसेंट के भी समर्थक रहे हैं. उन्होंने विरोध के अधिकार को भी अपने फैसलों के जरिए संरक्षित किया है. सरकार के खिलाफ बोलने पर गिरफ्तारी के मामले में उन्होंने कई बार साफ कहा है, विरोध का अधिकार सोसाइटी के लिए एक सेफ्टी वॉल की तरह है. आप किसी को सरकार की आलोचना से नहीं रोक सकते हैं. राइट टू डिग्निटी, राइट टू प्राइवेसी, विमेन राइट्स, राइट ऑफ च्वाइस जैसे मसलों पर उनकी राय फैसलों के जरिए हर तरह से प्रोटेक्ट किया है. हाल ही में राइट टू अबॉशन पर दिया गया उनका फैसला नजीर बना. फैसले में उन्होंने कहा था- कोई भी महिला को चाहे वो विवाहित हो या नहीं, गर्भपात चुनने का अधिकार पूरी तरह से उसी के पास है. LGBT के मुद्दे से जुड़ी धारा 377 को खत्म करने का उनका फैसला भी, पिछले एक दशक के महत्वपूर्ण फैसलों में गिना जाता है. सेना में महिलाओं के परमानेंट कमीशन का फैसला भी CJI चंद्रचूड़ ने दिया था. इस मुद्दे पर उन्होंने सरकार को काफी लताड़ भी लगाई थी. ऐतिहासिक अयोध्या मामले की बेंच में भी वो शामिल थे, सब जानते हैं फैसला मंदिर के पक्ष में हुआ था. केसेज की कतार बड़ी लंबी है. जिन पर उन्होंने फैसले दिए, उनकी भी, जिन पर उन्हें फैसला करना है.
इसके अलावा CJI चंद्रचूड़ के ही कार्यकाल के दौरान 2024 में लोकसभा के चुनाव भी होंगे. इस लिहाज से उनका कार्यकाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उस वक्त चुनाव से जुड़े कई मामले सुप्रीम कोर्ट में आ सकते हैं. चीफ जस्टिस की शपथ लेने से पहले CJI चंद्रचूड़ का इंटरव्यू इंडियन एक्सप्रेस के लिए पत्रकार अनंत कृष्णन ने किया. उन्होंने पूछा कि आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
''नेतृत्व करना मेरी पहली प्राथमिकता है, मैं जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश था तब भी, मेरा हमेशा से मानना रहा है, मुख्य न्यायाधीश सबसे जरूरी न्यायिक कार्य को नहीं छोड़ सकता है. तो, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, आपको एक न्यायाधीश के रूप में स्वयं के कार्य पर ध्यान देना होगा. यह कहते हुए मैं जानता हूं कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने पर भारी अतिरिक्त प्रशासनिक जिम्मेदारी होगी. मैंने पहले भी हमेशा यह कहा है कि हमारी न्यायिक प्रणाली औपनिवेशिक मॉडल पर आधारित है, जहां व्यक्तिगत नागरिकों को न्याय की तलाश करनी होती है. मेरा मिशन हमारी प्रणाली को और अधिक सरल, अधिक पारदर्शी, अधिक कुशल बनाना है ताकि न्यायपालिका के साथ आम नागरिकों का संपर्क आसान, सरल और पारदर्शी हो सके. दूसरा, निश्चित रूप से, अंतरात्मा की आवाज और कर्तव्य की पुकार है क्योंकि मैं इस तथ्य से अवगत हूं कि न्यायपालिका आम नागरिकों के लिए विश्वास का एक जबरदस्त स्रोत है.''
बातों से साफ है कि उनका फोकस न्यायिक कार्य पर ही ज्यादा रहने वाला है, बावजूद इसके उनके सामने ज्यूडिशियल रिफॉर्म की भी कई चुनौतियां भी हैं. सुनिए सुप्रीम कोर्ट के सीनियर लॉयर प्रदीप राय क्या कहते हैं -
मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक जितने भी CJI हुए, उनके और सरकार के बीच कोलेजियम की व्यवस्था को लेकर एक लकीर खिंची रही. सरकार के नुमाइंदे लगातार जजों की नियुक्ति की इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटव्यू में CJI ने इस पर भी जवाब दिया. कहा -
''किसी भी संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था पूर्ण होने का दावा नहीं कर सकती है. जब कॉलेजियम के कार्य करने के तरीके की आलोचना होती है, तो हमें इसे सकारात्मक दृष्टि से देखना होगा. मुझे नहीं लगता कि यह समग्र रूप से न्यायपालिका की आलोचना को दर्शाता है. लेकिन, वास्तव में, हमें न्यायपालिका के अंदर और बाहर जो आवाजें सुनाई देती हैं, उसके प्रति हमें उत्तरदायी होना चाहिए और फिर व्यवस्था में सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए. अधिक उद्देश्यपूर्ण मानदंड लाना चाहिए.''
2 साल का कार्यकाल है तो इसी वक्त में CJI की बातों का भी परीक्षण होगा. कई आलोचक न्यायपालिका में सरकार के दखल को लेकर भी आलोचना करते हैं, खासकर तब खूब आलोचना हुई, जब अहम फैसले देने वाले पूर्व चीफ जस्टिस गोगोई, राज्यसभा चले गए. ऐसे में ये देखना रुचिकर होगा कि चीफ जस्टिस न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कितनी मजबूती दे पाते हैं. उनसे बहुतों को न्याय की उम्मीद है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई करने वाले छात्र स्वप्लिन क्या उम्मीद कर रहे हैं.
दी लल्लनटॉप शो: क्या इस मुद्दे पर हो सकता है मोदी सरकार Vs चीफ जस्टिस चंद्रचूड़?