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मणिपुर को हिंसा की आग में जलाने के पीछे 100 रुपये की 'जादुई गोली' का भी हाथ है

हमसे बातचीत में एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, "ब्रदर, ये लड़की का साथ में जो हुआ, वो तुम दिल्ली वाला लोग को डरा देगा."

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मणिपुर हिंसा को लेकर खुद मैतई और कुकी समुदाय क्या कहते हैं? (फोटो क्रेडिट- सिद्धांत मोहन)

मणिपुर के चुराचांदपुर में एक घर है. ताड़ के पत्तों से छबाया हुआ. चारदीवारी भी ताड़ के पत्तों से बनी हुई. कई जगह बेसाख्ता बने झरोखों से मणिपुर की उमस अंदर आ रही है. कमरे के अंदर ईसा मसीह की फोटो लगी है. फोटो पर लिखा है,

“मैं तब खुश होता हूं, जब लोग दूसरों का भला करते हैं.”

नीचे एक 23 साल का बेरोजगार लड़का बैठा हुआ है. उसे पत्रकार घेरे हुए हैं. लड़के के हाथ में, हाथ से शटर चलाने वाला टुटहा फिल्म कैमरा है. वो उससे खेल रहा है. लड़का एक झटके में शटर बंद करते हुए कहता है,

"मेरे घर में एक ही टीवी है. वही सब लोग देखते हैं. बहन का जब वीडियो टीवी पर चलने लगा, तो वो वीडियो घर में सबने देखा था."

मेरे लिए ये साल 2023 का सबसे भयावह वाक्य था. इस लड़के ने अपनी बहन का वायरल वीडियो पूरे परिवार के साथ टीवी पर देखा था. इस वीडियो में उसकी बहन को एक और लड़की के साथ निर्वस्त्र करके भीड़ परेड करवा रही थी.  

अब वो लड़की अब यहां नहीं रहती है. कहीं और रहती है. लड़का बताता है कि वीडियो टीवी चैनलों पर चलने के बाद ही घर वालों को पता चला कि बेटी के साथ हुई इस घटना का ऐसा कोई फुटेज भी मौजूद है. लड़का एक और खुलासा करता है. जिस दिन ये वीडियो वायरल हुआ, उस दिन उसके पिता और भाई की भी हत्या कर दी गई थी.

चुराचांदपुर में मौजूद स्मृतियों की दीवार पर पिता और भाई की तस्वीरों के साथ सैकड़ों ऐसी तस्वीरें लगी हैं, जिन्होंने दो समुदायों के बीच हुई हिंसा में अपनी जान गंवा दी. जिलाधिकारी कार्यालय के ठीक सामने मौजूद इस दीवार पर कमोबेश रोज सैकड़ों कुकी समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर पहुंचते हैं. सांकेतिक ताबूतों के सामने बैठकर विलाप करते हैं. मृतकों के लिए प्रार्थना करते हैं और आखिर में अलग प्रशासन की मांग को बुलंद करते हैं.

तस्वीर- सिद्धांत मोहन/दी लल्लनटॉप

मेरी इन तीन यात्राओं के बीच मणिपुर बहुत बदल चुका है. जैसे चुराचांदपुर का नाम कुकी जनता ने खुद बदल दिया है. राजशाही से मुक्ति पाने के लिए वो खुद को 'लमका' निवासी कहते हैं. लमका यानी तिराहा. कुकी इलाकों में पोस्टरों और तख्तियों पर लिखे 'मणिपुर' पर काला रंग पोत दिया गया है. कांगपोकपी में रहने वाले लोग नागालैंड में मौजूद दीमापुर एयरपोर्ट जाने लगे हैं. चुराचांदपुर में रहने वाली जनता ऐजवाल एयरपोर्ट जाने लगी है. इंफाल से उनके सारे संबंध भंग हो चुके हैं.

लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा की ये मणिपुर में एक ही कहानी नहीं है. साइखुल में रहने वाली दो कुकी लड़कियों का 3-4 मई को रेप हुआ. दोनों की उम्र 21 और 24 वर्ष. एक रेप पीड़िता की मां हमसे बातचीत में कहती हैं कि दोनों लड़कियां इंफाल में एक कारवॉश में काम करती थीं. दोनों को बाहर खींचा गया. रेप करने के साथ ही दोनों लड़कियों के बाल काट दिए गए. उसके बाद उनकी हत्या कर दी गई. मां इंडिया टुडे से बातचीत में बताती हैं,

"मेरी बेटी की मौत के पहले मेरे पास फोन आया - अपनी बेटी को जिंदा देखना चाहती हो या नहीं."

इसके बाद दोनों लड़कियों की मौत की खबर सामने आई.

इस वहशत में एक और अध्याय जुड़ता है कुकी बहुल कांगपोकपी जिले में. आरोप लगता है मैतेई उग्रवादी संगठन अरंबाई टेंगोल पर. जिसे आधिकारिक तौर पर मई के आखिरी हफ्ते में भंग कर दिया गया था, लेकिन काले कपड़े और टैक्टिकल गियर में इनके उग्रवादी हर जगह दिख जाते हैं. कांगपोकपी के मोरबुंग के एक गांव में 19 साल की एक लड़की सामने से बेहद सहमी-सी आती है. उसके चेहरे पर चोट अभी भी बची हुई है. स्थानीय सूत्र बातचीत के पहले आगाह करता है,

"ब्रदर, ये लड़की का साथ में जो हुआ, वो तुम दिल्ली वाला लोग को डरा देगा."

लड़की चेहरा न दिखाने की शर्त समझा देती है. फिर बताती है,

"मैं इंफाल में रह रही थी, एक मुसलमान के घर में छुपी हुई थी. एक दिन मैं एटीएम गई. कुछ लोग पर्पल रंग की स्विफ्ट डिजायर में आए. मेरा आधार कार्ड चेक किया. उन्हें पता चला कि मैं कुकी हूं. मुझे अगवा करके ले गए. फिर मुझे अरंबाई टेंगोल के लोगों को सौंप दिया. वो लोग मुझे बिष्नुपुर लेकर गए. और पूरी कार में अरंबाई टेंगोल के लोग मेरा बलात्कार करते रहे. ड्राइवर ने नहीं किया. बाकी तीनों ने किया. मैं पेशाब करने के बहाने वहां से भागी. एक ऑटो में बैठी. ऑटो का ड्राइवर मुसलमान था. उसने मुझे बचाया."

वीडियो वायरल होने के बाद मैतेई समुदाय के लोग भी सामने आने लगे हैं. आर्मी-असम राइफल्स की गाड़ियां रोकने और पुलिस-आर्मी की गिरफ्त से आतंकियों को छुड़ाने के लिए बदनाम हो चुकी मीरा पाइबी आरोप लगाते हुए कहती हैं कि हिंसा के शुरुआती दिनों में ही चुराचांदपुर में कुकी उग्रवादियों ने 9 मैतेई महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया था. लेकिन उन बलात्कार की घटनाओं के बारे में न मीडिया बात करता है, न ही प्रधानमंत्री बात करते हैं. हालांकि मीरा पाइबी इन महिलाओं के बारे में और गहन डीटेल शेयर करने से इनकार कर देती हैं.

मणिपुर के नाम पर पुता काला रंग. (तस्वीर- सिद्धांत मोहन/दी लल्लनटॉप)

भारतीय सेना और असम राइफल्स पर मनोरमा देवी के रेप और हत्या का आरोप लगाकर मीरा पाइबी ने इंफाल में मौजूद राजमहल 'कांगला' से लेकर असम राइफल्स के बेस तक नग्न प्रदर्शन किया था. "इंडियन आर्मी रेप अस" यानी 'भारतीय सेना, हमारा भी बलात्कार करो' के पोस्टर पूरी दुनिया ने देखे. यही समूह अब मैतेई उग्रवादियों की संगत में उतर आया है. असम राइफल्स के अधिकारी हमसे कहते हैं –  

"ये औरतें हमारा रास्ता रोकती हैं, फिर पीछे से अरंबाई टेंगोल के लड़के हमला करते हैं. महिलाओं पर आप गोली क्या, लाठी भी नहीं चला सकते हैं."  

