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'चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना अपराध नहीं', HC के फैसले से सुप्रीम कोर्ट हैरान

पॉक्सो से जुड़े एक मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने हाल में एक फैसला दिया था. इसमें कोर्ट ने कहा था कि अपनी डिवाइस पर महज चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ नाम के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

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चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर मद्रास HC के फैसले को लेकर NGO ने SC में याचिका दायर की थी. ( फोटो- इंडिया टुडे )

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है. फैसले में मद्रास हाई कोर्ट ने माना था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना अपराध ‘नहीं’ है. बाद में मामले के खिलाफ याचिका को लेकर 11 मार्च को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने सुनवाई की और हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तमिलनाडु पुलिस और आरोपी को नोटिस भी जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

“ये क्रूर है. मद्रास हाई कोर्ट ऐसा फैसला कैसे ले सकता है?”

दरअसल, पॉक्सो से जुड़े एक मामले में मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने हाल में एक फैसला दिया था. इसमें कोर्ट ने कहा था कि अपनी डिवाइस पर महज चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ नाम के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि मामले में कोई शिकायतकर्ता नहीं था. पुलिस ने मिली जानकारी के आधार पर FIR दर्ज की थी. जांच के दौरान आरोपी का मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया. फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट के विश्लेषक ने दो फाइलों की पहचान की जिनमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट था. नतीजतन, आरोपी के खिलाफ निचली अदालत में अंतिम रिपोर्ट दायर की गई और अदालत ने भी उस पर संज्ञान लिया था.

याचिका में NGO ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर चिंता जताई थी. NGO के मुताबिक इस आदेश से लोगों के बीच ऐसी धारणा बनती कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड या रखने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी. इससे चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा मिलता.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर HC का पक्ष

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हरीश नाम के शख्स  के खिलाफ चाइल्ड पोर्नोग्राफी के आरोप में POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) कानून और IT Act के तहत केस दर्ज हुआ था. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के जज जस्टिस आनंद वेंकटेश ने फैसले में कहा था, “आरोपी हरीश ने माना है कि उसे पोर्नोग्राफी की लत थी लेकिन उसने कभी चाइल्ड पोर्नोग्राफी नहीं देखी थी." 

कोर्ट ने ये भी कहा कि हरीश ने पोर्नोग्राफी वीडियो को न कहीं शेयर किया और न ही किसी को बांटा, जो दोनों कानूनों के तहत अपराध तय करने के लिए जरूरी हैं. कोर्ट ने इसके बाद आरोपी के खिलाफ चल रहे केस को रद्द कर दिया था.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी क्या है?

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को आसान भाषा में कहें तो बच्चों यानी 18 साल से कम उम्र वाले नाबालिगों को सेक्शुअल एक्ट में दिखाना. उनकी न्यूड कॉन्टेंट को इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी और फॉर्मेट में पब्लिश करना, दूसरों को भेजना अपराध माना जाता है.

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चाइल्ड पोर्नोग्राफी की सजा?

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बढ़ते मामले को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन किया था. इसकी धारा 14 और 15 के मुताबिक अगर कोई चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बांटता, फैलाता, या दिखाता है, तो उसे 3 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. कोई शख्स 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी' को कमर्शियल उद्देश्य (बेचने/खरीदने) के लिए रखता है, तो उसे कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. अगर कोई दूसरी बार ये करते हुए पाया जाता है तो सजा पांच से सात साल तक बढ़ाई जा सकती है.

वीडियो: चाइल्ड पोर्नोग्राफी क्या है और इसे रोकने के लिए सरकार ने क्या-क्या किया?