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लाहौर में लगती है पाकिस्तान की सबसे बड़ी 'वेश्या मंडी'

जामा मस्जिद की नकल करके जो बादशाही मस्जिद बनी है. बस उसी से 700 मीटर दूर है ये 'हीरा मंडी'

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क्रेडिट: Reuters
'ब्लेड के वार से जिस्म पर उभरी खाल. शादी ब्याहों में नाचने का काम. शादी की. पति, पिटाई और परिवार के दबाव में साल 2000 में वेश्यावृति अपनाना मजबूरी बन गया. एक रात की कमाई करीब 400 रुपये.'
लाहौर की ऐतिहासिक बादशाही मस्जिद से 700 मीटर की दूरी पर शुरू होता है पाकिस्तान के शरीफों के लिए बदनाम रेड लाइट एरिया लाहौर के पास तक्साली गेट की हीरा मंडी. पाकिस्तान में वेश्यावृति की इजाजत नहीं है. पर पाकिस्तान में वेश्यावृति खुले 'राज़' की तरह है. भारत में रुपयों के लिए सेक्स करना लीगल है लेकिन इसका संगठित रूप यानी वेश्यालय या पिंपिंग (दलाली) करना गैर कानूनी है. 'द वीजे मूवमेंट' की यू-ट्यूब पर वायरल एक वीडियो में हीरामंडी में काम करने वाली सेक्स वर्कर नरगिस बताती हैं,
'सबको सब कुछ पता है. नेता और पुलिस सब घाघ हैं. मजबूरी में ये सब करते हैं. घर से निकलने से पहले चेहरा ढक लेती हूं. खुदा पर अब भी यकीन हैं. रमजान में धंघा बंद कर देती हूं. पांच बार नमाज तो नहीं पढ़ पाती हूं पर मौका मिलते ही अपने गुनाहों की माफी मांग लेती हूं. वेश्यावृति से नफरत है.'
2003 के आंकड़ों के मुताबिक,
पाकिस्तान में करीब 20 हजार से ज्यादा नाबालिग वेश्यावृति में शामिल हैं. पाकिस्तान में वेश्यावृति कराची, फैसलाबाद, मुल्तान और लाहौर में ज्यादा बड़े स्तर पर है. कराची का नेपियर रोड, रावलपिंडी की कासिम गली पड़ोसी मुल्क के वो इलाके हैं, जहां रात के अंधेरों में धड़ल्ले से देह नुचवाकर आदमियों की जिस्मानी भूख शांत कर अपने और परिवार का पेट भरने का काम सेक्स वर्कर कर रही हैं. पाक के सेक्स वर्कर और दलालों के बीच होटल या घरों से भी देह व्यापार चलाने का नया ट्रेंड देखने को मिला है.
डिपॉल यूनिवर्सिटी के 'इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स लॉ इंस्टीट्यूट' की 2001 की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान की महिलाएं जिस्मफरौशी के लिए पाकिस्तान में महज 600 रुपये में बेच दी जाती हैं. इन महिलाओं को जबरन वेश्यावृति की ओर ढकेल दिया जाता है. हीरा मंडी का इतिहास पाकिस्तान बनने से पहले का है. इस जगह का नाम हीरा मंडी पड़ने की वजह का भी एक इतिहास है. महाराजा रंजीत सिंह के एक मंत्री थे हीरा सिंह. इन्ही के नाम पर इस जगह का नाम पड़ा हीरा मंडी. कहा जाता है कि अनारकली बाजार में ब्रिटिश सैनिकों के लिए पहली बार औपचारिक तौर पर अंग्रेजों ने वेश्यालय बनवाए. जिसे बाद में पहले लौहारी गेट और फिर तक्साली गेट ले जाया गया.
ऐसा नहीं है कि तक्साली गेट सिर्फ हीरा मंडी के वजह से जाना जाता है. इसकी कुछ अलग पहचान भी हैं. 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा' के लिए मशहूर उर्दू कवि अल्लामा मुहम्मद इकबाल भी तक्साली गेट इलाके में रहे थे.
पाकिस्तान और हिंदुस्तान के हुक्मरान हर बात पर खुद को बेहतर बताते हैं. पर सूरज ढलने के बाद थकी आंखों से उठे मजबूरी भरे जिस्मों की हकीकत को कोई झुठला नहीं सकता. क्योंकि सच तो यही है कि बंटवारे के सालों बाद दोनों मुल्कों के इस हिस्से में अब भी अंधेरा कायम है. अंधेरा जो खुली आंखों के बीच न जाने कितनी जिंदगियों को लील रहा है.