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महाराष्ट्र में मंत्री बने वो नेता जो भाजपा-शिवसेना छोड़ NCP में आए थे, अब 'बगावत' कर 'लौट' गए!

एक ने अप्रैल में कहा, वे अजित दादा के साथ हैं, और अजित दादा एनसीपी के साथ रहेंगे. दादा भी गए, दादा के साथ रहने वाले भी गए.

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छगन भुजबल को शरद पवार का करीबी माना जाता है (फोटो- फेसबुक)

महाराष्ट्र सरकार में NCP नेताओं के शामिल होने के बाद अब पार्टी पर दावे की बात होने लगी है. अजित पवार ने कहा कि पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके साथ हैं. NCP अध्यक्ष के सवाल पर अजित ने कहा, 

‘’क्या आप भूल गए कि शरद पवार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं?'' 

2 जुलाई को अजित पवार सहित 9 विधायकों ने बीजेपी के साथ मिलकर मंत्री पद की शपथ ली थी. इसके बाद पार्टी की अनुशासन समिति ने सभी को अयोग्य करार देने के लिए प्रस्ताव पारित किया है. फिलहाल, इन विधायकों के कदम को 'बगावत' ही माना जा रहा है. बगावत करने वाले इन विधायकों में कुछ ऐसे भी हैं जो खुद पहले दूसरी पार्टी छोड़कर NCP में आए थे. और अब पार्टी अध्यक्ष शरद पवार से ही बगावत को तैयार हैं.

छगन भुजबल

छगन भुजबल NCP में एक प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं. पहले शिवसेना के साथ थे. शिवसेना को ग्रामीण इलाकों तक पहुंचाने में भुजबल का बड़ा योगदान रहा था. लेकिन शिवसेना को बड़ा झटका 1991 में लगा. छगन भुजबल ने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी. पहली बार किसी बड़े नेता ने शिवसेना छोड़ी थी, तो वो भुजबल ही थे. पार्टी छोड़ते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी नेतृत्व उनके काम को अहमियत नहीं देता है. शिवसेना छोड़ने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. वहां शरद पवार के करीब आए.

तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भुजबल और 18 शिवसेना विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की. लेकिन इनमें से 12 विधायक उसी दिन शिवसेना खेमे में वापस लौट गए. कांग्रेस में जाने के बाद छगन भुजबल 1995 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. साल 1999 में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाई. छगन भी पवार के साथ हो लिए. तब वो महाराष्ट्र विधानपरिषद के सदस्य थे. NCP बनने के बाद उन्हें पार्टी ने महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष बनाया था. 1999 में ही पहली बार कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में डिप्टी सीएम बन गए थे.

बाद में एनसीपी जब भी सरकार में रही, उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई. लंबे समय तक महाराष्ट्र के लोक निर्माण विभाग (PWD) की जिम्मेदारी भुजबल के पास रही. बाद में उन पर इसी विभाग में भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे. भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ED ने भुजबल को मार्च, 2016 में गिरफ्तार किया था. 2 साल से भी ज्यादा समय जेल में रहे. तबीयत खराब हुई, तो मार्च 2018 में शरद पवार ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को खत लिखा. और कहा कि अगर भुजबल को कुछ हो गया, तो मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी होगी. मई, 2018 में भुजबल जमानत पर छूटे.

भुजबल पर आरोप था कि उनके PWD मंत्री रहते हुए 100 करोड़ से ज्यादा के ठेके अनियमित रूप से दिए गए. जांच एजेंसी ने दावा किया था कि भुजबल परिवार से जुड़ी कंपनियों और ट्रस्ट को रिश्वत के बदले ठेके दिए गए. दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के निर्माण, मुंबई के अंधेरी में रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस और मालाबार हिल में स्टेट गेस्ट हाउस बनाने के लिए दिए गए ठेकों में गड़बड़ियां पाई गई थीं. सितंबर 2021 में, स्पेशल कोर्ट ने भुजबल को इस मामले में बरी कर दिया था. हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट में उनके खिलाफ ये केस अभी पेंडिंग है.

भुजबल को शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की महाविकास अघाडी (MVA) सरकार में भी मंत्री बनाया गया था. फिलहाल, नासिक जिले के येवला से विधायक हैं. लोगों को सबसे ज्यादा आश्चर्य भुजबल की बगावत से हो रही है, क्योंकि उन्हें शरद पवार का काफी करीबी माना जाता है.

