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नेपाल के क्रैश विमान का ब्लैक बॉक्स मिला, जानिए इसमें कौन से राज़ छिपे होते हैं?

विमान में सवार सभी 22 लोगों के शव मिले, मरने वालों में 4 भारतीय

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नेपाल में हुए प्लेन हादसे में 4 भारतीयों की भी मौत हुई है | फोटो: आजतक

नेपाल (Nepal) के मस्तांग जिले में रविवार, 29 मई को हुए विमान हादसे (Tara Airlines Plane Crash) में मरने वाले सभी 22 लोगों के शव बरामद कर लिए गए हैं. रेस्क्यू टीम से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि 22 शवों के साथ ही विमान का ब्लैक बॉक्स (Black Box) भी बरामद कर लिया गया है. ब्लैक बॉक्स को बेस स्टेशन भेज दिया गया है. इससे पहले सोमवार को 21 लोगों के शव बरामद किए गए थे, लेकिन विमान में कुल 22 लोग मौजूद थे, इसलिए मंगलवार को भी रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया.

क्रैश हुए प्लेन में भारत के 4 लोग

नेपाल में क्रैश हुए प्लेन में भारत के भी 4 लोग थे. ये सभी एक ही परिवार के सदस्य थे और महाराष्ट्र के ठाणे के रहने वाले थे. नेपाल में भारतीय दूतावास ने इसकी जानकारी देते हुए बताया,

ठाणे के अशोक त्रिपाठी(54), उनकी पत्नी वैभवी बांदेकर त्रिपाठी(51), बेटा धनुष त्रिपाठी(22) और बेटी ऋतिका त्रिपाठी(18) भी दुर्घटनाग्रस्त हुए प्लेन में यात्रा कर रही थीं. सभी नेपाल के पोखरा स्थित एक मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे.

कैसे हुआ था हादसा?

नेपाल के नागरिक उड्डयन विभाग ने विमान हादसे की जानकारी देते हुए बताया कि रविवार सुबह तारा एयरलाइंस का विमान पोखरा से जोमसोम के लिए उड़ा था. विमान में 19 पैसेंजर और 3 क्रू मेंबर्स थे. ज्यादातर पैसेंजर जोमसोम में स्थित मुक्तिनाथ मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे. अधिकारियों के मुताबिक सुबह करीब 10 बजे ये विमान अचानक लापता हो गया. दिनभर तलाशी ऑपरेशन चलाया गया. उसके बाद रविवार शाम 4 बजे खबर मिली कि विमान मस्तांग इलाके में क्रैश हो गया है. दुर्घटना की जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी कमेटी बनाई गई है.

क्या होता है ब्लैक-बॉक्स?

इसके नाम के साथ ब्लैक भले ही लगा हो, लेकिन यह बक्सा आम तौर पर नारंगी रंग का होता है. यह स्टील और टाइटेनियम से बनी एक रिकॉर्डिंग डिवाइस है. इसमें कई तरह के सिग्नल, बातचीत और तकनीकी डेटा रिकॉर्ड होते रहते हैं. इसमें दो तरह के रिकॉर्डर होते हैं. फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR). पहला रिकॉर्डर विमान या हेलिकॉप्टर की ऊंचाई, हवा की स्पीड और ईंधन का स्तर जैसी कई चीजों को हर सेकेंड रिकॉर्ड करता है. इसकी रिकॉर्डिंग स्टोरेज क्षमता 24 घंटे से ज्यादा होती है. दूसरा रिकॉर्डर यानी सीवीआर कॉकपिट में होने वाली बातचीत और अन्य आवाजें  भी रिकॉर्ड करता है.

ब्लैक-बॉक्स नष्ट क्यों नहीं होता?

इसका ऊपरी खोल मोटे स्टील, टाइटेनियम और हाई टेंपरेचर इंसुलेशन से बना होता है. यह इतना मजबूत होता है कि बड़ी से बड़ी टक्कर में भी यह जमीन, आसमान या समंदर की गहराइयों तक में सुरक्षित बचा रह रह सकता है. यह सैकड़ों डिग्री तापमान झेल सकता है. खारे पानी में भी वर्षों बिना गले-सड़े कायम रह सकता है. बॉक्स के भीतर के उपकरण समुद्र की सैकड़ों फीट गहराई से भी सिग्ननल भेज सकते हैं. यह पानी में एक महीने तक सिग्नल भेज सकता है. यानी दुर्घटना के एक महीने तक की अवधि में इसे आसानी से ढूंढ निकाला जा सकता है. यह बीकन बैटरी से चलता है, जो पांच साल तक डिस्चार्ज नहीं होती.

ब्लैक बॉक्स से आगे क्या?

दुनिया भर के फ्लाइट टेक्निशियंस ब्लैक-बॉक्स का विकल्प ढूंढने में लगे हैं. कोशिश यह भी है कि ब्लैक बॉक्स की जगह सभी रिकॉर्डिंग रियल टाइम में सीधे ग्राउंड स्टेशन पर होती रहे. एयर-टू-ग्राउंड सिस्टम की मदद से समय रहते दुर्घटना भी टाली जा सकती है. ब्लैक बॉक्स से निकलने वाले डेटा के विश्लेषण में हफ्ते दो हफ्ते लग जाते हैं, जबकि रियल टाइम रिकॉर्डिंग में यह काम जल्द से जल्द हो सकता है. हालांकि, दुनिया भर की वायुसेनाएं और एविएशन कंपनियां ऐसा करने से कतरा रही हैं, क्योंकि एयर-टू-ग्राउंड सिग्नल भी फूल-प्रूफ नहीं होता. अगर ऐन मौके पर सिग्नल में कोई दिक्कत आ जाती है, तो बड़ा डेटा गंवाने का खतरा बना रहेगा.

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