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सवाल नहीं पूछे जाएंगे, हिंसा के बीच मणिपुर में एक दिन के लिए विधानसभा बुलाने का मकसद क्या है?

कुकी विधायकों ने विधानसभा जाने में जान का खतरा बताकर सत्र का बहिष्कार किया.

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बिना कामकाज के एक दिन का सत्र खत्म (फोटो- पीटीआई)

मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद 29 अगस्त को पहली बार विधानसभा सत्र होने जा रहा है. हालांकि कुकी समुदाय के 10 विधायक इस एक दिन के सत्र का बहिष्कार कर रहे हैं. दो दिन पहले इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) और कमिटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (COTU) जैसे कुकी संगठन ने बयान जारी किया था. इसमें कुकी विधायकों की 'सुरक्षा' का जिक्र कर विधानसभा सत्र के बहिष्कार करने की घोषणा की गई थी. 

बयान में कहा गया था, 

“विधायकों के लिए मैतेई बहुल इम्फाल जाना सुरक्षित नहीं है. राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह फेल है, राज्य सरकार आम लोगों से लेकर बड़े अधिकारी तक की जान बचाने में नाकाम है, ऐसे में विधानसभा सत्र बुलाना तर्क से परे है.”

राज्य में 4 मई को शुरू हुई हिंसा अब भी नहीं थमी है. दो दिन पहले भी इम्फाल में तीन घरों को जला दिया गया था और सुरक्षाबलों के हथियार चुराए गए थे. बीते चार महीनों से जारी हिंसा के कारण कम से कम 160 लोगों की जान गई थी और 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हुए.

कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे

मणिपुर में आखिरी बार विधानसभा मार्च में बैठी थी. संविधान का अनुच्छेद-174 कहता है कि राज्य की विधानसभा साल में कम से कम दो बार बुलाई जाय या दो सत्र के बीच 6 महीने से ज्यादा की देरी न हो. इसलिए 2 सितंबर से पहले हर हाल में विधानसभा सत्र बुलाना जरूरी था.

विधानसभा जरूर बुलाई गई है, लेकिन एक दिन के इस सत्र में कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सदन में तीन मुद्दों को शामिल किया गया है. इनमें शोक संदेश, कमिटी की रिपोर्ट को सौंपना (अगर होगी तो) और कोई 'दूसरे काम' शामिल हैं.

मणिपुर कांग्रेस के अध्यक्ष और वांगखेम से विधायक के मेघचंद्र सिंह के मुताबिक उनकी पार्टी राज्य की गंभीर स्थिति पर चर्चा के लिए कम से कम पांच दिन के सत्र की मांग कर रही थी. उन्होंने एक्सप्रेस को बताया, 

"विधानसभा का मुख्य हिस्सा सवाल और जवाब, लेकिन वही सत्र से गायब है. ये एक दिन का सत्र उसके खिलाफ है जो लोग चाहते हैं. लोग मुद्दे का ठोस समाधान चाहते हैं. कुकी विधायक और मंत्री शामिल नहीं होंगे. ये सिर्फ औपचारिकता है और विधानसभा सदस्यों के अधिकारों का उल्लंघन है."

वहीं, अंग्रेजी अखबार द हिन्दू की एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य कैबिनेट ने मणिपुर राज्यपाल को 4 अगस्त को ही एक चिट्ठी भेजी थी. राज्य कैबिनेट के सदस्य विधायकों ने कहा था कि मणिपुर हिंसा पर चर्चा करने के लिए विधानसभा का एक स्पेशल सेशन बुलाना चाहिए. स्पेशल सेशन के लिए 21 अगस्त की तारीख़ तय की गई थी. इसी तरह का एक अनुरोध 27 जुलाई को भी किया गया था. हालांकि राजभवन ने इसे लेकर कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया. आखिरकार 22 अगस्त को राज्यपाल ने सत्र बुलाने का नोटिस जारी किया.

कुकी विधायक क्या मांग कर रहे?

इधर, कुकी विधायक सीधे इस सत्र का बहिष्कार कर रहे हैं. कांगपोकपी की विधायक और बीरेन सरकार में एकमात्र महिला मंत्री नेमचा किपगेन ने भी इस सत्र से छुट्टी ले ली थी. विधानसभा स्पीकर को लिखे पत्र में मंत्री ने कहा था कि सुरक्षा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इम्फाल जाना और वहां रुकना संभव नहीं है.

कुकी विधायक हिंसा के बाद से आदिवासी लोगों के लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इसमें चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी रैंक के अधिकारी की पोस्टिंग के साथ अलग विधानसभा स्थापित करने की मांग भी शामिल है. कई विधायक लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनके पास अलग प्रशासन के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.

राज्य में हिंसा भड़कने के बाद बीजेपी विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर जानलेवा हमला हुआ था. हिंसा शुरू होने के पहले दिन 4 मई को ही इम्फाल में वाल्टे पर भीड़ ने हमला किया था. ये हमला उस समय हुआ था जब वो मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से मुलाकात कर राज्य सचिवालय से लौट रहे थे. वाल्टे कुकी समुदाय से आते हैं. उनकी नाजुक हालत को देखते हुए उन्हें दिल्ली लाया गया था.

वीडियो: मणिपुर ग्राउंड रिपोर्ट : हिंसा की वो कहानियां, जो कहीं सुनी नहीं गईं