The Lallantop

अगर आपने खांसी-जुकाम के लिए ये वाली दवा ली है, तो एक दिक्कत की बात है

ये दिल की धड़कन को प्रभावित कर सकती है

post-main-image
साल 2019 में एजिथ्रोमाइसिन की सबसे ज्यादा खपत हुई (सांकेतिक तस्वीर: Getty)

द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया जर्नल में हाल में एंटीबायोटिक पर एक स्टडी आई. स्टडी साल 2019 में भारत में एंटीबायोटिक्स की खपत पर है. एंटीबायोटिक मतलब बैक्टीरिया के खिलाफ काम करने वाली दवाइयां. इस स्टडी में बताया गया कि साल 2019 में भारत में एंटीबायोटिक की 500 करोड़ से ज्यादा डोज खाई गई. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें समस्या क्या है, दरअसल ये स्टडी एंटीबायोटिक के बेवजह या बिना डॉक्टरी सलाह के इसके इस्तेमाल पर फोकस करती है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लोग बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक दवाओं को लेने लगते हैं और इनसे होने वाले नुकसानों पर ध्यान नहीं देते.

स्टडी के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक दवा रही एजिथ्रोमाइसिन. एजिथ्रोमाइसिन- इस दवा का नाम आपने कोरोना काल में सुना ही होगा, जब इसका काफी इस्तेमाल हुआ था. हालांकि, ये स्टडी साल 2019 की है यानी कोरोना काल के पहले की और उस दौरान भी एजिथ्रोमाइसिन की बिक्री सबसे ज्यादा पाई गई है. स्टडी के मुताबिक 2019 में देश में सबसे ज्यादा एजिथ्रोमाइसिन 500 mg की गोली खाई गई.

क्या है एजिथ्रोमाइसिन?

एजिथ्रोमाइसिन एक तरह की एंटीबायोटिक दवा है, जो बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकती है. इसका इस्तेमाल बैक्टीरिया से होने वाली कई बीमारियों के इलाज में होता है. जैसे- न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस, कान, गले और फेफड़े का इन्फेक्शन.

एजिथ्रोमाइसिन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल क्यों हो रहा? 

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि एजिथ्रोमाइसिन का इस्तेमाल सर्दी, खांसी, जुकाम जैसे इन्फेक्शन में काफी ज्यादा किया जाता है. दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे बताते हैं कि खांसी-जुकाम सबसे कॉमन रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन हैं. इन इन्फेक्शन में एजिथ्रोमाइसिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है. हालांकि, रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन में इसका इस्तेमाल तब होना चाहिए, जब इन्फेक्शन बैक्टीरिया के कारण हो. ज्यादातर खांसी-जुकाम वायरल होते हैं और उसमें एंटीबायोटिक देने की जरूरत नहीं होती.

एजिथ्रोमाइसिन के ज्यादा इस्तेमाल की दूसरी वजह ये है कि एजिथ्रोमाइसिन ऐसी एंटीबायोटिक नहीं है, जो ज्यादा गैस्टिराइटिस या इरिटेशन करे. हालांकि, इसके भी साइड इफेक्ट हो सकते हैं.

तीसरी वजह ये है कि एजिथ्रोमाइसिन सहित कई एंटीबायोटिक बिना डॉक्टरी पर्चे के मिल जाती हैं. कई बार लोग खुद या केमिस्ट से पूछकर सामान्य सर्दी-जुकाम में भी इसे लेने लगते हैं.

एंटीबायोटिक को लेकर चिंता की बात क्या है?

दुनिया भर में एंटीबायोटिक के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल ने एक गंभीर समस्या खड़ी कर दी है. वो है एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस यानी बैक्टीरिया पर मौजूदा एंटीबायोटिक्स का असर न होना. इस वजह से संबंधित बैक्टीरियल इन्फेक्शन का इलाज मुश्किल हो जाता है.

एजिथ्रोमाइसिन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होने से इस ग्रुप के एंटीबायोटिक के खिलाफ बैक्टीरिया रेजिस्टेंस डेवलप कर सकता है. डॉ सुमित रे कहते हैं कि भारत में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पहले से ही एक बहुत बड़ी समस्या है. जो दवा बैक्टीरिया से लड़ने के लिए बनाई गई है, उस दवा के प्रति बैक्टीरिया में प्रतिरोध विकसित हो जाने से गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज में मुश्किल आती है.

गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड डॉ प्रवीण गुप्ता एजिथ्रोमाइसिन के संभावित साइड इफेक्ट के बारे में भी बताते हैं. उनके मुताबिक एजिथ्रोमाइसिन पेट खराब कर सकती है. ये डायरिया कर सकती है. कभी-कभी एजिथ्रोमाइसिन कुछ दवाओं के साथ मिलकर दिल की धड़कन को भी प्रभावित कर सकती है.

डॉ सुमित रे कहते हैं कि सभी दवाइयों के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट होते हैं. कभी थोड़ा कम, कभी थोड़ा ज्यादा. किसी मरीज के लिए कौन सी दवा बेहतर होगी, ये डॉक्टर मरीज की कंडिशन के आधार पर तय करते हैं.

हालांकि, एक समस्या ये है कि कई एंटीबायोटिक बिना डॉक्टरी पर्चे के बहुत ज्यादा इस्तेमाल में है. वहीं एंटीबायोटिक का ओवर प्रेस्क्रिप्शन भी होता है. वायरल इन्फेक्शन में भी एंटीबायोटिक प्रेस्क्राइब कर दिए जाते हैं, जो कि सही नहीं है.

डॉ प्रवीण गुप्ता कहते हैं,

इसलिए हमारे देश में एक एंटीबायोटिक पॉलिसी होनी चाहिए और सिंपल वायरल अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन या वायरल डायरिया, जिसमें एंटीबायोटिक का खास रोल नहीं है और जो एक-दो दिन में अपने आप ही ठीक हो जाते हैं, उनके लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, खुद से तो बिल्कुल भी नहीं.

कुल मिलाकर बात ये है कि एंटीबायोटिक हो या कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह पर ही लेनी चाहिए. साथ ही, डॉक्टर ने जितने दिन का कोर्स पूरा करने को कहा है, उसे ही फॉलो करना चाहिए. कोई दवा कब लेनी है और कब बंद करनी है, इसका फैसला खुद से न लेकर डॉक्टर की बात सुनें और स्वस्थ रहें.

वीडियो- सेहत: एंटीबायोटिक मेडिसिन यानी दवाई खाते वक्त ये गलतियां भूलकर भी ना करें