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'बोलते क्यों नहीं हो' वाले लड़के का मीम बनाने वालों को सच जानकर शर्म आनी चाहिए

बीमारी और इलाज़ वाले वीडियो को लोगों ने बना डाला मीम. सोशल मीडिया की असंवेदनशीलता का नमूना.

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शिवम और डॉक्टर के असल वीडियो के स्क्रीन शॉट (फोटो/इंस्टाग्राम)

मीम का नया टेम्पलेट चला है. इस टेम्पलेट पर अलग-अलग तरह के मीम बन रहे हैं. एक लड़के का मजाक उड़ाया जा रहा है. हज़ारों उदाहरण मीम पेजेज पर उपलब्ध हैं पर हम उन्हें दिखाकर एक ग़लत चलन का हिस्सा नहीं बनेंगे. सिर्फ मामला समझने के लिए अगले मीम को देखिए. यहां अपने खर्चे को पिताजी के सामने बताने के खौफ के मारे ने सहारा लिया मीम का. बाकी मीम इससे भी ज़्यादा घृणास्पद हैं. मीम बनते ही जा रहे हैं, बिना ये सोचे कि इस मीम में दिखने वाला शख्स क्या वाकई में बोलना नहीं चाहता? क्या उससे हो रही बात हंसी के लायक है? क्या उस पर हंसना असंवेदनशीलता है? इन सबसे बड़ा सवाल ये होगा कि क्या वो सच में जानता है कि उसकी समस्या को इंटरनेट की दुनिया ने मीम बना दिया है? 

यहां सच्चाई कुछ और है. चलिए समझते हैं.

वीडियो में दिखने वाले शख्स का असल ज़िंदगी में नाम शिवम मिश्रा है. शिवम की मेंटल हेल्थ ठीक नहीं है. जिस वजह से उनका इलाज चल रहा है. इस मीम के असल वीडियो में इनकी हालत का कारण स्कित्ज़ोफ्रेनिया पता चली.

वीडियो में दिखने वाला दूसरा व्यक्ति कोई और नहीं. बल्कि वो डॉक्टर हैं जो शिवम का इलाज कर रहे हैं. ये शिवम की हालत में सुधार को लेकर वीडियो अपलोड करते हैं. ये उस वक़्त का वीडियो है जब शिवम ठीक से बात करने में भी सक्षम नहीं थे. जिसके कुछ दिन बाद डॉक्टर ने एक और वीडियो अपलोड किया. जिसमे शिवम की हालत में सुधार दिख रहा है. आखिर के वीडियो में डॉक्टर ने बताया कि शिवम अब ठीक हो कर घर चला गया है.

क्या होता है Schizophrenia?

स्कित्ज़ोफ्रेनिया यानी मनोविदलता. ये एक मानसिक रोग है जिसमें पेशेंट्स के विचार और अनुभव वास्तविकता से मेल नहीं खाते हैं. ये भ्रम तब भी बरकरार रहता है जब कोई इन्हें सच्चाई का आभास करवाने की कोशिश करता है. इसके मुख्य लक्षण वहम और भ्रम होते हैं. लेकिन इनके अलावा भी कई और लक्षण हो सकते हैं. ये इस पर निर्भर करता है कि स्कित्ज़ोफ्रेनिया किस स्टेज में है. 

क्यों होता है स्कित्ज़ोफ्रेनिया? 

