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पिता ने 7 साल की बेटी का किया रेप, सजा देते हुए कोर्ट ने रामचरितमानस की चौपाई सुना दी

मामला 7 साल की बच्ची के रेप का था. आरोप बच्ची के अपने पिता पर ही था. इस मामले में कोर्ट ने पिता को दोषी माना है. जज ने सजा सुनाते हुए रामचरितमानस की पंक्तियों का जिक्र किया.

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कोर्ट ने इस मामले में बच्ची की मां की भी सराहना की है. (फोटो: आजतक)

राजस्थान के कोटा (Kota) स्थित एक कोर्ट ने नाबालिग बेटी से रेप के मामले में पिता को उम्रकैद की सजा सुनाई है. घटना के वक्त बच्ची की उम्र 7 साल थी (Father raped his minor daughter). बच्ची की मां ने खुद अपने पति के खिलाफ शिकायत की थी. आजीवन कारावास के साथ ही दोषी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है. कोर्ट ने इस मामले में बच्ची की मां की भी सराहना की है, जिसने हिम्मत दिखाते हुए अपने पति के खिलाफ केस किया.

जज के फैसले में रामचरितमानस की पंक्तियां

आजतक के चेतन गुर्जर की रिपोर्ट के मुताबिक 21 अक्टूबर को पॉक्सो कोर्ट नंबर 3 के जज दीपक दुबे ने इस मामले में फैसला सुनाया. उन्होंने रामचरितमानस की पंक्तियां लिखी और आरोपी पिता को गुनहगार करार दिया. सरकारी वकील ललित कुमार शर्मा ने बताया कोर्ट ने 15 पेज का फैसला दिया. कोर्ट ने रामचरितमानस की पंक्ति 'कलिकाल बिहाल किए मनुजा, नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा' लिखी. इसका मतलब कि किस तरह कलयुग में मनुष्य बहन-बेटी का भी विचार नहीं करेगा.

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बेटी को डरा-धमकाकर पिता ने रेप किया था

8 अगस्त, 2021 को बच्ची की मां ने बारां के SP को अपने पति के खिलाफ शिकायत दी थी. इसमें बच्ची के पिता पर आरोप था कि उसने 2 अगस्त, 2021 से पहले करीब 15 से 20 दिन में अपनी 7 साल की बच्ची को डराया-धमकाया. एक खेत में बने कमरे में कई बार बच्ची का रेप किया. 

सरकारी वकील ललित कुमार शर्मा ने बताया,

"कोर्ट ने लगभग 2 साल पुराने मामले में फैसला सुनाया है. बच्ची की मां ने बारां के पुलिस अधिक्षक (SP) को शिकायत दी थी कि उसकी बेटी का उसके पिता यानी महिला के पति ने रेप किया है. इस पर जीरो नंबर की FIR दर्ज  की गई थी. फिर केस संबंधित देवली मांझी थाने भेजा गया. मामला दर्ज किया गया और जांच कर संबंधित कोर्ट के सामने केस पेश किया गया."

ट्रायल के दौरान कोर्ट में कुल 15 गवाह और 20 दस्तावेज पेश किए गए थे.

कोर्ट ने मां के हौसले की तारीफ की

रिपोर्ट के मुताबिक स्पेशल जज दीपक दुबे ने कहा कि पिता ने अपनी बेटी को न सिर्फ असहनीय शारीरिक पीड़ा दी बल्कि वो ये भूल गया कि बच्ची इस मानसिक पीड़ा को जीवनभर नहीं मिटा पाएगी. उन्होंने कहा कि कोर्ट बच्ची की मां के हौसले का सम्मान करता है. उन्होंने अपनी बच्ची का दर्द समझा और कानूनी कार्रवाई के जरिए अपने पति को सजा दिलाने में मदद की.

कोर्ट ने कहा कि बच्ची की मां खुद बहुत गरीब हैं, मजदूरी करती हैं. अपनी तीन संतानों को पालने के लिए पति पर आश्रित थी. ये उदाहरण संदेश देता है कि अन्याय करने वाला कोई भी क्यों न हो, उसे सजा जरूर दिलानी चाहिए. इस मामले में कोर्ट ने बच्ची को पहुंची शारीरिक और मानसिक क्षति के मद्देनजर 10 लाख रुपये अतिरिक्त मुआवजे की भी सिफारिश की है.