केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 20 अगस्त को UPSC की चेयरपर्सन प्रीति सूदन को एक पत्र लिखा. कहा कि UPSC ने लेटरल एंट्री के जरिए जिन भर्तियों का विज्ञापन निकाला है, उसे वापस लिया जाए. मंत्री की तरफ से इसके पीछे का कारण ‘सामाजिक न्याय’ को बताया गया. मंत्री ने पत्र में लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी सामाजिक न्याय और समता के सिद्धातों को सुनिश्चित करना चाहते हैं. हवाला आरक्षण का भी दिया गया. इस बीच खबर आई है कि जब 2018 में लेटरल एंट्री की योजना को तैयार किया जा रहा था, तब केंद्र सरकार ने आरक्षण के मुद्दे को किनारे कर दिया था. या बहुत ही कम महत्व दिया था.
आरक्षण के नाम पर रद्द हुई लेटरल एंट्री, लेकिन 6 साल पहले रिजर्वेशन से ही बचने के लिए हुआ था बदलाव: रिपोर्ट
Lateral Entry Controversy: लेटरल एंट्री की नीति बनाते समय सरकार ने DoPT के 1978 के निर्देश को आधार बनाया था. इसके अनुसार, लेटरल एंट्री की व्यवस्था करीब-करीब किसी प्रतिनियुक्ति के जैसी है. और इसमें SC/ST/OBC के लिए अनिवार्य आरक्षण जरूरी नहीं है. हालांकि, सरकार ने इसी निर्देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नजरअंदाज कर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े जय मजूमदार की रिपोर्ट के अनुसार, लेटरल एंट्री की नीति बनाते समय सरकार ने DoPT के 1978 के निर्देश को आधार बनाया था. इसके अनुसार, लेटरल एंट्री की व्यवस्था करीब-करीब किसी प्रतिनियुक्ति के जैसी है. और इसमें SC/ST/OBC के लिए अनिवार्य आरक्षण जरूरी नहीं है. हालांकि, सरकार ने इसी निर्देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नजरअंदाज कर दिया. इसमें कहा गया था कि सरकार को ये प्रयास करना चाहिए कि इन पदों पर उचित अनुपात में SC/ST अभ्यर्थियों की भर्ती हो. जब प्रतिनियुक्ति द्वारा भरे जाने वाले पदों की संख्या ‘पर्याप्त’ हो.
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2018 में लगभग 50 पदों पर (जिसे पर्याप्त माना जा सकता है) पर भर्ती की जा रही थी. लेकिन घटनाओं के क्रम से पता चलता है कि ये सुनिश्चित किया गया कि प्रत्येक पद को ‘सिंगल पोस्ट’ के रूप में भरा जाए ताकि उन पर कोटा लागू ही ना हो. घटनाओं के इस क्रम को देखिए-
- 19 मार्च, 2018 को कैबिनेट सचिवालय ने DoPT को लेटरल एंट्री के तहत 50 पदों को भरने के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश से अवगत कराया. 10 विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में संयुक्त सचिव, और 40 उप सचिव (DS)/निदेशक पदों के लिए.
- 23 अप्रैल, 2018 को DoPT ने लेटरल एंट्री के लिए PMO की तरफ से दी गई टाइट डेडलाइन का हवाला दिया. और केवल 2 दिनों के भीतर इन पदों को भरने के लिए आरक्षण प्रभाग की राय मांगी.
- 25 अप्रैल, 2018 को आरक्षण प्रभाग ने अपना सुझाव दिया. कहा कि 1967 और 1978 के DoPT निर्देशों में प्रतिनियुक्ति या स्थानांतरण द्वारा भरी गई रिक्तियों में SC/ST के लिए कोई आरक्षण नहीं था. और अनुबंध के आधार पर भरे गए पदों के लिए आरक्षण पर कोई विशेष निर्देश नहीं थे. और इन निर्देशों को ध्यान में रखते हुए अनुबंध के आधार पर पदों को भरते समय इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है.
- 9 मई, 2018 को आरक्षण प्रभाग को और अधिक विस्तार से अपना सुझाव देने को कहा गया.
- 10 मई, 2018 को आरक्षण विभाग ने कहा, “वर्तमान में, इन पदों को भरने की व्यवस्था को प्रतिनियुक्ति के निकट माना जा सकता है, जहां SC/ST/OBC के लिए अनिवार्य आरक्षण आवश्यक नहीं है.” हालांकि, इसमें ये भी कहा गया कि यदि विधिवत योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवार उपलब्ध हैं, तो उन पर विचार किया जाना चाहिए और ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि ‘समग्र प्रतिनिधित्व’ को सुनिश्चित किया जा सके.
- 16 मई, 2018 को प्रधानमंत्री के सचिव की अध्यक्षता में 40 DS/निदेशक पदों की लेटरल एंट्री पर सचिव (DoPT) के साथ बैठक हुई.
- 11 जून, 2018 को कैबिनेट सचिवालय ने एक लिस्ट फॉरवर्ड की. इसमें विभिन्न मंत्रालयों में उप निदेशक/निदेशक पदों को बांटा गया था.
- 18 जुलाई, 2018 को DoPT ने माना कि एक सामान्य विज्ञापन से विशेषज्ञों के एक समूह का चयन हो सकता है. लेकिन शायद किसी खास डोमेन में विशेषज्ञों का चयन ना हो सके.
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने तर्क दिया कि लेटरल एंट्री योजना के तहत, "प्रत्येक पद के लिए प्रत्येक विभाग/मंत्रालय की आवश्यकता के अनुरूप विशेष योग्यता और अनुभव की आवश्यकता होती है." और ऐसे एकल पदों पर आरक्षण लागू नहीं होता. अब तक लेटरल एंट्री योजना के तहत 63 पद भरे जा चुके हैं.
हाल में 45 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध किया. उनके साथ कई विपक्षी दलों ने भी लेटरल एंट्री का विरोध किया. NDA के सहयोगी दलों में से चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) और नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने भी इसका विरोध किया था.
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