कोई एक कारण अभी तक नहीं पता चल पाया है क्योंकि ये एक बहुत ही जटिल और कॉम्प्लेक्स समस्या है. लेकिन ये पता चल गया है कि कुछ लोग पहले से ही स्कित्ज़ोफ्रेनिया होने के रिस्क पर होते हैं, उनके वातावरण में कोई फैक्टर ट्रिगर होने से ये शुरू हो सकता है.
- पहला कारण है. जेनेटिक. यानी परिवार में स्कित्ज़ोफ्रेनिया की हिस्ट्री रही हो. ये परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाया जाता है.
-दूसरा कारण. दिमाग का विकास. स्कित्ज़ोफ्रेनिया में दिमाग के अलग-अलग पार्ट्स में अलग-अलग तरह की खराबियों से समस्या होती है. यही ख़राबियां मिलकर स्कित्ज़ोफ्रेनिया जैसी कंडीशन बना देती हैं.
-तीसरा कारण. न्यूरोट्रांसमीटर. न्यूरोट्रांसमीटर ऐसे मैसेंजर होते हैं जिनका काम होता है दिमाग में एक जगह से दूसरी जगह सिग्नल पहुंचाना. इसमें ख़राबी होने की वजह से स्कित्ज़ोफ्रेनिया के लक्षण बन जाते हैं.
-प्राथमिक तौर पर डोपामाइन और सेरोटोनिन नाम के केमिकल की कमी से भी ये ट्रिगर कर सकता है.
-प्रेग्नेंसी के टाइम पर होने वाली समस्याओं के कारण भी हो सकता है.
-जिन बच्चों का वज़न कम होता है, या जो बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं, उनमें आगे जाकर स्कित्ज़ोफ्रेनिया ज़्यादा देखने को मिल सकता है.
-अगर ट्रिगर की बात करें तो सबसे मुख्य कारण है तनाव. लाइफ में कोई मेजर स्ट्रेस जैसे तलाक़, किसी की मौत, जॉब चली जाना. यानी हाई लेवल के तनाव वाले स्ट्रेसर हैं उनसे स्कित्ज़ोफ्रेनिया ट्रिगर हो सकता है.
-एक और कारण है ड्रग अब्यूज. यानी ड्रग्स का बहुत ज्यादा इस्तेमाल. कई तरह के ड्रग्स स्कित्ज़ोफ्रेनिया को बढ़ा सकते हैं या उसको शुरू कर सकते हैं, तब जब कोई पहले से रिस्क पर है तो.
स्कित्ज़ोफ्रेनिया के बारे में अहम जानकारी आपने समझ ली अबकी अगर आप ये जानना चाहते हैं कि कैसे पता चलेगा किसी को स्कित्ज़ोफ्रेनिया है. तो आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

कुल मिलाकर एक सिंपल गूगल सर्च कर आप जान सकते हैं स्कित्ज़ोफ्रेनिया एक कंडीशन है. हंसने वाली बात नहीं. इसे आप किसी दूसरी बीमारी की तरह ही समझ सकते हैं. जिसमें मेडिकल केयर की ज़रूरत पड़ती है. घरवालों, दोस्तों के सपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे में अगर डॉक्टर शिवम के इलाज के वीडियो जनजागरूकता के लिए शेयर कर रहे हैं तो उसका मीम बनाना सही है या नहीं इसका जवाब आप अच्छे से दे सकते हैं.  इसलिए अगर आप किसी ऐसे इंसान को जानते हैं जिसमें स्कित्ज़ोफ्रेनिया के लक्षण हैं, तो उनकी परेशानी को नज़रअंदाज़ न करें.

सोशल मीडिया रिलेटेबल बने रहने की फिजूल दौड़ वाली जगह है. यहां कुछ भी फनी ठहराया जा सकता है और फनी से फनी बात को क्रिंज का तमगा दिया जा सकता है. उन चुनौतियों पर नहीं जाते लेकिन मीम बनाने वालों से थोड़ी मानवीयता की उम्मीद रख सकते हैं. उस इंसान जितने बुरे मत बनिए, जिसने पहली बार इस वीडियो पर मज़ाक बनाना चुना. उसने तो असल सोर्स से ही वीडियो उठाया होगा. उसने शिवम की स्थिति जानने के बाद भी वीडियो को डाउनलोड करना, उसके टेम्पलेट की तरह काटना और उस पर हंसना चुना. इसके बाद मीमर्स के तौर पर आपने एक व्यक्ति की बीमारी को टेम्पलेट की तरह देखा और बिना आगा-पीछा सोचे सोशली मेमनों की तरह मीम-मीम करने लगे लेकिन अब आपको सच्चाई पता है. मीमर्स से बेहतरी की उम्मीद है. किसी की समस्या आपकी हंसी का सबब नहीं बन सकती.