डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के दस साल और आठ महीने के बाद पुणे की एक विशेष अदालत ने अपना फ़ैसला सुना दिया है. अदालत ने दो आरोपी हमलावरों सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दोषी ठहराया है और उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है. वहीं तीन आरोपियों वीरेंद्र सिंह तावड़े, मुंबई के वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहयोगी विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है.
नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड की कहानी, 10 साल बाद कोर्ट ने हत्यारों को उम्रकैद की सजा दी है
CBI का दावा कि दाभोलकर की हत्या की वजह उनके और 'सनातन संस्था' के बीच चली आ रही दुश्मनी है.

नरेंद्र अच्युत दाभोलकर. धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास उन्मूलन के पर्याय माने जाते थे. लगभग दशक भर की मेडिकल प्रैक्टिस के बाद 1989 में उन्होंने महाराष्ट्र 'अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' (MANS) की स्थापना की. राज्य में अंधविश्वास उन्मूलन के लिए समर्पित एक संगठन. महाराष्ट्र में समिति की 180 शाखाएं कार्यरत हैं. डॉ. दाभोलकर आजन्म समिति के कार्याध्यक्ष रहे. सभी धर्मों में 'काले जादू' और अंधविश्वासी प्रथाओं को MANS के ज़रिए चुनौती दी. कहा कि ये प्रथाएं ग़रीबों और अशिक्षितों का शोषण करती हैं, और उनके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का अभियान चलाया.
दाभोलकर ने अपना पूरा जीवन धर्मांधता के ख़िलाफ़ और वैज्ञानिक चेतना के प्रसार में लगाया. वो कहते थे,
“अंधविश्वास को ख़त्म करने के लिए क्रोध के बजाय करुणा, और उपहास के बजाय सहानुभूति की ज़रूरत है.”
धार्मिक चरमपंथियों और पाखंडियों के ख़िलाफ़ भी खुल कर लिखते-बोलते थे. इस मसले पर दर्जन-भर किताबें भी लिखीं. उनके नए-नए संस्करण प्रकाशित होते रहे, अनेक पुरस्कार मिले. दाभोलकर लिखते थे,
“वैज्ञानिक चेतना सोचने की एक प्रक्रिया है, काम करने का एक सलीका, सत्य की खोज, जीवन जीने का तरीक़ा, एक आज़ाद आदमी की आत्मा है.”
उनकी एक प्रमुख किताब है, 'अंधविश्वास उन्मूलन: विचार, आचार और सिद्धांत'. तीन खंडों की इस किताब ने श्रद्धा के नाम पर किए जा रहे छल से सीधा लोहा लिया. किताब 'भूत' से साक्षात्कार कराने का पर्दाफाश, ओझाओं की पोल खोलती घटनाएं, मंदिर में जाग्रत देवता और गणेश देवता के दूध पीने के चमत्कार के ब्योरे हैं. कर्मकांड और पाखंडों के ख़िलाफ़ आन्दोलन, जन-जाग्रति कार्यक्रम और भंडाफोड़ जैसे प्रयासों का ब्योरा है.
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डॉ. दाभोलकर पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन करते रहे. मीडिया में लगातार उनके प्रतिवाद, प्रतिक्रिया, साक्षात्कार, संवाद छपते रहे. बारह बरस तक मराठी साप्ताहिक 'साधना' का संपादन भी किया. पाखंड के ख़िलाफ़ संघर्ष और विवेकवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करते हुए सूबे में उनकी पहचान बतौर एक सामाजिक कार्यकर्ता, तर्कवादी, लेखक और संपादक बनती गई, बढ़ती गई. अपने इस अभियान में कइयों ने उनसे बैर पाल लिया. अलग-अलग धार्मिक संगठनों से लेकर राजनीतिक दलों तक. उन्हें 'हिंदू विरोधी' क़रार दिया गया और जान की धमकियां मिलने लगीं.
डॉ. दाभोलकर को किसने मारा?20 अगस्त, 2013. नरेंद्र दाभोलकर सुबह-सुबह टहलने निकले थे. पुणे के वीआर शिंदे ब्रिज के पास दो जन बाइक से आए और उन पर गोलियां चली दीं. एक सिर पर और सीने में दो गोलियां लगते ही मौक़े पर ही उनकी मौत हो गई. इसके बाद हमलावर बिना कोई सुराग़ छोड़े फ़रार हो लिए. फिर उन्होंने मोटरसाइकिल एक तीसरे व्यक्ति को सौंप दी. इसके बाद औरंगाबाद के लिए बस पकड़ ली.
