केरल में एक 15 साल के बच्चे की अमीबा से होने वाले संक्रमण के कारण मौत हो गई. इस अमीबा का नाम नेगलेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri) है. इसे बोलचाल में ब्रेन ईटिंग अमीबा (brain-eating amoeba) यानी दिमाग खाने वाला अमीबा कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि दिमाग में जाकर ये अमीबा ब्रेन टिश्यूज को नष्ट कर देता है. इस अमीबा से होने वाले इन्फेक्शन को ‘प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोइन्सेफ्लाइटिस’ कहते हैं.
ये कौन सा 'अमीबा' है जो इंसान का दिमाग खा जाता है? केरल में 15 साल के लड़के की मौत
इस इन्फेक्शन में डेथ रेट 97% से अधिक दर्ज किया गया है.
'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे की मौत 6 जुलाई की रात केरल में आलप्पुझा के गर्वनमेंट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में हुई. बच्चे को एक हफ्ते पहले गंभीर हालत में एडमिट कराया गया था. केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि मरीज को 29 जून से बुखार होना शुरू हो गया था. दो दिन बाद उसे थुरवुर तालुक हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था. इन्सेफ्लाइटिस का शक होने पर उसे मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल भेजा गया था.
उन्होंने बताया कि शुरुआती जांच में मरीज का सैंपल प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोइन्सेफ्लाइटिस (PAM) पॉजिटिव पाया गया. सैंपल जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च भी भेजा गया है.
ब्रेन ईटिंग अमीबा यानी नेगलेरिया फाउलेरी के कारण प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोइन्सेफ्लाइटिस (PAM) होता है. जब ये अमीबा नाक के रास्ते दिमाग में पहुंचता है, तो दिमाग के ऊतकों यानी टिशूज़ को नुकसान पहुंचाने लगता है. अमेरिका की सेंटर्स फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक इस संक्रमण में दिमाग के ऊतक नष्ट होने लगते है. दिमाग में सूजन आ जाती है और मरीज की मौत हो जाती है.
ब्रेन ईटिंग अमीबा यानी ‘नेगलेरिया फाउलेरी’ नेगलेरिया अमीबा की एक प्रजाति है. अमीबा सिंगल सेल वाले जीव होते हैं यानी एककोशिकीय जीव. ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है. नेगलेरिया की केवल नेगलेरिया फाउलेरी प्रजाति ही PAM का कारण पाई गई है.
ब्रेन ईटिंग अमीबा का संक्रमण कैसे होता है?नेगलेरिया फाउलेरी आमतौर पर गर्म ताजे पानी वाले झील, तालाब और मिट्टी में पाया जाता है. इस संक्रमण के ज्यादातर मामले तालाब या जलाशयों में नहाने के दौरान आते दिखे हैं. ये अमीबा पानी में नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश कर सकता है. ऐसा तब हो सकता है, जब कोई इस अमीबा वाले पानी में तैरे या डुबकी लगाए. अब तक इसके ड्रॉपलेट से फैलने का सबूत नहीं है यानी इंसानों से इंसानों में इसका संक्रमण नहीं पाया गया है.
ये एक रेयर यानी दुर्लभ इन्फेक्शन है. अमेरिका में साल 2013 से 2022 के बीच इसके 29 मामले सामने आए. यहां हर साल इसके 0 से 5 मामले सामने आते हैं. इसके मामले आमतौर पर जुलाई से सितंबर के बीच पाए जाते हैं, जब मौसम गर्म होता है.
नेगलेरिया फाउलेरी इन्फेक्शन के लक्षणसंक्रमण के 1 से 12 दिनों में इसके लक्षण नज़र आ सकते हैं. इसके शुरुआती लक्षणों में सिर दर्द, बुखार, मिचली या उल्टी हो सकती है. इसके बाद गर्दन में अकड़न, भ्रम हो जाना, किसी चीज पर ध्यान न दे पाना, दौरा या कोमा तक की स्थिति आ सकती है. लक्षण शुरू होने के बाद, ये बीमारी तेजी से बढ़ती है और आमतौर पर लगभग 5 दिन के भीतर मौत होने का खतरा रहता है. कुछ मामलों में 1 दिन से 18 दिन के बीच भी मरीज की मौत होने की बात सामने आई है.
इस इन्फेक्शन में डेथ रेट 97% से अधिक दर्ज किया गया है. अमेरिका में साल 1962 से 2022 के बीच इसके 157 मामले सामने आए, जिसमें से केवल 4 मरीजों की ही जान बच पाई. इसके इलाज की सबसे बड़ी चुनौती इस इन्फेक्शन की पहचान करना है.
अभी इसके इलाज में कई दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें एम्फोटेरिसिन बी, एज़िथ्रोमाइसिन, फ्लुकोनाज़ोल, रिफैम्पिन, मिल्टेफोसिन और डेक्सामेथासोन शामिल हैं. ऐसा माना जाता है कि ये दवाइयां नेगलेरिया फाउलेरी के खिलाफ प्रभावी हैं. इनका इस्तेमाल उन मरीजों के इलाज में किया गया था, जो जिंदा बचे. मिल्टेफ़ोसिन (Miltefosine) इन दवाओं में सबसे नई दवा है. इसकी और बेहतर दवाइयों पर शोध जारी है.
इस तरह के संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि ठहरे हुए पानी के स्रोतों में गतिविधियां सीमित की जाएं. साफ-सफाई का ख्याल रखा जाए. स्वीमिंग के लिए साफ-सुथरे पूल का ही इस्तेमाल किया जाए.
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