लेकिन महिलाओं का यही समूह दो कुकी महिलाओं के वीडियो सामने आने के बाद "तब कहां थे?" के व्याकरण में उतर चुका है. मीरा पाइबी के बीच की नेता लुवांग लीमा कहती हैं,  

"बुरा हुआ कुकी लड़कियों के साथ, लेकिन आप मैतेई समुदाय के साथ जो हुआ, आप उन त्रासदियों को ढांप नहीं सकते."

ऐसे में ज़िक्र आता है 80 वर्ष की मैतेई महिला का. नाम, सोरोखाइबम ईबेतोंबी. उनके पति चुरचंद सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा सम्मानित किया गया था.

सोरोखाइबम ईबेतोंबी के पति चुरचंद सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. (तस्वीर- इंडिया टुडे)

28 मई को काकचिंग जिले के सेरो में हिंसा हुई. सोरोखाइबम का परिवार अपनी जान बचाने के लिए भागा. पहले जवान गए, सोरोखाइबम से वापस लेने आने का वादा कर गए. भीड़ ने घर में सोरोखाइबम को अकेले पाया. उन्हें घर में जलाकर मार डाला गया. आरोप लगा कुकी उग्रवादियों पर. कुकी समुदाय के लोग नियमतः इस आरोप को नकार देते हैं. एक मौत FIR की डायरी से बाहर नहीं जाती है. आरोप पर सबकी चुप्पी मणिपुर का नया सच है.

मणिपुर में फायरिंग एक सप्ताहांत की एक्टिविटी है. सेना के एक अधिकारी कहते हैं – अगर आपको फायरिंग देखनी है तो शनिवार-रविवार को आइए. यहां लोग दवा खाकर रातभर फायरिंग करते हैं. किस दवा की बात हो रही है? नाम है – 'वर्ल्ड इज योर्स' उर्फ ‘डब्ल्यू वाई’.

अब खुद को लमका कहती है कुकी जनता. (तस्वीर- सिद्धांत मोहन/दी लल्लनटॉप)

हिंसा के पहले तक ये ड्रग्स मणिपुर के युवाओं को ऑनलाइन गेमिंग के लिए जगाती थी. कैफीन और मेथेमफेटामाइन के सम्मिश्रण से बनी एक गोली तब 200 से 300 रुपये में मिलती थी. एक गोली गेमर्स को दो दिनों तक आराम से जगा सकती थी. हिंसा ने इंटरनेट बंद कराया और इंफाल में रहने वाले 'रोमियो' के लिए इस डब्ल्यू वाई का दाम भी कम हो गया. लगभग 100 रुपये प्रति गोली. बोलचाल में लोग 'जादुई गोली' भी कहते हैं.

इंटरनेट की बंदी के बाद हाथ में फोन की जगह लूटे गए हथियार आ गए. सेना के अधिकारी बताते हैं कि डब्ल्यू वाई की पोटली और गोलियों के राउंड लेकर उग्रवादी मोर्चे पर चढ़ जाते हैं. फिर शुरु होती है सामने मौजूद दूसरे समुदाय के घरों पर फायरिंग. रात भर चलने वाली अंधाधुंध फायरिंग.

इसी डब्ल्यू वाई के नशे में मैतेई बारूदी सुरंग फोड़ने में माहिर हो जाते हैं और कुकी हैंडमेड तोप उर्फ पोम्पी बनाने में. फायरिंग सामने लाइसेंसी राइफल से होती है. पीठ पीछे स्नाइपर, एम-16 जैसी राइफल से फायरिंग होती है. सेना का एक जवान कहता है – “क्लियर आदेश हो तो हम लोग दो घंटे में मणिपुर शांत करा दें.”

वीडियो: मोदी, मणिपुर और अविश्वास प्रस्ताव पर विदेशी मीडिया ने क्या-क्या छाप दिया?