धनंजय मुंडे

धनंजय मुंडे, BJP के बड़े नेता रहे गोपीनाथ मुंडे के भतीजे हैं. धनंजय ने अपने राजनैतिक सफर की शुरुआत BJP से ही की थी. कहा जाता है कि उन्होंने राजनीति का ककहरा गोपोनाथ मुंडे से ही सीखा. धनंजय भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी थे. लेकिन बाद में बीड से चुनाव लड़ने को लेकर चाचा के साथ झगड़ा हुआ तो पार्टी छोड़ दी. 2009 में गोपीनाथ मुंडे ने अपनी बेटी पंकजा मुंडे को पर्ली विधानसभा सीट से टिकट दे दिया था. इसी पर शुरू हुआ विवाद खत्म नहीं हो पाया और 2012 में धनंजय NCP में शामिल हो गए.

NCP ने धनंजय को 2014 के चुनाव में पर्ली से टिकट दिया. लेकिन धनंजय अपनी चचेरी बहन पंकजा मुंडे, यानी गोपीनाथ मुंडे की बेटी के खिलाफ चुनाव हार गए. हार के बावजूद एनसीपी ने उन्हें महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाया. फिर साल 2019 में धनंजय ने पंकजा को पर्ली सीट से हरा दिया. उन्हें उद्धव ठाकरे की महा विकास अघाडी सरकार में सामाजिक न्याय मंत्री का पद भी मिला था.

धनंजय मुंडे पर जनवरी 2021 में रेप का आरोप लगा. तब वे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे. एक प्लेबैक सिंगर ने मुम्बई पुलिस कमिश्नर को इस बारे में शिकायत दी थी. शिकायत में महिला ने दावा किया था कि धनंजय से उनकी पहली मुलाकात 1997 में हुई थी. महिला की बहन के घर पर. और शादी का झांसा देकर उनका रेप किया गया. महिला ने शिकायत में लिखा था, 

"1998 में धनंजय और मेरी बहन का प्रेम विवाह हुआ. 2006 में मेरी बहन डिलीवरी के लिए इंदौर गई थी, तब धनंजय को पता था कि मैं घर पर अकेली हूं. तब वो बिना बताए रात में मेरे घर आया और मेरी मर्ज़ी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाए. फिर हर दो-तीन दिन में आते रहे. शारीरिक संबंध बनाते वक्त वीडियो भी बनाया. फोन करके लगातार प्यार का इज़हार करने लगे. फिर मुझसे कहा कि अगर सिंगर बनना है, तो मैं फिल्मी दुनिया के बड़े-बड़े लोगों से मिलकर बॉलीवुड में लॉन्च करवा दूंगा. इस बात का लालच देकर लगातार ज़बरन मेरी मर्ज़ी के बिना शारीरिक संबंध बनाते रहे और मेरा यौन शोषण करते रहे."

हालांकि धनंजय मुंडे ने अपने खिलाफ लगे आरोपों को आधारहीन बताया था और कहा था कि ये सब उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश है. एक फेसबुक पोस्ट में सफाई देते हुए कहा कि 2003 में वह शिकायतकर्ता की बहन के साथ आपसी सहमति से रिश्ते में थे. उनके एक बेटा और एक बेटी हुए. विधायक ने दावा किया कि उनका परिवार, पत्नी और दोस्त, इस रिश्ते के बारे में जानते थे. उन्होंने इन बच्चों को स्वीकार कर लिया और मुंडे परिवार का नाम दिया है.

इस मामले पर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का कहना था कि उन्हें पता चला कि उस महिला के खिलाफ इसी तरह की शिकायत अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी की है. अतः मुंबई पुलिस इस मामले की जांच कर ले.

अनिल भाईदास पाटिल

अनिल पाटिल अमलनेर से विधायक हैं. बगावत से पहले विधानसभा में एनसीपी के चीफ व्हिप थे. पाटिल ने 1995 में पुणे यूनिवर्सिटी से एम. कॉम की डिग्री ली थी. 2014 में बीजेपी की टिकट पर अमलनेर से ही चुनाव लड़े थे. लेकिन तीन साल बाद एनसीपी में शामिल हो गए थे.

अप्रैल में जब अटकलें चल रही थीं कि अजित पवार बीजेपी के साथ सरकार में शामिल हो सकते हैं, तब अनिल पाटिल ने भी मीडिया से कहा था कि दादा (अजित) एनसीपी के साथ हैं. वे अजित दादा के साथ हैं, पहले भी थे, आगे भी रहेंगे और अजित दादा एनसीपी के साथ रहेंगे.

नवंबर 2019 में जब अजित पवार बीजेपी के साथ मिलकर डिप्टी सीएम बने थे, तब भी अनिल पाटिल राजभवन गए थे. पाटिल का नाम 'लापता' हुए विधायकों में था. बाद में पाटिल ने बताया था कि वे राजभवन गए थे क्योंकि अजित पवार विधायक दल के नेता थे. पाटिल ने सफाई देते हुए कहा था कि उन्हें जानकारी नहीं थी कि राजभवन में क्या होने वाला है!

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