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मोदी 3.0 में उत्तर प्रदेश का 'वजन' हुआ कम, 9 मंत्रियों के पीछे जाति संतुलन का खेल?

लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में बीजेपी की सीटें कम हुईं, तो ज़ाहिर है प्रतिनिधित्व भी कम हो गया. मंत्रिपद के आवंटन में भाजपा ने छाछ भी फूंक-फूंक कर पी है. जातिगत संतुलन बनाने की कोशिश की है.

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PM मोदी की तीसरी कैबिनेट का साइड व्यू. (फ़ोटो - PTI)

बीती 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए. किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, मगर भाजपा के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन ने तीसरी बार सरकार बनाई. रविवार, 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 71 सांसदों ने मंत्रिपद की शपथ ली. लेकिन इस बार देखने वाली चीज़ है मंत्रिपरिषद का घटाव-बढ़ाव.

उत्तर प्रदेश से ‘नाराज़’ भाजपा?

इस बार के चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से धक्का लगा है. 2019 में कुल 80 में से 62 सीटें जीतने वाली भाजपा, इस बार लुढ़क कर 33 पर आ गई है. हालांकि, इस बार भाजपा के सहयोगियों ने बढ़त बनाई है. 2019 में अपना दल सोनेलाल को दो सीटें मिली थीं. इस बार अपना दल और राष्ट्रीय लोक दल को मिलाकर तीन सीटें मिल गई हैं.

सीटें कम हुईं, तो ज़ाहिर है प्रतिनिधित्व भी कम हो गया. मोदी-2.0 की कैबिनेट में कुल 14 मंत्री यूपी से थे, इस बार 9 हैं. इनमें से सात भाजपा से हैं और दो गठबंधन सहयोगी. रालोद के जयंत चौधरी और अपना दल(एस) की अनुप्रिया पटेल. हालांकि, कैबिनेट में प्रदेश से केवल राजनाथ सिंह को एंट्री दी गई है. बाक़ी सब राज्य मंत्री.

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हालांकि, मंत्रिपद के आवंटन में भाजपा ने छाछ भी फूंक-फूंक कर पी है. चर्चा है कि चुनावों में OBC और दलित वोट्स को विपक्षी गठबंधन INDIA के पाले में शिफ़्ट होता हुए देख, और ठाकुर नेताओं के एक वर्ग की नाराज़गी को देखते हुए भाजपा ने जातिगत संतुलन बनाने की कोशिश की है. 

- नौ मंत्रियों में से तीन OBC हैं: बदायूं से लोधी नेता बीएल वर्मा, महाराजगंज से कुर्मी नेता पंकज चौधरी और मिर्ज़ापुर से अनुप्रिया पटेल. 

- दलित नेता दो हैं: आगरा से एसपी सिंह बघेल आगरा और बांसगांव से कमलेश पासवान. 

- ठाकुर समाज से भी दो नेता हैं: लखनऊ से राजनाथ सिंह और गोंडा से कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ़ ​​राजा भैया. 

- पीलीभीत से जीतने वाले जितिन प्रसाद यूपी से एकमात्र ब्राह्मण नेता हैं, जो मंत्रिपरिषद का हिस्सा होंगे. 

- इनके अलावा रालोद के मुखिया जयंत चौधरी हैं. जाट नेता.

राजनीति कवर करने वालों ने राजा भैया के अचानक से मंत्रिपरिषद में शामिल होने के मतलब निकाले. इंडियन एक्सप्रेस की मौलश्री सेठ की रिपोर्ट के मुताबिक़, ये सत्ता का संतुलन बनाने की कोशिश है.

दरअसल, बृजभूषण शरण सिंह का इस इलाक़े में ‘दबदबा’ है. मगर भाजपा ने अबकी बार यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे बृजभूषण को टिकट नहीं दिया. उनकी जगह उनके बेटे करण भूषण सिंह को गोंडा से मैदान में उतारा. वो चुनाव जीते भी. जानकारों का मानना है कि भाजपा को वहां उनके बरक्स एक मज़बूत ठाकुर चेहरा तैयार करना है. कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ़ ​​राजा भैया, इसी योजना का हिस्सा हैं.

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