UPSC ने 45 पदों पर लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से भर्ती के लिए निकाला गया विज्ञापन वापस ले लिया. इस पूरे मामले में इस बात पर भी विवाद भी हुआ कि इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत NDA सरकार ने की थी या UPA की सरकार ने. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े पत्रकार जय मजूमदार ने इस मामले को रिपोर्ट किया है. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए जनवरी 2011 में PMO ने संयुक्त सचिव स्तर पर 10 प्रतिशत पदों को लेटरल भर्ती के लिए खोलने का प्रस्ताव रखा. ये प्रस्ताव निजी क्षेत्र में काम करने वाले और शिक्षाविदों के लिए था. ऐसा तब किया गया जब UPA सरकार छठे केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) की सिफारिश पर काम कर रही थी.
UPA सरकार के पिटारे से निकला था लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट? इस कारण से नहीं हो सकी थी भर्ती
Lateral Entry Controversy: छठे वेतन आयोग ने सिफारिश की थी कि ऐसे पदों की पहचान की जाए जिसके लिए तकनीकी या विशेष ज्ञान की आवश्यकता हो. और जो किसी भी सरकारी सेवा में ‘संवर्गीकृत’ ना हों. आयोग ने कहा कि ऐसे पदों को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर उपयुक्त उम्मीदवारों से भरा जाए.
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रिकॉर्ड्स के हवाले से लिखा गया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस संबंध में एक नोट जारी किया था. इसमें कहा गया कि लेटेरल प्रोसेस में भाग लेने वालों का चयन UPSC के द्वारा किया जाएगा. और इसके लिए बायोडेटा और इंटरव्यू या लिमिटेड कॉम्पिटिटिव टेस्ट को आधार बनाया जाएगा.
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छठे वेतन आयोग ने सिफारिश की थी कि ऐसे पदों की पहचान की जाए जिसके लिए तकनीकी या विशेष ज्ञान की आवश्यकता हो. और जो किसी भी सरकारी सेवा में ‘संवर्गीकृत’ ना हों. आयोग ने कहा कि ऐसे पदों को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर उपयुक्त उम्मीदवारों से भरा जाए.
दो साल से ज्यादा समय के बाद, जून 2013 में DoPT, व्यय विभाग और UPSC ने इस आयोग की इस सिफारिश की जांच की थी. UPSC ने अपने अधिकार क्षेत्र के अनुसार चयन करने पर सहमति जताई. DoPT रिकॉर्ड के अनुसार, चयन की प्रक्रिया तब शुरू करनी थी, जब इसके लिए उन्हें पूरा प्रस्ताव उपलब्ध करा दिया जाए.
इसके बाद लेटरल एंट्री के प्रस्ताव पर एक कॉन्सेप्ट नोट तैयार किया गया. उसे विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में भेजा गया. और विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता वाले पदों की पहचान करने को कहा गया. 2013 के कॉन्सेप्ट नोट को जून 2014 में फिर से प्रसारित किया गया. लेकिन इस पर बहुत कम प्रतिक्रियाएं मिली. इस कारण से लेटरल एंट्री का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया.
इसके बाद लेटरल एंट्री की आधिकारिक चर्चा 2017 में हुई. तब देश में NDA की सरकार थी. 28 अप्रैल, 2017 को PMO की बैठक में लेटरल एंट्री योजना पर चर्चा हुई. शुरुआत में ये निर्णय लिया गया कि इसे UPSC के दायरे से बाहर रखा जाए. कहा गया कि लेटरल एंट्री प्रोसेस में विज्ञापन को अंतिम रूप देने से लेकर मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (ACC) को उम्मीदवारों की सिफारिश करने तक- सचिवों और बाहरी विशेषज्ञों से बनी दो चयन समितियों के अधीन संचालित की जाए.
DoPT के अधिकारी की चिट्ठीकैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली चयन समिति को लेटरेल एंट्री के लिए संयुक्त सचिवों का चयन करना था. उप सचिवों/निदेशकों के लिए पैनल का नेतृत्व गृह विभाग, DoPT और वित्त के प्रभारी तीन सचिवों में से सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को करना था. हालांकि, 11 मई 2018 को DoPT के एक अधिकारी ने कहा कि यदि इन पदों को इस माध्यम से भरा जाना है तो UPSC रेगुलेशन में बदलाव करना होगा.
बताया गया कि संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के पद- ऑल इंडिया सर्विसेज और सेंट्रल ग्रुप 'ए' सर्विसेज के अधिकारियों से केंद्रीय स्टाफिंग योजना (CSS) के तहत प्रतिनियुक्ति पर भरे जाते हैं. चूंकि इन सेवाओं के सदस्यों की भर्ती UPSC करती है, इसलिए ऐसे अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर लेने के दौरान आयोग से परामर्श नहीं किया जाता.
लेकिन अधिकारी ने कहा कि लेटरल एंट्री योजना के तहत चयन का क्षेत्र बाहरी उम्मीदवारों के लिए खुला है. लेकिन इन पदों का स्वरूप केंद्र सरकार के अन्य ग्रुप 'ए' स्तर के पदों जैसा होगा. इसलिए UPSC का परामर्श अनिवार्य है. इसलिए एक साल के भीतर ही इस पर पुनर्विचार किया गया. और सरकार ने लेटरल एंट्री को UPSC को सौंपने का निर्णय लिया.
1 नवंबर, 2018 को UPSC ने कहा कि वो एक बार में एक उम्मीदवार की सिफारिश करेगा. और प्रत्येक पद के लिए दो अन्य नामों को आरक्षित सूची में रखेगा. UPSC ने आगे कहा कि चयन की इस प्रक्रिया को एक बार की प्रक्रिया के रूप में माना जा रहा है और इसे हर साल जारी रखने वाली नियमित प्रक्रिया नहीं माना जाएगा.
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