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चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या सिर्फ डाउनलोड करना अपराध नहीं- मद्रास हाई कोर्ट

हालांकि जज ने युवाओं खासकर जेनरेशन-ज़ी के बीच पॉर्न की बढ़ती लत पर चिंता जताई.

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कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ केस को रद्द कर दिया (सांकेतिक तस्वीर)

मद्रास हाई कोर्ट ने एक हालिया फैसले में कहा है कि अपनी डिवाइस पर महज चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है. 28 साल के एक व्यक्ति के खिलाफ चल रहे केस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये टिप्पणी की है. उस व्यक्ति के खिलाफ चाइल्ड पोर्नोग्राफी के आरोप में POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) कानून और आईटी कानून के खिलाफ केस दर्ज हुआ था. कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ चल रहे केस को रद्द कर दिया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट के जज जस्टिस आनंद वेंकटेश ने फैसले में कहा कि आरोपी हरीश ने स्वीकार किया कि उसे पोर्नोग्राफी की लत थी लेकिन उसने कभी चाइल्ड पोर्नोग्राफी नहीं देखी थी. कोर्ट ने ये भी कहा कि हरीश ने पोर्नोग्राफी वीडियोज़ को न कहीं शेयर किया और न ही किसी को बांटा, जो दोनों कानूनों के तहत अपराध तय करने के लिए जरूरी हैं.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

- POCSO कानून की धारा-14(1) के तहत अपराध तय करने के लिए के ये जरूरी है कि पोर्नोग्राफी में किसी बच्चे का इस्तेमाल हुआ हो.

- इसका मतलब यह होगा कि आरोपी ने बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के उद्देश्यों के लिए किया.

- अगर यह मान भी लें कि आरोपी ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखा है, तो ये POCSO कानून की धारा-14(1) के दायरे में नहीं आएगा.

- IT कानून की धारा-67(बी) के तहत अपराध तय करने के लिए जरूरी है कि आरोपी ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को कहीं पब्लिश किया हो या भेजा हो.

- इसलिए इसके तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को आसान भाषा में कहें तो बच्चों, यानी 18 साल से कम उम्र वाले नाबालिगों को सेक्शुअल एक्ट में दिखाना. उनकी न्यूड कॉन्टेंट को इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी और फॉर्मेट में पब्लिश करना, दूसरों को भेजना अपराध माना जाता है.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बढ़ते मामले को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया था. इसकी धारा 14 और 15 कहती है कि अगर कोई चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बांटता, फैलाता, दिखाता है, उसे तीन साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. कोई शख्स 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी' को कमर्शियल उद्देश्य (बेचने/खरीदने) के लिए रखता है, तो उसे कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. अगर कोई दूसरी बार ये करते हुए पाया जाता है तो सजा पांच से सात साल तक बढ़ाई जा सकती है.

पॉर्न देखने की लत पर क्या बोले जज?

फैसले के दौरान युवाओं खासकर जेनरेशन-ज़ी या जेनरेशन- ज़ेड के बीच पॉर्न की बढ़ती लत पर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा, 

"जेनरेशन-ज़ी बच्चे इस गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. सजा देने के बदले समाज को उन्हें सही तरीके से शिक्षित करना चाहिए और सलाह देनी चाहिए, ताकि वे इस लत से दूर हो सकें."

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस वेंकटेश ने एक हालिया स्टडी का जिक्र करते हुए कहा कि 18 साल से कम उम्र के 10 में से 9 लड़के और 10 में 6 लड़कियां किसी ना किसी तरह का पोर्नोग्राफी कॉन्टेंट देख चुके हैं. उन्होंने कहा कि इन नाबालिग बच्चों पर पोर्नोग्राफी का नकारात्मक असर हो सकता है, उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है.

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