इस हत्या को एक विशेष कॉन्टेक्स्ट में देखा गया, कि जिन्होंने भी तर्क का पाला चुना और धर्म के चरमपंथियों से पंगा लिया, उनकी हत्या कर दी गई. इसी कणी में आगे चलकर CPI सदस्य गोविंद पानसरे, अकादमिक एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश का नाम भी जोड़ा गया.
हत्या के मात्र चार महीने बाद दाभोलकर की बरसों विलंबित मांग पूरी हुई. राज्य सरकार ने 'महाराष्ट्र अंधविश्वास उन्मूलन क़ानून' पारित कर दिया, और ऐसा क़ानून पारित करने वाला महाराष्ट्र देश का सबसे पहला राज्य बना.
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दाभोलकर की मौत की जांच कई एजेंसियों ने की. एकदम शुरुआत में आरोपियों को खोजने के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया था. इसमें पुणे पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस और आतंकवाद विरोधी दस्ता (ATS) के सदस्य थे. हिंदू संगठन 'सनातन संस्था' के पांच सदस्यों पर हत्या की योजना बनाने और सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया गया.
हत्या के पांच महीने बाद जून, 2014 में पुणे पुलिस ने हथियार डीलर मनीष नागोरी और उसके सहयोगी विकास खंडेलवाल को गिरफ़्तार कर लिया. लेकिन अदालत के सामने लाए जाने पर नागोरी पलट गया और दावा किया कि तब के ATS प्रमुख राकेश मारिया ने उन्हें जुर्म क़बूलने के लिए 25 लाख रुपये ऑफ़र किए थे. समय सीमा के अंदर आरोपपत्र न दाख़िल कर पाने की वजह से नागोरी और खंडेलवाल को ज़मानत दे दी गई.
फ़र्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, उसी महीने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर CBI ने हत्या की जांच अपने हाथ ले ली. 10 जून, 2016 को CBI ने एक गवाह के बयान के आधार पर आंख-कान-कला विशेषज्ञ (ENT) सर्जन डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ़्तार किया. डॉ वीरेंद्र तावड़े 'सनातन संस्था' से भी जुड़े हुए हैं. CBI का दावा था कि वही साज़िश के मास्टरमाइंड्स में से एक है. दाभोलकर केस में गिरफ़्तारी से पहले महाराष्ट्र पुलिस ने तावड़े को CPI सदस्य गोविंद पानसरे की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया था.
गोविंद पानसरे को फरवरी, 2015 में उनके कोल्हापुर वाले घर के पास गोली मार दी गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, CBI ने दावा किया कि दाभोलकर की हत्या की वजह उनके और सनातन संस्था के बीच चली आ रही दुश्मनी है.
सितंबर, 2016: जांच एजेंसी ने आरोपपत्र दाख़िल कर दिया. इसके मुताबिक़, सनातन संस्था के फ़रार सदस्य सारंग अकोलकर और विनय पवार ने दाभोलकर को गोली मारी थी. हालांकि, अगस्त 2018 में CBI अपने इस दावे से पलट गई. सचिन प्रकाशराव आंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ़्तार किया और अदालत को सूचित किया कि ये दोनों शूटर थे. ये दोनों ही हिंदूवादी संगठन से जुड़े हुए थे.

आरोपियों पर हत्या, हत्या की साज़िश के अलावा आर्म्स एक्ट और UAPA भी लगाया गया. पुणे की अदालत में केस चला. दाभोलकर के परिवार की अर्ज़ी पर कुछ समय केस हाई कोर्ट की निगरानी में भी चला. फिर हाई कोर्ट ने निगरानी छोड़ दी.
मई, 2019: जांच एजेंसी ने 'सनातन संस्था' के एक वकील संजीव पुनालेकर और उसके सहयोगी विक्रम भावे को गिरफ़्तार किया. फिर तीन और लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया: अमोल काले, अमित दिगवेकर और राजेश बंगेरा. इन तीन लोगों और शरद कालस्कर पर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या का आरोप था.
अंततः 2021 में पांचों आरोपियों पर आरोप तय हुए और अब फ़ैसला आया है.
इस पूरे केस में एक बात ग़ौर करने की है. तीन अलग-अलग एजेंसियों ने आरोप पत्र दाख़िल किए. CBI, कर्नाटक की SIT और महाराष्ट्र की SIT. तीनों ही इस बात पर सहमत हैं कि डॉ नरेंद्र दाभोलकर, CPI सदस्य गोविंद पानसरे, अकादमिक एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याएं जुड़ी हुई हैं. चारों में एक चीज़ कॉमन थी, कि वो एक धर्मांध राज्य के पुरज़ोर विरोधी थे.
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