देश में लोकसभा चुनाव में अब लगभग 7-8 महीने बचे हैं. इस बीच हर राजनैतिक दल अपने-अपने तरीक़े से तैयारियां कर रहे हैं. दलों की तैयारियों में गठबंधन बनाने और उसे मज़बूत करने की हरसंभव कोशिश की जा रही है. इस बीच बहुजन समाज पार्टी ने एक बड़ा फ़ैसला किया है. फ़ैसला अकेले चुनाव लड़ने का. यानी बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव में बिना किसी गठबंधन में शामिल हुए मैदान में उतरेगी. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने आज लोकसभा चुनाव के सिलसिले में पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक के बाद कहा कि गठबंधन में नुकसान ज़्यादा और फायदा कम होता है. इसलिए बीएसपी अकेले ही चुनाव लड़ेगी.
लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी BSP, गठबंधन पर मायावती की राय विपक्ष के गले नहीं उतरेगी
बीएसपी ने साफ़ किया है कि 2024 में वो न सत्तापक्ष और न ही विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनेगी.
प्रेस रिलीज़ में क्या वजह बताई गई?
बीएसपी की तरफ से जारी प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि जब बीएसपी गठबंधन करती है तो उसके पारंपरिक वोट का फ़ायदा गठबंधन में शामिल दूसरे दल को हो जाता है. दावा किया गया है कि गठबंधन करने वाले दूसरे दल का वोट बीएसपी को ट्रांसफ़र नहीं होता. इसलिए बीएसपी दूसरों को तो फ़ायदा दिला देती है लेकिन उसको फ़ायदा नहीं मिल पाता. बयान में दावा किया गया है कि गठबंधन करने वाले दल अपना वोट बीएसपी उम्मीदवारों को ट्रांसफ़र कराने की न नीयत रखते हैं और न ही उनके पास वोट ट्रांसफ़र कराने की क्षमता है. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है. इसलिए बीएसपी न सत्ता पक्ष से और न विपक्षी दलों से गठबंधन करेगी.
बीएसपी पहले कर चुकी है गठबंधन
2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ने का दम भरने वाली बीएसपी अपनी धुर विरोधी बीजेपी और समाजवादी पार्टी से भी गठबंधन कर चुकी है. कांग्रेस की सरकार को बीएसपी ने बाहर से समर्थन भी दिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया. इससे पहले बीजेपी की मदद से मायावती मुख्यमंत्री भी बन चुकी हैं. बीजेपी के साथ गठबंधन के दौरान ही 6-6 महीने वाले मुख्यमंत्री का फॉर्म्युला बनाया गया था जो फेल हो गया. सपा के साथ हुआ गठबंधन भी चुनाव ख़त्म होने के बाद तुरंत टूट गया.
बीएसपी को मिला था गठबंधन का फ़ायदा
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती भले ही दूसरे दलों पर वोट ट्रांसफ़र न कराने का आरोप लगाएं, लेकिन आंकड़े कहते हैं कि गठबंधन का असली फ़ायदा बीएसपी को ही मिला. पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हई. 2019 में सपा से गठबंधन करने वाली बीएसपी को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई. वहीं 2019 में सपा महज 5 सीटें ही जीत पाई. सपा को 2014 में भी सिर्फ 5 ही सीटें आई थीं. यानी बिना गठबंधन बीएसपी का हाल बेहाल हो जाता है. कुछ ऐसा ही 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में हुआ जब अकेले चुनाव मैदान में उतरने वाली बीएसपी सिर्फ एक सीट पर सिमट गई.
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